भक्ति पर्व समागम (15 जनवरी 2023 ) पर विशेष -
निरंकारी मिशन में निरंतर होने वाले सन्त समागमों की शुरूआत वर्ष के शुरू होते ही ,अर्थात जनवरी में ही हो जाती है |उत्तर भारत में इन दिनों प्रायः सर्दी का मौसम रहता है |14 जनवरी के आस -पास हरियाणा और उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति का त्यौहार होता है |पंजाब में इन दिनों लोहड़ी की धूम होती है |
पुराने बुजुर्ग अक्सर याद करते हैं कि जनवरी में समागम आयोजन की शुरूआत युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी के समय में हुई |यह महात्मा सन्तोख सिंह जी का विशेष योगदान था |
उसका एक विशेष कारण भी था |बाबा अवतार सिंह जी सरोवर क्षेत्र को विकसित करना चाहते थे चूंकि कि उन दिनों सरोवर तक आना -जाना बहुत कठिन था इसलिए वहां रह पाना लगभग असंभव था |महात्मा संतोख सिंह जी गुरु के प्रति बहुत समर्पित महात्मा थे |बाबा अवतार सिंह जी का संकेत पाकर महात्मा सन्तोख सिंह जी ने निःसंकोच इस आशय को पूरा करने का संकल्प लिया |अपनी धर्मपत्नी तुलसी जी और परिवार के साथ वे (लगभग निर्जन ),सरोवर क्षेत्र में आकर बस गये |
महात्माओं से सुना है कि वर्ष में एक बार लोहड़ी के शुभ अवसर पर वे अपने सत्गुरु और उनके सन्तों को सरोवर क्षेत्र में बुलाते थे |इस दिन वे सत्गुरु बाबा अवतार सिंह जी और आने वाले सन्तों का स्वागत बहुत धूम -धाम से करते थे |
विभाजन के बाद बाबा अवतार सिंह जी ने निरंकारी मिशन को वर्तमान भारत में स्थापित किया तो भक्ति का यह अभियान कर्मरूप में सामने आया |उनके इस संकल्प में जिन्होंने अपने कर्म से योगदान दिया ,उनमें संतोख सिंह जी प्रमुख थे |उनके योगदान को महत्व देते हुए ही बाबा अवतार सिंह जी ने उन्हें भी बाबा के सम्बोधन से विभूषित किया |
इसकी पृष्ठभूमि यह है कि विभाजन से पहले बाबा संतोख सिंह जी सिंधी समाज के सम्मानित गुरु थे | सूफी सन्त बुल्लेशाह की वाणियों का गायन वे पूर्ण तन्मय होकर करते थे |यह परंपरा लम्बे समय तक जारी रही |
विभाजन के बाद जब बाबा अवतार सिंह जी ने वर्तमान भारत में मिशन को स्थापित किया तो सन्त निरंकारी मंडल के नाम से इसका संगठन अस्तित्व में आया |इस संगठन के प्रधान बनाये गए -महात्मा लाभ सिंह जी |डॉ .देसराज जी को उपप्रधान बनाया गया |रामसरन जी को सेक्रेटरी रूप में सेवाएं दी गयीं |कोषाध्यक्ष की सेवा महात्मा जुगलकिशोर जी को दी गयी |बाबू महादेव सिंह जी को सह सचिव बनाया गया |महात्मा रामचंद्र जी को भंडारी और महात्मा संतोख सिंह जी को पत्रिका -प्रकाशन का जिम्मा सौंपा गया |
इन सब सन्तों की अपनी विशेषताएं थीं |सन्त -साहित्यकार निर्मल जोशी जी बताते थे कि ये सातों महात्मा बहुत समर्पित भक्त थे इसलिए संगतों में उनका बहुत सम्मान था |निर्मल जोशी जी इन सातों सन्तों की बहुत प्रशंसा करते थे |उसका कारण यह था कि उस समय अध्यात्मिकता ही प्रधान थी ,प्रशासन तो नहीं के बराबर था |
नियम कम थे इसलिए सन्तजनों और सत्गुरु के वचनो का पूर्ण पालन सुनिश्चित था |महात्माओं के विचारों का भी वैसा ही पालन किया जाता जैसा सत्गुरु के वचनो का |
मिशन की आंतरिक व्यवस्था में भी भक्ति ही प्रधान थी |
1978 में मिशन की परिस्थितियाँ लगभग प्रतिकूल थीं लेकिन सत्गुरु की कृपा से निरंकारी भक्तों में भक्ति की पूर्ण प्रतिष्ठा बनी रही ,निरंकार पर पूर्ण यकीन बना रहा और मिशन निरंतर विकास की और अग्रसर रहा |जहाँ तक मुझे स्मरण है ,1981 में भक्ति पर्व समागम सन्तोख सरोवर के निकट ऐतिहासिक स्थल (ब्रिटिश सम्राट के स्मारक कोरोनेशन पिलर )पर आयोजित हुआ था |
बाबा हरदेव सिंह जी का युग नया -नया शुरू हुआ था |बाबा हरदेव सिंह जी के सम्मान में साध संगत की ओर से एक अभिनन्दन पत्र भूपेंद्र बेकल जी ने पढ़ा था |
उससे पहले 1979 के भक्ति पर्व समागम में राजकवि गुरबख्श सिंह जी का वक्तव्य भी काफी चर्चित हुआ था |उस समय संगतों का जोश काफी बुलंद था |
काफी सन्त -महात्मा करनाल जेल से रिहा होकर समागम में आये थे |मिशन पर जो प्रश्नवाचक चिन्ह लगे थे ,मिशन उससे सफलतापूर्वक बाहर निकला था |इस प्रकार करनाल से आये महात्मा बाबा गुरबचन सिंह जी के संरक्षण में विजयी सेनानी की गौरवपूर्ण भूमिका में थे |
1986 में सन्त निरंकारी पत्रिका कार्यालय से मेरा जुड़ाव हुआ |तब से लेकर अभी तक भक्ति पर्व समागम में अनेक सन्तजनों के अनुभवों को सुनने का अवसर मिलता रहा है |
भक्ति पर्व के अवसर पर संगतों को महात्मा अमर सिंह जी (पटियाला ),भगत रामचंद जी (कपूरथला वाले ),धर्मसिंह जी शौक़ (चंडीगढ़ वाले ),हरनाम सिंह जी (लुधियाना वाले )आदि महात्माओं की चर्चा करते अक्सर ही सुना है |
1986 से निरंतर ये समागम देखकर यह भली-भॉँति महसूस किया है कि निरंकारी मिशन की आधारशिला तो भक्ति पर ही टिकी है इसलिए निरंकारी सन्तों की भक्ति को तो हमेशा मजबूत होना चाहिए |
भक्ति के बारे में गुरु साहिब कहते हैं - भक्ति करो जी ऐसे ऐसे ध्रुव प्रह्लाद जपों हरी जैसे |
इस प्रकार प्राचीन काल से ही महात्माओं ने भक्ति की प्रेरणा दी है |बाबा हरदेव सिंह जी सेवा -सुमिरन -सत्संग को ही भक्ति के लक्षण मानते थे |निरंकारी मिशन का वर्तमान नेतृत्व सत्गुरु माता सुदीक्षा सविंदर हरदेव जी के सबल हाथों में है और उनके लगभग हर प्रवचन में भक्ति की यह प्रेरणा विद्यमान रहती है |
भक्ति की यह प्रेरणा निरंकारी श्रद्धालुओं के व्यवहार का अंग बनी रहेगी ,ऐसी आशा हमें मानवता के उज्जवल भविष्य का विश्वास दिलाती है |धन निरंकार जी