एक
होली आयी, होली आयी,
बूढ़ों पर भी मस्ती छायी,
होली का हुड़दंग था मेरी बस्ती में
बूढ़े भी झूम रहे थे होली की मस्ती में,
देखते ही देखते एक भूतों की टोली आई
जिसने मेरे दरवाजे पर लगी घंटी बजाई,
और शोर मचाया होली है भाई होली है
नहीं है पैसे रंग के, इसलिए कीचड़ घोली है,
मैंने कहा यह क्या तमाशा है
तुमसे नहीं मुझे ऐसी आशा है,
उनमें से एक बड़ा भूत बोला
कोई बात नहीं काला रंग भी है,
अच्छा तो जल्दी से बाहर आओ
और अपना काला मुंह करवाओ,
मैंने कहा सभी हैं भगवान की मूरत
फिर क्यों कर रहे हो खराब सूरत,
होली है उपदेश मत झाड़ो
एक बोला इनके कपड़े फाडो,
इनको लेडीज कपड़े पहनाते हैं
फिर सबके सामने डांस करवाते हैं
मामला बढ़ चुका कुछ हद से ज्यादा था
आगे बात करने का ना कोई फायदा था
मैंने सोचा कोई इनमें से एक नरम हो जाए
भाई लोगो अंदर आओ ठंडा गरम हो जाए,
विनोद भाई ठंडा गरम सब कुछ छोड़ो
केवल आज इस मस्ती से रिश्ता जोड़ो,
होली है आज ले आओ, केवल कड़वा पानी
ना कोई चाय कॉफी, नमकीन है बस चबानी,
हमने भी एक बाल्टी पानी में
नमक की कई थैली घुलवाई,
भर भर के गिलास रखें सामने
और कहा सभी चेक करो भाई,
और कितना कड़वा चाहिए,
तभी एक क्रोधित होकर बोला
कर दिया है ना आपने मूड खराब,
आप क्या कर रहे हो विनोद भाई
हमने तो मांगी थी आपसे शराब,
तभी दौड़ती हुई एक महिला आई
खबरदार यदि आपने शराब पिलाई,
जा चुका है अब इनका लीवर
बार बार आता हैं इनको फ़ीवर्
लीवर को जाने भी दे पगली
शादी मुझसे हुई है लिवर से नहीं,
डर केवल तुझसे लगता हैं,
पगली कभी फ़ीवर् से नही,
सुनकर पुकार उस नारी की
जो जीवन से लगता हारी थी,
तभी मेरी बूढ़ी माता अंदर से बाहर आई
उन सभी पर जोर जोर से चिल्लाआई,
आज इस पवित्र त्यौहार पर,
मांग रहे हो जहर का प्याला
तुमने तो कंबख्तो होली के ,
अर्थ का अनर्थ कर डाला ,
छोड़कर इस बेरँगे का रंग,
चेहरा पीला काला कर डाला,
न जाने उसने कितनी मुसीबतें झेली थी
असली होली भक्त पहलाद ने खेली थी ,
भक्त की अडोल अटूट एक आस थी
उसकी जीत केवल उसका विश्वास थी,
पहाड़ के नीचे कभी हाथी के सामने,
तो कभी गर्म खंबे पर चिपकाया था,
हर जगह से बच निकला भक्त तो
होली के साथ आग में बिठाया था,
इस बेरँगे का रंग चढ़ा
प्रभु राम से प्रीत हुई ,
होली जलकर राख हुई
सत्य की झूठ पर जीत हुई,
तभी से इस त्यौहार से यह,
सिखलाई ली जाती है,
आज संसार में बुराई का प्रतीक,
होली जलाई जाती है,
आओ आज हम भी विचार करें,
गर सतगुरु ने अपनाया ना होता,
तो हमारा भी हाल आज
दुनिया की तरह होता ,
शुक्र है मेरे मुर्शिद का
जिसने, जीने का सिखाया है ढंग ,
दुनिया के सब रंगों से बढ़कर,
चढ़ाया है इस प्रभु का रंग,
जो दे शीतलता दूसरों के दिलों को
ऐसा बोल बोले अपनी बोली में,
इस बेरँगे के रंग में रंग जाए ,
और खत्म कर दे बुराइयों को होली में,
छोड़कर बैर -नफरत विनोद ,
आओ बिखेरे प्यार के रंग,
ना कोई वेरी ना कोई बेगाना,
खेलें होली हम संग संग,
-
विनोद कवि
गोविंदपुरी (नयी दिल्ली )
दो
-दीनदयाल उदय (ग़ाज़ियाबाद)
होली प्यारी होती थी बस, मथुरा की, बरसाने की
अब रंगों में लाली केवल, लहू की दिखती है ज्यादा
होली में बस हुड़दंग रह गया, भूल गए सब मर्यादा
महीना भर पहले होती थी. जिन हाथों में पिचकारी
सादा पानी डाल के ही, लेता था बचपन किलकारी
वो दहशत में रहते हैं, अब कुछ साये उन्हें डराते हैं
क्यूंकि, पापा पीकर, हर होली पर, टूटे फूटे आते हैं
अब तो होली पर सरकारी, डॉक्टर भी घबराते हैं
घायल इतने आते हैं की, बिस्तर कम पड़ जाते हैं
अब होली पर्याय बन गयी है, केवल घबराने की
होली तो होती थी.......
