भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता की भावना को मानवता का आधार मानती है |इसका एक कारण तो यह है कि परमात्मा ने मानव की रचना विविधता में की है |सब मनुष्य गोरे रंग के नहीं इसी प्रकार सब मनुष्य काले नहीं है |हमारे विद्वानों का कहना है कि यहाँ भाषाएँ भी बहुत हैं और बोलियों की तो गणना भी नहीं कर सकते इसलिए मानव-मानव में प्रेम को ही आधार बनाना चाहिए |
निरंकारी मिशन के वार्षिक सन्त समागम के एक कवि सम्मेलन का वर्षों पहले शीर्षक रखा गया था -
प्यार हमारा धर्म है, इंसानियत ईमान है |
प्रेम और मानवता तो सृष्टि को बचाने के बुनियादी तत्व हैं |यही ऐसे तत्व हैं जो देश को भी जोड़ते हैं और दुनिया को भी |इन्हीं तत्वों को आधार बनाकर निरंकारी मिशन आज भी कार्यरत है |
धरती भी एक जैसी नहीं बनायीं -कहीं पहाड़ बना डाले |समुद्र और रेगिस्तान बना डाले | इस विविधता की अपनी ख़ूबसूरती है लेकिन इंसान इसकी कदर करने की बजाय विविधता को अलगाव का कारण बना लेता है | संकुचित और अंधकार में डूबे हुए मन अपनी अज्ञानता वाली सोच के कारण वरदान को अभिशाप में बदल लेते हैं | इंसान की ऐसी सोच सदियों से चलती आयी है |
विश्वप्रसिद्ध विरासत ताजमहल का जिक्र करते हुए बाबा जी ने कहा कि ताजमहल के बारे में अक्सर कहा जाता है कि -एक बादशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल ,सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है |इस प्रकार ताजमहल को प्रेम का प्रतीक माना जाता लेक्किन किसी विद्वान ने कहा कि- इक शहंशाह ने बनवा कर हसीं ताजमहल हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मजाक |
नकारात्मक विचारों की ऐनक पहनकर खूबसूरत इमारत को नफरत का कारण बना लिया | ये हमारी नकारात्मक सोच ही है जिसने धरती को स्वर्ग नहीं बनने दिया है इसलिए संत-महात्मा-गुरु-पीर -पैगम्बर सकारात्मक दृष्टि की बात ही कहते आये हैं |