उनका मानना था कि पर्यावरण सिर्फ हवा आदि प्राकृतिक तत्वों पर आधारित नहीं होता बल्कि मानसिक संतुलन से भी प्रभावित होता है |बाबा हरदेव सिंह जी भीतर और बाहर दोनों ही प्रकार के पर्यावरण संतुलन पर बल देते थे |
कल हमने सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी का जन्मदिन मनाया |
जब वे हमारे बीच में थे तब उनके जन्मदिन पर मैंने एक प्रश्न उठाया था ,(संभवतः वर्ष 1995 में )जो कि सिर्फ मेरा प्रश्न नहीं था बल्कि उन सबका था जो तीन लोक ,नौ खण्डों में गुरु को सबसे बड़ा मानते हैं |वास्तव में मैंने बचपन से ही इस काव्यांश को सुना है जिसे मिशन के लोकप्रिय प्रचारक महात्मा जोगिन्दर सिंह जी कमल (ऋषि कमल जी )अक्सर ही बोलते थे कि-
तीन लोक नौ खंड में गुरु से बड़ा न कोय
कर्ता करे न कर सके,गुरु करे सो होय |
इस काव्यांश की सत्यता में मुझे रत्ती भर भी संदेह नहीं था इसलिए मैंने प्रश्न किया कि अपने गुरु को यदि हम 23 फरवरी 1954 को जन्मा माने तो फिर उन्हें तीन लोक ,नौ खंड में सबसे बड़े तो नहीं मान रहे ?फिर वे अनेकों से छोटे होंगे और अनेकों से बड़े |
2016 में बाबा जी ने अपनी शारीरिक यात्रा पूरी कर ली |
बाबा जी को अपने बीच न पाने की स्थिति में उनसे जुडी हर चीज मेरे लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गयी ,यहाँ तक कि 23 फरवरी भी और उनकी पुण्य तिथि भी ,जिसे मिशन समर्पण दिवस के रूप में मनाता है |
उनके प्रवचनों से मेरा प्रेम है ही ,चूंकि वर्ष 2013 में जब बाबा जी हमारे मध्य थे ,हमें प्रगतिशील साहित्य नामक मासिक पत्रिका शुरू करने की RNI से स्वीकृति मिल गयी और सितंबर 2013 में पहला अंक निकला ,तब से लेकर अब तक (फरवरी 2023 तक )उनके प्रवचन निरंतर प्रकाशित हो रहे हैं,उन्हें बदलने की आवश्यकता कभी अनुभव नहीं हुई क्यूंकि उनकी दृष्टि असीम थी |
आज भी उनके प्रवचन मुझे सही दिशा दिखाते हैं और उन्हें लिखने से मुझे एक दिव्य ऊर्जा मिलती है |
बाबा हरदेव सिंह जी का कोई भी प्रवचन मेरी सोच ,मेरी दृष्टि को फैलाता है |
उनके पूर्ववर्ती सत्गुरु बाबा गुरबचन सिंह जी रहे हों,या पश्चातवर्ती ,वर्तमान सत्गुरु माता सुदीक्षा जी,सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी अपने प्रवचनों में इन दोनों को ही समाहित कर लेते हैं |
इससे स्पष्ट है कि शरीर में वर्तमान न होने के बावजूद वे आज भी आस-पास महसूस होते हैं उनकी दृष्टि समयातीत है |अध्यात्म को वैसे भी किसी काल-खंड में सीमित नहीं किया जा सकता |
अध्यात्म वह विषय है,जिसमें आत्मा का अध्ययन किया जाता है और आत्मा कभी नयी या पुरानी नहीं होती |बाबा हरदेव सिंह जी ने इसे सबकी आत्मा के साथ जोड़ दिया क्यूंकि वे कहते थे -धर्म जोड़ता है तोड़ता नहीं |
अभी तो हम धर्म को अनेक टुकड़ों में विभाजित देख रहे हैं लेकिन बाबा हरदेव सिंह जी ने वर्षों पहले लिखा-peace -not pieces |
उन्होंने हर धर्म के लोगों को कहा-मानव प्रभु की उत्तम रचना,ऊँचा इसका रुतबा रखना |उनकी लिखी- कही बातें वर्षों बाद भी अपनी सत्यता को सबके कानो में उद्घोषित करती रहेंगी |उनकी आभा कभी भी धूमिल नहीं हो सकतीं |उनकी चमक कभी भी फीकी नहीं पड़ सकती क्यूंकि सत्य कभी भी अतीत नहीं हो सकता क्यूंकि सत्य की सदैव ही विजय होती है |
उनके समक्ष मैंने कभी स्पष्ट कहा था-आँख मूंदे तो हो कल्पना ,
आँख खुले तो हो दर्शन आपका |
सिर झुके तो हो बंदगी,
सिर उठे तो हो वंदन आपका |
जुबाँ बंद हो तो हो सिर्फ चिंतन -
जुबाँ खुले तो हो गुण-वर्णन आपका |
दिल कहता है बार-बार ,हे प्रभु ,परवरदिगार
शुक्रिया,मेहरबानी,धन्यवाद,अभिनन्दन आपका |
यह अभिनन्दन अभी भी बिलकुल वैसा ही ताज़ा है,जैसा वर्षों पहले था |