जब कृष्ण निकल कर आते थे, राधा लाठी बरसाती थीं
और शाम को घर पर हल्दी, वाला दूध पिलाती थीं
अब ना लाठी न दूध में हल्दी, केवल चलती है दारू
ज़रा नहीं बर्दाश्त किसी को मर जाऊँ या फिर मारूं
गांव के चौक पे आकर सारे रंग गुलाल लगाते थे
मिलकर गले एक दूजे के शिकवे गीले मिटाते थे
पर अब होली बन गयी है ज़रिया बस दुश्मनी निभाने की
होली तो होती थी.......
था भक्त बचाया नारायण ने और भक्ति की जीत हुई
आज के युग में हाय क्यों लेकिन ये उलटी रीत हुई
जय जयकार थी हुई प्रह्लाद की जय होली की बोल रहे
प्यार के रंगों में क्यों हाय विष नफरत का घोल रहे
त्योहारों और खुशियों का रिश्ता था दमन और चोली का
है करतूतों से रूप बिगाड़ा कितना प्यारी होली का
हो गयी रीत धुंधली यारों भंग से रंग ज़माने की
होली तो होती थी.......
बड़े भाग मनुष तन पावा
सुर दुर्लभ सब ग्रन्थ: गावा
जिस मानव के लिए लिखी है ग्रंथों में भी ऐसी बात
इस सूक्ति पर लेकिन हाय कैसा हुआ घोर आघात
पीकर के ये मादक चीज़ें इधर उधर गिर जाता है
कोई आवारा कुत्ता आकर मुख गीला कर जाता है
इसीलिए होती हैं होली के दिन ज्यादा दुर्घटना
हर एक गली में दिख जाती हैं ऐसी दो-तीन घटना
पीकर नाली में गिरने की कुत्तो से मुंह चंटवाने की
होली तो होती थी.......
आओ मिलकर लौटा लाएं फिर से होली का यौवन
पिचकारी के संग झूलता चंचल नटखट वो बचपन
ना हों रंजिश बस हों खुशियां और वो चेहरे खिले खिले
रंग वो टेसू, हल्दी, चंपा, की खुशबु के मिले जुले
कृष्ण की मधुर नटखटतायें और राधा की मुस्कानें
हुक्का भरते वो जीवन हर कदम पे लगते समझानें
"उदय" फिर से झलक दिखे हर सू फिर मथुरा की बरसाने की
होली तो होती थी बस प्यारी कृष्ण ज़माने की
होली प्यारी होती थी बस, मथुरा की, बरसाने की
तीन
होली में
बरसे प्यार की रिमझिम फुहार होली में,
मिटे सब गम हो मौसम खुशगवार होली में।
लाल पीले गुलाबी रंगो से रंगा चेहरा यूं,
बने अनजान घर पर बरखुदार होली में।
भूल कर शिकवे गिले रंग लगाया ज्यो उन्हें,
थे जो दुश्मन वो बने अपने यार होली में।
वैर नफरत के निशा बाकी न रहे दिल में,
रहे हर और बस प्यार प्यार होली में।
सभी तन मन को प्रेम के रंग से रंग दे,
मेघ बरसे यू अबकी बार होली में।
मेघ को रंग दे अपने ही रंग में खुदा,
करदे रहमत मेंरे परवरदिगार होली में।
-धन प्रकाश मेघ (मुज़फ्फर नगर )
चार
होली आई, होली आई, बूढ़ों पर भी मस्ती छाई,
ऐसा रंग चढ़ा होली का, सबने मिलकर धूम मचाई।
कुछ के हाथों में पिचकारी, कुछ गुलाल के साथ खड़े हैं,
बच न पाये कोई सूखा, भैया हो या हो भौजाई।
होली का त्यौहार निराला, नौकर है ना कोई लाला,
सबकी अपनी अपनी मस्ती मिलकर पी ली भांग-ठंडाई।
देख रहे थे सारे गौरी, जिसकी भीगी अंगिया -चोली,
सोचो ! मन में कैसी-कैसी, सबके दिल ने ली अंगड़ाई।
होली आई, होली आई, बूढ़ों पर भी मस्ती छाई।
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हास्य क्षणिका :
रेखा !
जबसे तुझे देखा
मैं
भूल गया सुलेखा !
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हमें
गर्व है अपनी ईमानदारी पर
क्योंकि
निभाई है हमने
बेईमानी
सदा
ईमानदारी के साथ !
-प्रकाश सूना (मुज़फ्फर नगर )