एक आध्यात्मिक प्रश्न - स्थितप्रज्ञता-आखिर ब्रह्मज्ञानी के जीवन में भी क्यों नहीं है ?

रामकुमार 'सेवक'

पिछले दिनों  लक्ष्मीनारायण मंदिर (दिल्ली) में जाने का अवसर मिला |1939 में महात्मा गाँधी ने इस मंदिर का उद्घाटन किया था |सेठ जुगलकिशोर बिड़ला जी की धर्मपत्नी श्रीमती योगेश्वरी देवी जी  ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था |इस मंदिर में गीता भवन भी स्थित है |

गीता भवन की दीवारों पर गीता के महान श्लोक अंकित हैं |इस भवन में जाकर और ये मन्त्र पढ़कर सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी की बहुत याद आयी जो आजीवन मानव मात्र को निरंकार प्रभु से जुड़ने के लिए प्रेरित करते रहे |वहां अंकित मंत्र पढ़कर इस निरंकार पर यकीन और भी मजबूत हो गया |ह्रदय से सतगुरु का शुक्राना निकला जिन्होंने हमें कृपापूर्वक इस निरंकार का बोध करवाया |इस निरंकार के बारे में स्पष्ट लिखा गया है-एको ब्रह्मद्वितीयोनास्ति तथा ईश्वर निराकार है और जानने योग्य है |  

वहां एक-दो मुस्लिम सज्जन भी अपने परिवार के साथ दिखे |भीतर से वे आशंकित भी लग रहे थे लेकिन वहां उदारता ही सर्वत्र नज़र आ रही थी |

एक निराकार प्रभु को यदि आधार बनाया जाए तो हर कोई अपना नज़र आता है |मुझे ध्यान आ गयी बाबा हरदेव सिंह जी की वह यात्रा जिसमें वे गोमुख में स्वामी सुन्दरानन्द जी से मिले थे |बचपन का वह समय भी ध्यान आया जब इस विशाल मंदिर को पहली बार देखा था |उस दिन स्वामी गिरीशानंद जी सुंदरकांड की कथा सुना रहे थे |एक घंटे की कथा ने मंत्रमुग्ध कर दिया |विद्वान विचारक की तर्कसंगत बातें घट-घट में व्यापक राम से जोड़ रही थीं |

ध्यान सतगुरु की उदारता की तरफ चला गया जो कि कितने ही मंदिरों में भी सहज भाव से गए जबकि आज का दौर ऐसा है कि हम पर हमारे ही गुरुभाई प्रश्नचिन्ह लगाने लगते हैं |

तब यह प्रश्न सहज ही पैदा हो जाता है कि जो निरंकार सर्वत्र व्याप्त है और बिलकुल सरल है,इसके अनुयाई होने का दावा करने वाले इतने सरल क्यों नहीं हैं |अच्छे -खासे मिशन को दीवारों में बंद करने में क्यों लगे हैं ?चापलूसी और कुर्सीमोह ने ब्रह्मज्ञानी कहलाने वालों को जैसे किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्त्ता जैसा रूप दे दिया है लेकिन निरंकार अब भी वही है,यही भक्त को विपरीत दिशा में जाने से बचाता है परन्तु निश्चय ही इसकी गहराई का एहसास हमें नहीं है अन्यथा सबके जीवन में स्थितप्रज्ञता रही होती | 

एक पत्रकार मित्र ने 

उलझते और उलझाते हुए 

उलझनों का पिटारा ,मेरे सिर पर उड़ेला और बोला-

न घर चैन ,न बाहर चैन -कहीं ठिकाना नहीं है 

अरे यार ,सच्चाई का ज़माना ही नहीं है |

मैंने कहा-भारत सरकार तक कहती है-सत्यमेव जयते 

पत्रकार मित्र बोले -वह सिर्फ छायती है,अशोक चिन्ह के नीचे-सत्यमेव जयते 

लेकिन -कहती नहीं है क्यूंकि 

उसे भी पता है -पुलिस थाने में घुसने से पहले ,सच को देनी पड़ती है विदाई ,

करनी पड़ती है-निजी -जेब की भी सफाई 

नहीं तो हो सकती है -पिटाई 

कानून की रुस्वाई के जुर्म में -हो सकते हैं अंदर |

सुनकर उसके ज़ज़्बात -मैं ज़ज़्बाती हो गया लेकिन पराजय न मानने के स्वर में बोला -

पर यार -अदालत में -मजिस्ट्रेट के सिर के पीछे ,महात्मा गाँधी का चित्र लगा होता है ,

