-निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी
दिल्ली ,निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी का व्यक्तित्व बहुत ही अनोखा था |जो उनके एक बार भी दर्शन करता था वह तुरंत इसे महसूस करता था |उनका रोम रोम जैसे सद्भावनाओं से भरा हुआ था |निरंकारी भक्तों के अलावा जो आम नागरिक होते थे वे भी इन शुभकामनाओं को महसूस करते थे |
पहली जनवरी को नव वर्ष समागम आम तौर से बुराड़ी रोड पर निरंकारी सरोवर के सामने आयोजित किया जाता था लेकिन संभावित सर्दी को ध्यान में रखकर बाद के वर्षों में ग्राउंड न.आठ (अथॉरिटी के सामने )आयोजित किया जाने लगा था |
उन समारोहों को याद करके दिल आज उस उमंग और जोश से भर जाता है |इस समारोह में बाबा जी अनेक वर्षों में जीवन जीने के लिए अनेकों सरल सिद्धांत दिए |
ऐसा ही एक समागम वर्ष 2015 में भी आयोजित किया गया |सतगुरु के वचन सदैव और हर मनुष्य के लिए कल्याणकारी होते हैं |कोई भी व्यक्ति उन पर चलकर अपने जीवन में क्रांति ला सकता है |इस उद्देश्य से एक जनवरी को आयोजित नव वर्ष समागम में किये गए बाबा जी के प्रवचन यहाँ प्रस्तुत हैं-
महिमा एक परमात्मा की
आज आप सभी नये वर्ष के पहले दिन ,हमेशा की तरह नववर्ष के आगमन पर सत्संग का रूप धारण किये हुए हैं |आप सब मिल-बैठकर इस परब्रह्म परमात्मा का ,जो हमेशा क़ायम-दायम रहने वाली परम सत्ता है,जिसकी बदौलत यह सब रचना बनी है का गुण- गान कर रहे हैं |
इसी मालिक-ख़ालिक़ को आप समर्पित होते हैं,इसी से प्रार्थनाएं करते हैं,शुभकामनायें करते हैं |इसी के रंग में रंगकर जीवन के सफर को तय करने के लिए इसी से शक्ति मांगते हैं |
नए वर्ष के आगमन पर जहाँ शुभकामनायें की जाती हैं वहीं भक्तजन प्रभु से ऐसा जीवन जीने की तौफ़ीक़ मांगते हैं कि जीवन प्यार -नम्रता से भरा हो |दिव्य गुणों से युक्त महकता हुआ जीवन हो |
हमेशा से संतों सन्तों महात्माओं ने एक निरंकार को ही जीने का आधार माना है |इसी का आधार लेकर वे जीवन के सफर को तय करते आये हैं |इस सफर को तय करते हुए चढ़ाव भी आये हैं,उतार भी आये हैं लेकिन सन्तों ने निष्ठा इसी प्रभु के ऊपर कायम रखी |यह जो निराकार परम सत्ता है,इसी को आधार मानने के कारण निश्चय -निष्ठा ये इसके ऊपर बनाये रखते हैं |
वियोग और संयोग का मिश्रण रहा वर्ष 2014
जो साल गुजरा,हमने देखा ,इसमें कई बिछोड़े भी हुए ,मिलन भी हुए |कुछ उपलब्धियां हुईं तो कुछ हाथों से निकल भी गया |
इस प्रकार ये जीवन के पहलू हैं जो महापुरुषों के जीवन में आये |महापुरुषों के जीवन में भी ऐसे पड़ाव आये हैं क्यूंकि वे भी इसी संसार में विचरण करते हुए जीवन जीते हैं लेकिन सभी ने इस मालिक-खालिक के प्रति हर हाल में अपना जीवन समर्पित किये रखा और इसी के नगमे गाते रहे | इसी की चर्चा करते रहे ,इसी का महत्व स्थापित कराने के लिए उन्होंने बड़े से बड़े दांव लगा दिये | अपने जीवन तक को दांव पर लगा दिया |
गिरावट से बचने के लिए प्रभु चिंतन की निरंतरता आवश्यक
सन्त-महात्मा -भक्तजन इसी के ऊपर हमेशा केंद्रित रहते हैं |ये जानते हैं कि इसी से नाता तोड़ने के कारण इंसान गिरावट की ओर जाता है |
गुजरे हुए समय में भी हमने देखा है,क्रूरता,कठोरता और निर्दयता के कितने पीड़ाजनक दृश्य हमारे सामने आये हैं |ऐसे -ऐसे प्रमाण दिये गए हैं इंसान के द्वारा जहाँ कलह-क्लेश का वातावरण फैलाया गया,इंसान का घिनोना रूप सामने आया वहीं साथ-साथ आशा की किरण सज्जन प्रवृति के रूप में महात्मा-सन्तजन भी साथ-साथ चलते रहे |
