काल के आने से पहले प्रभु के साक्षात्कार का काम कर लेना है, तभी मानव जीवन पाना भाग्य की बात होगी - निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी



(प्रस्तुति-आर.के.प्रिय )

निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी का विज़न बहुत बड़ा था |उसमें सबके समाहित होने की गुंजाईश थी इसलिए वर्ष में लगभग दस महीने वे विभिन्न स्थानों पर रहने वाले लोगों तक वे पहुंचते रहते थे |उनका कहना था -एक परमेश्वर को जानो,मानो और एक हो जाओ |

वे सिर्फ बड़े शहरों में नहीं जाते थे बल्कि बिहार,बंगाल,उड़ीसा आदि अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों के गांवों में रहने वाले बिलकुल सामान्य व्यक्तियों तक उनकी पहुँच थी |वे उनकी बातों को ध्यान से सुनते थे और उनका मानवीय समाधान निकालते थे |

इन स्थानों में विदेश के स्थान भी सम्मिलित रहते थे लेकिन उन्होंने अपनी निजी ज़रूरतों को बहुत ही सीमित रखा हुआ था इसलिए हर इंसान से अपनत्व का नाता बना लेते थे |

ऐसी ही एक यात्रा में वे हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में पहुंचे |वहां बाबा जी ने जो भावनाएं प्रकट कीं उनसे स्पष्ट हो जाता है कि उनका विज़न कितना विशाल है -   

अनेकों प्रांतों में जाने का मौका मिलता है,दिल्ली में चार महीने ही रह पाते हैं बाकी के आठ महीने देश के विभिन्न भागों में बीतते हैं,कभी असम,कभी बंगाल ,कहीं महाराष्ट्र,कहीं गुजरात ,राजस्थान,आंध्र,उड़ीसा ,मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़ ,बिहार ,झारखण्ड ,पंजाब ,हरियाणा आदि |अनेकों प्रांतों में साल भर में जाने के मौके मिलते है |(यह पढ़कर पाठक यह सोच सकते हैं कि बाबा जी वर्ष भर में कुछ चुने हुए स्थानों पर हर वर्ष जाते थे लेकिन ऐसा नहीं है |इसी प्रवचन के शुरू में ही उन्होंने जिक्र किया कि एक स्थान पर गए हुए ,दस दस साल हो जाते है |इस प्रकार उनकी यात्रायें बहुत सघन होती थीं |

वास्तव में उनकी लोकप्रियता बहुत थी और उसका कारण था उनकी सहजता |

(वे एक कविता का अक्सर जिक्र करते थे ,जिसमें कहते थे-आज अगर पनीर नहीं तो दाल में ही खुश हूँ -हर हाल में खुश हूँ |) इसके अलावा विश्व के चन्द मुल्कों में भी जाने का मौका मिला जैसे इसी वर्ष फरवरी के महीने में ऑस्ट्रेलिया ,न्यूजीलैंड और सिंगापुर में जाने का मौका मिला |अभी जून ,जुलाई अगस्त दो महीने पूरे यूरोप ,अमेरिका,कनाडा में बिताने को मिले |और इससे पहले हिंदुस्तान में ,जैसे उत्तराखंड का समागम हरिद्वार में हुआ ,जबलपुर में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश का समागम ,रांची में झारखण्ड और बिहार का साँझा समागम ,इसके अलावा शहरों,कस्बों ,गांवों की यात्रायें होती रहीं |कई वर्षों से यह सिलसिला चल रहा है |देखा जा रहा है कि हर स्थान पर भक्तजन इस निराकार को प्राप्त करके उत्साहित हैं |इस सत्य से हर किसी को अवगत कराने के लिए यत्नशील हैं |

सन्तों का शाश्वत परोपकार 

हर युग में सन्तों ने दुनिया पर यही उपकार किया है |यही सन्देश दिया कि-हे इंसान ,तू जीवन के मनोरथ को जान ले |जीवन के लक्ष्य को जानकर उसकी पूर्ति भी कर ले | 

जीवन तू जी लेता है,उम्र भोग लेता है |सांसारिक सिलसिलों में उलझकर पूरा समय गँवा देता है |अनेकों दुनियावी उपलब्धियां भी तेरे हिस्से में आ जाती हैं लेकिन जो जीवन का लक्ष्य था ,उससे चूक जाता है |महात्मा यही समझाते हैं कि इस जीवन को देकर मालिक ने हमें एक मौका दिया है |यह सुनहरी अवसर मिला है,मानव जीवन देकर मालिक ने अवसर दे दिया कि आत्मा अपने मूल की पहचान कर ले |

आत्मा की समस्या 

आत्मा शरीरों में रह -रहकर अपने आपको शरीर मान लेती है |परमात्मा की अंश होने के बावजूद यह आत्मा इतने बड़े भ्रम में आ जाती है |कोई कह सकता है कि-परमात्मा की अंश है,फिर भ्रम क्यों ?

