रोचक इतिहास -बर्बरीक ने अर्जुन के अभिमान की हवा कैसे निकाली ?


 रामकुमार सेवक 

जैसे -जैसे आत्मनिरीक्षण करता हूँ इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि परमपितापरमात्मा ने मनुष्य को मनुष्य के ही रूप में बनाया |जिस कारण हम देखते हैं कि किसी भी मनुष्य के शरीर पर जाति- धर्म,सभ्यता -संस्कृति ,कुल-वर्ण आदि का कोई चिन्ह नहीं बना होता |वेदों का भी उद्घोष है-मनुर्भव अर्थात मनुष्य बनो | 

1988  के निरंकारी मिशन के वार्षिक सन्त समागम में कवि सम्मेलन का शीर्षक भी यही था-बनकर रहिए इंसान यहाँ,यह धरती है इंसानो की |

वार्षिक समागमों में पहली बार कविता पढ़ने का अवसर मुझे इसी समागम में मिला था |इस समागम में वरिष्ठ कवि भूपेंद्र बेकल जी ने जो कविता पढ़ी उसमें महावीर बर्बरीक का जिक्र था |शेअर में उन्होंने कहा था- 

कुरुक्षेत्र के धर्मक्षेत्र में देख रहा है बर्बरीक यह 

हर विजय सुदर्शन चक्र की है,ना तीरों  -गदा -कमानो की |

बर्बरीक महावीर था |वह मुक्ति का आकांक्षी -तपस्वी था जो यह संकल्प लेकर आया था कि -

मैं कमजोर की मदद करूंगा |ऊपरी तौर पर यह बात कितनी भली लगती है लेकिन श्रीकृष्ण ने एक प्रश्न किया कि जो कमजोर है,यदि वह धर्म के विरुद्ध हो ,तब भी क्या उनका साथ देना चाहिए ? 

इस पर बर्बरीक ने कहा कि धर्म अधर्म की बातें उसकी समझ से परे हैं |मैं तो सिर्फ इतना जनता हूँ कि पांडव बलवान हैं, कौरव कमजोर हैं तो मैं बलवान पांडवों का संहार करके कमजोर कौरवों की मदद करूंगा |

उन्होंने बर्बरीक को समझाने की कोशिश की लेकिन बर्बरीक अपनी योजना पर अटल रहा इसलिए श्रीकृष्ण ने उसका सर काट दिया इसके बावजूद उन्होंने उसकी अंतिम इच्छा पूरी की |उसकी इच्छा थी कि वह महाभारत के युद्ध में महारथियों को युद्ध करते हुए देखे | 

प्रभु ने उसकी इच्छा पूरी की |सर कटने के बावजूद उसने पूरा युद्ध देखा और प्रभु की प्रभुताई देखी |

श्रीकृष्ण चाहते थे कि बर्बरीक ने जो देखा वह किसी को भी बताया न जाए |

यहाँ बर्बरीक श्रीकृष्ण का प्रतिवाद करते हुए कहता है कि जो मैं जानता हूँ वह अगर नहीं कहता तो वह सत्य को छिपाना हुआ और सत्य को छिपाना झूठ बोलने के बराबर है |

बर्बरीक की इस बात को श्रीकृष्ण ने भी स्वीकार किया और बर्बरीक ने सत्य बताकर अर्जुन के वीरता के अभिमान की हवा निकाल दी |

यहाँ एक नया विषय शुरू होता है |आज का समाज अभिमानप्रधान है |किसी को अपनी जाति का अभिमान है तो किसी को कुल का |किसी को अपनी संपत्ति का अभिमान है तो किसी को अपने समाज का |किसी को अपनी सुंदरता का अभिमान है तो किसी को वीरता का |

राजा बलि भक्त प्रह्लाद के पौत्र थे और बहुत दानशील थे |उन्हें भी सूक्ष्म अभिमान था तभी तो भगवान के वामन रूप ने जब सिर्फ तीन पग भूमि मांगी तो बलि ने उपहास करते हुए कहा-हो आप बालक ही,अन्यथा हमारी हैसियत के अनुसार मांगते |

भगवान हर अहंकार को समाप्त करते हैं |भक्त के अहंकार को जल्दी समाप्त करते हैं क्यूंकि उसका पक्ष करते हैं और शेष अभिमानी अपने अभिमान के वृक्ष को सींचते रहते हैं और पाप का घड़ा भरता रहता है |

अर्जुन तो प्रभु का प्रिय था लेकिन महान धनुर्धर था |वास्तव में अर्जुन के मन में अहंकार छिपा हुआ था कि वह सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी है तथा महाभारत के युद्ध में जो विजय हुई वह उसकी वीरता का परिणाम था |

बर्बरीक इस तथ्य को भली-भाँति जानता था कि उसने किसी वीर को युद्ध करते नहीं देखा |हर ओर सुदर्शन चक्र ही चलता उसने देखा |उसने यह बात साफ़-साफ़ अर्जुन के सामने बता दी |इस प्रकार अर्जुन के अहंकार की हवा निकल गयी |  

यदि अहंकार टूटता है तो मनुष्य को बड़ी राहत मिलती है इसीलिए अध्यात्म अहंकार के विरुद्ध मनुष्य को सावधान करता है |इस प्रकार उसे विनाश से बचा लेता है |