जैसे आप भक्तों ने मानवता,प्यार,खालूस,भाईचारे ,सदभावना,एकत्व के नारे बुलंद किये |इसी तरह का प्रेमपूर्ण जीवन जीने के लिए सबको प्रेरित किया |ये भाव आशा की किरण के रूप में होते हैं |
अभी पिछले दिनों (क्रिसमस,25 दिसंबर ) के बाद कल रात तक पंजाब और हरियाणा के कुरुक्षेत्र में जो जाने के मौके मिले ,वहां भी यह जिक्र हो रहा था , कि इस घोर अन्धकार में जहाँ कदम-कदम पर आशंकाएं ,apprehensions ,कि अनुमान भी नहीं हो पा रहा है कि कदम-कदम पर क्या होने वाला है .कौन सा मरहला आने वाला है,कौन इंसान के रूप में दरिंदगी का प्रमाण देने वाला है,इस तरह के वातावरण में अगर आशा की किरण हैं तो सन्त प्रवृति,सज्जन प्रवृत्ति वाले ,जो खुद तो जागरूक होते ही हैं ,औरों को भी जागरूक करते रहते हैं |जो अपने आपको न्योछावर करने को तो तैयार हो जाएंगे लेकिन किसी और को पीड़ा देने ,किसी का शोषण करने के लिए तैयार नहीं होंगे |
विश्व को ज़रुरत
इसी की,ऐसी ही भावना अपनाने की ज़रुरत आज संसार भर को है | अन्यथा इंसान के जीवन के वर्ष तो बीतते ही जा रहे हैं |लम्हो के रूप में धीरे -धीरे दिन .महीने साल बीतते ही जा रहे हैं |यात्रायें तय होती जा रही हैं -नया वर्ष आता है,शुभकामनायें होती हैं |प्रार्थनाएं-अरदासें होती हैं |सबके लिए सुमति मांगी जाती है लेकिन वो भी होते हैं जो अपनी दुर्मति पर टिके रहते हैं |जो उसी रास्ते पर चलते जाते हैं |उन्हीं के कारण धरती की हालत भी बदतर होती है |जो समय गुजर रहा होता है,वह भी पीड़ादायक हो जाता है |
आप सब महापुरुष भक्तजन हमेशा यही भाव लिये हुए इस संसार में विचरण करते हैं |
ब्रह्मज्ञानियों की जिम्मेदारी
यह जो ज्ञान की रोशनी जीवन में आयी है,इसी से हम युक्त रहें और इसी रोशनी को आगे बाँटते चले जाएँ |प्यार,जिसकी जीवन में कमी हो चुकी है,इस प्यार को हम और बढ़ाते चले जाएँ |इस दौलत के भागीदार सभी को बनाते चले जाएँ |
नव वर्ष की शुभ आशा
जिस प्यार को इंसान भूलता जा रहा है,स्थिति ऐसी हो रही है -
Things were to be use & people were to be love
लेकिन स्थिति विपरीत हो गयी -चीजों से प्रेम और लोगों का इस्तेमाल |इस प्रकार शोषण और दमन इंसान कर रहा है |उसको चीजें इतनी प्रिय हो गयी हैं कि किसी की भावनाओं की ,किसी की मजबूरियों की तरफ कतई देखने को तैयार नहीं है |अपनी इसी धुन में मगन इंसान गिरावट की ओर बढ़ता जा रहा है | उसके मन की पूरी एकाग्रता वस्तुओं पर ही केंद्रित होकर रह जाती है |
आध्यात्मिक पक्ष और मानव जीवन
जीवन में spritual aspect (आध्यात्मिक पक्ष )कमजोर होता चला जा रहा है |अध्यात्मिक पक्ष के कमजोर होने के कारण इंसान गिरावट की ओर बढ़ता जा रहा है |भक्तजन जहाँ अपना आध्यात्मिक पक्ष मजबूत रखते हैं वहीं औरों को भी इसी तरफ अग्रसर करते हैं |याद कराते हैं गुरु-पीर-पैगम्बरों के पैगाम को |सन्तों-महात्माओं की शिक्षाओं की याद दिलाते हैं ,जिस तरफ बढ़ने की उन्होंने प्रेरणा दी |चाहे वे किसी भी युग में हुए उनका पैगाम यही रहा |चाहे वे किसी युग में आये ,किसी सदी,संस्कृति या देश में आये |उन्होंने अध्यात्मिकता ,सच्चाई,प्यार आदि दिव्य गुणों को ही महत्ता दी थी |इन्हीं तत्वों की महत्ता हर युग ,हर दौर में रही है जैसे परमात्मा की महत्ता हर युग हर दौर में हर इंसान के लिए रही है |आप सब सन्त-महात्मा इन्हीं शिक्षाओं की तरफ ध्यान आकर्षित करते हैं |इसी का प्रचार -प्रसार करते चले जाते हैं |
नया वर्ष संकल्प नया
इस नए वर्ष के आगमन पर ,आज भी मिल -बैठकर यही अरदास,यही शुभकामनायें की जा रही थीं कि दातार कृपा कर जीवन का हर पल ,एक-एक पहर ,हर दिन, हर साँस तमाम जीवन दातार तेरे ही रंग में रंगा हुआ बीते |मानवीय गुणों (Human Values )की क़द्र करते हुए ,ऐसा सदभाव हर किसी के साथ रखते हुए गुरमत के अनुसार इस जीवन के सफर को तय करते चले जाएँ |