परमात्मा,जो निराकार है,सूक्ष्म से भी सूक्ष्म ,अतिसूक्ष्म है,इसका अंश होने के सावजूद आत्मा को भी भ्रम लग जाता है |शरीरों में रह रहकर यह अपने आपको शरीर ही मानने लगती है |महापुरुष -संतजन कहते हैं कि मानव तन में आकर इस आत्मा ने अपने असली अस्तित्व को जानना है |अपने मूल की पहचान करनी है |जानना है कि मैं एक ऐसे नूर की अंश हूँ -जो शाश्वत है,कायम-दायम रहने वाला है | जिसके बारे में कहा गया है-

ज़मी-जमा के विखे समस्त एक जोत है 

ना वाद है ना ,घाट है,न वाद -घाट होत है |      

तथा यह भी -

जल ,थल, मइयल पूरिया स्वामी सिरजनहार |

मैं इसी की रूप ,इसी की अंश हूँ |मैं इसी का नूर हूँ |यह एक बोध प्राप्त करना ,आत्मा के लिए यह एक अवसर के रूप में है,जब यह इंसानी जन्म मिलता है |इसीलिए कहते हैं-

बड़े भाग्य मानुष तन पावा |सुर दुर्लभ सदग्रन्थहिं गावा

वेद आदि धर्म ग्रन्थ यही कह रहे हैं कि बहुत भाग्य से यह मानव तन मिला है |भाग्य की बात तभी साबित होगी जब ब्रह्मज्ञान प्राप्ति का यह कर्म भी कर लिया जायेगा |अगर सारी उम्र यूँ ही बिता दी ब्रह्मज्ञान प्राप्ति का यह कर्म ही नहीं किया तो कहते हैं कि तुझे मानव जन्म मिला यह सौभाग्य की बात थी लेकिन अब शर्मिंदगी है कि वह काम किया ही नहीं,जिसके लिए यह जन्म मिला था |इतनी आयु भोगकर भी वह काम नहीं किया ,जिसके लिए आया था ,लानत है -

जन्म लिया इंसान का,पता नहीं भगवान का  ,वाह रे वाह तेरी बन्दगी | 

अगर प्रभु प्राप्ति का लक्ष्य ही नहीं पा सका तो तेरे जीवन का क्या मोल रहा |

फरीद जी जैसे सूफी सन्तों ने समझाया- 

तन सुक्का पिंजर किया ,तालियां खुग्गे काग 

अजे तू रब न बोहड़ियो ,देख बन्दे दे भाग |

कहते हैं कि शरीर जर्जर हो गया ,हड्डियों का ढांचा मात्र रह गया ,इतनी कमजोरी आ गयी है कोई पंछी भी अगर मांस भी नोचने लगे तो उसे उड़ाने की  शक्ति भी नहीं बची ,कहने का भाव कि इतनी लम्बी आयु मिली लेकिन अभी तक अज्ञान अंधकार बना हुआ है |अभी भी आत्मा ने अपने मूल को जाना नहीं है इसलिए मन्दभागा है |

भाग्यवान होने की परिभाषा ,कसौटी भिन्न 

हम प्रायः भाग्यवान उसे मानते हैं जिसकी सेहत अच्छी हो,जिसका काम-काज चल निकले,शरीर हृष्ट -पुष्ट हो तो अक्सर कह देते हैं कि यह बहुत भाग्यवान है लेकिन भक्तों-सन्तों-महापुरुषों की परिभाषाएं भिन्न होती हैं |

यदि दौलतमंद की बात करें तो दुनिया की परिभाषा कुछ और होगी लेकिन भक्तों-सन्तों-महापुरुषों की परिभाषा कुछ और होगी |दुनिया के पैमाने दुनियादारी पर आधारित होंगे ,दौलत और झूठी शान-ओ-शौक़त पर आधारित होंगे लेकिन महापुरुष भाग्यवान कहने से पहले यह देखेंगे कि इसने सच्ची दौलत पायी या नहीं ?मंज़िल-ए-मक़सूद को पा लिया है या नहीं ?.सन्त -महात्मा -भक्त प्रभु के ज्ञान को प्राप्त करने को ही भाग्य की बात मानते हैं | 

