मालिक की कृपा से चमत्कार बहुत देखे हैं ,पढ़े और अनुभव भी किये हैं लेकिन चमत्कार भक्ति की गारंटी नहीं है इसलिए गुरमुख महात्मा किसी को चमत्कार होने का आश्वासन देकर नहीं लुभाते बल्कि सहज भक्ति का सन्देश देते हैं |यह दूसरी बात है कि निरंकार को जब जीवन का आधार बना लेते हैं तो कदम-कदम पर चमत्कार होते हैं लेकिन हम उनकी बजाय सतगुरु की जीवनदायी शिक्षाओं को ही सत्य प्रचार का आधार बनाते हैं |
बाबा गुरबचन सिंह जी से एक बार किसी ने पूछा-श्री गुरु नानक देव जी ने तो कड़वे रीठे को भी मीठा कर दिया था |आप ने भी ऐसा क्या कोई चमत्कार किया है ?
बाबा जी किसी भी पैगम्बर से अपनी तुलना करनी पसंद नहीं करते थे |उनका स्पष्ट कहना था कि हर धर्म और हर पैगम्बर ने मानव मात्र को परम पिता परमात्मा का बोध हासिल करने को प्रेरित किया |मानव जन्म का सर्वश्रेष्ठ कार्य है कि मनुष्य एक परमात्मा का बोध हासिल करे|जिस भी महात्मा ने इस बोध को हासिल किया है वह सतगुरु की कृपा से ही हासिल किया है |बाबा जी का कहना था कि कोई भी जिज्ञासु उनके पास आकर परमात्मा का ज्ञान हासिल कर सकता है |
उनके साथ एक महात्मा सेवा करते थे,जिन्हें सब पहलवान जी कहते थे |नाम उनका सरवन सिंह जी था |वे दिल्ली में निरंकारी कॉलोनी में ही रहते थे |उनके दर्शन मैंने किये तो हैं लेकिन मैं उनके बच्चों की उम्र का था इसलिए परिचय कभी नहीं हुआ |
पहलवान जी ने प्रश्न पूछने वाले सज्जन से कहा-मुझे देख रहे हो |मैं तो रीठे से भी ज्यादा कड़वा था | अपनी और ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा-इन्होने इस ढाई मन के रीठे को मीठा किया है |
इस महात्मा के घट का उपयोग करके निरंकार ने बता दिया कि-सतगुरु हमेशा सतगुरु ही होता है और चमत्कार सतगुरु के लिए कोई बड़ा काम नहीं होता |
बाबा गुरबचन सिंह जी स्वयं को सब गुरु-पीर -पैगम्बरों -का दास मानते थे और नम्रता -और प्रेमपूर्ण व्यवहार करने की शिक्षा सबको देते थे ,जिसका इशारा ही पहलवान जी ने किया था |
- रामकुमार 'सेवक'