इस रास्ते से कभी भटकें नहीं |इस रास्ते हम कभी हटें नहीं |इस मार्ग पर हमारे कदम बढ़ते ही जाएँ |कभी भी संसार के प्रभाव हम ग्रहण न करें |
संसार में जो चाल चली जा रही है,वह अनुकरण करने योग्य नहीं है |जो वास्तव में ऊँची सोच रखते हैं ,वही अनुकरण करने लायक हैं |जिनके ऊँचे ख्याल हैं ,इस ऊँचे (निराकार प्रभु )को जीवन में जो महत्व देते हैं, उन्हीं का अनुकरण -अनुसरण हम सब करते चले जाएँ |
उनका जो अनुसरण करते हैं,उनकी दृष्टि में भी पावनता होती है ,हृदय में भी पावनता होती है |वे मन में विषैलापन नहीं आने देते |ऐसा मार्ग ही चलने लायक है |
इसके विपरीत जो मार्ग है,वह तजने लायक है |विपरीत भावनाएं (अहंकार,संकीर्णता )तजने लायक है |अपनाने लायक है तो -विनम्रता ,विशालता ,सहनशीलता आदि |ये हृदय में बसाने लायक हैं |
शाश्वत सन्देश
जब भी नये में प्रवेश करते हैं तो बीत चुके वर्ष की विपरीत घटनाओं और परिस्थितियों की negativity (नकारात्मकता )को आगे नये साल में ले जाने की जरूरत नहीं है |उसे छोड़ देना है,और नये वर्ष में जो सफर है,उसमें यह ध्यान रखना है कि दाएं -बाएं से किसी negativity को न अपना लें |नकारात्मकता तजने लायक है और सकारात्मकता अपनाने लायक है |मन को मजबूत करके एक निरंकार के हवाले जीवन किया हुआ है तो ऐसी मन की अवस्था हो-
काठ की पुतरी.क्या जाने बपुरी ,खिलवानहरो जाने |
यही अरदास हो,दातार सब कुछ तेरे हाथ में है ,हम तुझे समर्पित होकर हमेशा positive attitude (सकारात्मक दृष्टिकोण )वाले रहें |हमेशा Gratitude (कृतज्ञता )का भाव रहे |नाशुक्रापन (कृतघ्नता)न हो |हम हमेशा उसी दृष्टि से देखें |उसी भाव से युक्त होकर हम तेरी इबादत ,तेरी बंदगी करें |सेवा,सत्संग भी उसी भाव से करें |
तू निर्मल पावन सत्ता ,तेरा सुमिरन भी हम ऐसे ही भाव से युक्त होकर करते चले जाएँ -
ऐसो हीरा,निर्मल नाम
तू ऐसा हीरा है, तेरी निर्मलता है,तेरी पावनता है |तेरे नाम को हम जपते चले जाएँ |तुझे हृदय में बसाते चले जाएँ |इस प्रकार हमारे जीवन में पावनता और निर्मलता आती चली जाये |बेग़र्ज़ होकर,लागर्ज़ होकर हम तेरी बंदगी भी करते चले जाएँ |दूसरों के साथ भी हम गरज़ वाले रिश्ते न जोड़ें | दूसरों के साथ भी अगर गरज़ के साथ कुछ किया जाता है,नाते जोड़े जाते हैं तो बात फिर वही आ जाती है-
using people (लोगों का इस्तेमाल करना )और things (वस्तुओं) को प्यार करना | ऐसी ही स्थिति आ जाती है |इसी से नाप-तोल की जाती है |पहचान भी वही रखी जाती है | उसी दृष्टि से देखा जाता है |पैमाना वही गरज़ वाला रहता है |वैसी ही दृष्टि रहती है,वर्षों पहले यह नारा दिया गया-
जैसी दृष्टि,वैसी सृष्टि |
जैसी दृष्टि से हम देखते हैं,सृष्टि वैसी ही दिखाई देती है |यह पंक्ति भी देखने को मिली -अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे
जिसे जितना मतलब था,उतना ही पहचाना मुझे |
इस प्रकार यही एक नाप-तोल रखी जाती है |दातार कृपा करे,बेग़र्ज़ होकर,समर्पित होकर सभी जीवन के सफर को तय करते चले जाएँ |समर्पण भाव हमेशा बना रहे,अभिमान का भाव कभी न आये-जैसे इस पंक्ति में भी कहा गया है-
मैं शब्द,तुम अर्थ
तुम बिन मैं बेअर्थ
अर्थ मेरे जीवन में है तो तेरे कारण है अन्यथा मैं बेअर्थ हूँ |कोई मेरी कीमत नहीं है |अर्थ भी जीवन को तेरे कारण ही मिलता है |जीवन को जीवन तेरे कारण मिलता है |तुझसे जुड़ा रहकर मैं अपनी जिम्मेदारियां भी निभाता रहूँ और परोपकार भी करता रहूँ |