और गाँधी जी भी अक्सर थे कहते -सत्यमेव जयते ,

पत्रकार मित्र न घबराया ,न सकुचाया और बिलबिलाया -

अदालत में मजिस्ट्रेट नहीं ,मेंन होता है -वकील ,जो देता है दलील 

झूठ  को बचाने की,सत्य को बरगलाने की ,

और अक्सर सफल होता है-

सत्य तो जेल में चक्की पीसता,और रोता है |

पत्रकार की सुनकर बात - मैं हो गया हतप्रभ लेकिन 

खिसियाने स्वर को मजबूत बनाकर बोला -

मेरे भाई ,तुम चाहे जो भी कहो  - सबसे बड़ी है सच्चाई ,

सत्य यदि समझदार भी हो तो -संयम से बोलता है 

इसलिए उसे जाना नहीं पड़ता कभी थाने 

और जाता भी है तो शान से जाता है ,

नेल्सन मंडेला की तरह ,इज्जत से बाहर आता है ,

रामलीला के मंच पर भी होती है-राम की विजय ,रावण की हार ,

क्या दिखता नहीं है तुमको -युगो पुराना यह सिलसिला 

रावण को क्या मिला -सिला ?

पत्रकार मित्र बोला-यार वो रामलीला है ,दस दिनों का खेल है,संयोगों का मेल है, जीवन नहीं है 

जीवन में तो ,राम कहीं दिखता नहीं ,रावण का ही अखंड साम्राज्य है ,

कोई छह फ़ीट का ,कोई सात फ़ीट का ,

दिखता नहीं कहीं रामराज्य है |

दुकान से लेकर मकान तक झूठ ही झूठ फैला है,

सत्य के दर्पण में हर कोई मैला है,

मोदी जी तक कह रहे हैं-चीन हमारे देश में घुसा ही नहीं,

बीस सैनिकों की शहादत फिर कैसे हो गयी -राम जाने |

मोदी जी तक शहादत की की बात मानते हैं

उसे चुनाव की मंडी में ,कैसे भुनाना है,यह भी अच्छी तरह जानते हैं |

सत्ता हो या जनता -मानवता की पहचान कहाँ है 

सत्य का स्थान कहाँ है ?

अंततः मैंने कहा-मित्र ,सत्य अजर -अमर है ,यह नहीं आज की तजा खबर है 

यह शाश्वत है,नहीं कोई मशीन है,

युग बीतने पर भी सत्य तजा तरीन है |

असल में -

सत्य हारता हुआ लगता तो है ,लेकिन कभी हारता नहीं |

दो प्रकार के जीवन हैं 

एक शरीर के साथ,और दूसरा-शरीर के बिना |

शरीर एक आयु के बाद नष्ट हो जाता है,हर किसी का ,

लेकिन -हम जो कर्म करते हैं ,वे सदैव रहते हैं 

और कर्म यदि सात्विक हों तो 

अच्छी -बुरी कहानी कहते हैं ,

शरीर के मरने के बाद भी ज़िंदा रहते हैं |

इसलिए सत्य की विजय के लिए -जीवन में प्रभु को बसा लो,

कर्मो को सम्भालो,निज कर्मो को सम्भालो |

बेहतर है जिस निरंकार का मुसीबत के वक़्त नाम लेते हैं ,ख़ुशी के वक़्त भी एहसास करें |किसी के बारे में विपरीत भाव मन में रखने से बचें तब जो अवस्था होगी,वो हमें स्थितप्रज्ञ सिद्ध करेगी |