अगर निज घर को जाना ही नहीं तो निज घर में वास कैसे होगा ?आत्मा को ठिकाना कहाँ मिलेगा ?मोक्ष और मुक्ति कहाँ मिलेगी |अगर ब्रह्मज्ञान की उपलब्धि हुई तभी मानव जीवन सार्थक होगा |

ब्रह्मज्ञान से ही जीवन सफल 

अगर प्रभु की प्राप्ति हो गयी तो बड़े भाग्य मनुष्य तन पावा को सार्थकता मिली है |तब वास्तव में जीवन को पूर्णता मिली है |

इसी तरह अगर दौलतमंद होने की बात करें तो दुनिया में दौलतमंद उसे मानते हैं ,जिसके पास चार पैसे हैं,बैंक बैलेंस है |कुछ और भी साधन और पदार्थ हैं |उसे धनाढ्य माना जाता है लेकिन कबीर जी जैसे सन्त कहते हैं-

कबीर सब जग निर्धना धनवंता नहीं कोय 

धनवंता सो जानिये जाके राम नाम धन होय |

दुनियावी दौलत होते हुए भी लोग कंगाल हो सकते हैं |धन तो होता है लेकिन मीराबाई जिसे कहती है कि-

पायो री मैंने राम रतन धन पायो | 

मीराबाई राजा के घर पैदा हुई थी लेकिन इसलिए उसने स्वयं को अमीर नहीं माना ,अमीर तब माना जब राम नाम की सच्ची दौलत मिल गयी - 

पायो री मैंने राम रतन धन पायो |

वस्तु अमोलक दीनी मेरे सत्गुरु कर किरपा अपनायो |

मुझ पर सत्गुरु की कृपा हुई है तो यह सच्ची दौलत मिली है |यह ऐसी दौलत है जिसे आग नहीं जलाती,पानी गीला नहीं करता |इसका कोई अन्त नहीं है |

इस प्रकार की महापुरुषों की परिभाषा है दौलतमंद होने की |ये मानते हैं कि वास्तव में धनाढ्य वह है जिसको यह सच्ची दौलत प्राप्त हो गयी |वह कुटिया में रहकर भी महलों वाला है |इस प्रकार सन्तों-महात्माओं -भक्तों की परिभाषाएं भिन्न हुआ करती हैं |

यह जागरूकता ही सन्तों की देन

इस प्रकार सदा ही सन्त-महात्मा इन पहलुओं की तरफ जागरूक करते आये हैं |हमने ऐसे कदम उठाने हैं सन्तों के माध्यम से इस प्रभु से नाता जोड़ना है |हमें यह प्राप्ति कर लेनी है |मानव जन्म प्राप्त हुआ है इसलिए ध्यान रखना है कि यह अवसर हाथों से चला न जाए |कहते हैं कि- 

टाले-टोले दिन गया ,ब्याज बढन्तो जाय |   

न हर भज्यों ,न खत पट्यो ,काल पहुंचियो आय | 

काल के आने से पहले यह काम कर लेना है |यह प्राप्ति करने का अवसर हाथों से निकल न जाये |जैसे कहते भी हैं-

चकवी ज्यों निश बिछरे,आय मिले प्रभात 

ज्यों नर बिछरे राम से न दिन मिले ना रात 

जैसे चकवी और चकवा -एक ,किनारे पर और दूसरा ,दूसरे किनारे पर |रात को बिछुड़ जाते हैं और सुबह होने पर फिर मिल जाते हैं |

कहने का भाव कि इंसानी जन्म मिल गया ,इस प्रकार प्रभात तो हो गयी लेकिन राम से नाता न जुड़ा तो फिर मिलाप नहीं हुआ इसलिए हमें इस मानव जन्म का लाभ उठाना है,राम से नाता जोड़ना है |  

 निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी का विज़न बहुत बड़ा था |उसमें सबके समाहित होने की गुंजाईश थी इसलिए वर्ष में लगभग दस महीने वे विभिन्न स्थानों पर रहने वाले लोगों तक वे पहुंचते रहते थे |उनका कहना था -एक परमेश्वर को जानो,मानो और एक हो जाओ |