अध्यात्म - एकरूपता असम्भव - एकता चाहिए

- निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी

भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता की भावना को मानवता का आधार मानती है |इसका एक कारण तो यह है कि परमात्मा ने मानव की रचना विविधता में की है |सब मनुष्य गोरे रंग के नहीं इसी प्रकार सब मनुष्य काले नहीं है |हमारे विद्वानों का कहना है कि यहाँ भाषाएँ भी बहुत हैं और बोलियों की तो गणना भी नहीं कर सकते इसलिए मानव-मानव में प्रेम को ही आधार बनाना चाहिए |

निरंकारी मिशन के वार्षिक सन्त समागम के एक कवि सम्मेलन का वर्षों पहले शीर्षक रखा गया था -

प्यार हमारा धर्म है, इंसानियत ईमान है |

प्रेम और मानवता तो सृष्टि को बचाने के बुनियादी तत्व हैं |यही ऐसे तत्व हैं जो देश को भी जोड़ते हैं और दुनिया को भी |इन्हीं तत्वों को आधार बनाकर निरंकारी मिशन आज भी कार्यरत है |     

आगरा में हुए उत्तर प्रदेश के प्रादेशिक सन्त समागम को सम्बोधित करते हुए वर्ष 2011  में निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी ने कहा कि प्रभु ने अवश्य ही यह विश्व विविधता से युक्त बनाया है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि -प्रभु इंसानो के बीच दीवारें खड़ी करना चाहता है | अनेकता वास्तव में ख़ूबसूरती के रूप में है |अगर इंसानो के वजूद की ही बात करें तो एक की शक्ल दूसरे से नहीं मिलती |शक्ल यदि थोड़ी बहुत मिल भी जाये तो आवाज़ नहीं मिलती |अंगूठे के निशान तो बिलकुल नहीं मिलते |और तो और शरीर की गंध तक नहीं मिलती |इस प्रकार प्रभु ने दुनिया विविधता में बनायीं है |चौरासी लाख योनियां हैं कितनी तो जल में ही पैदा होती हैं और जल में मर-खप जाती हैं |

धरती भी एक जैसी नहीं बनायीं -कहीं पहाड़ बना डाले |समुद्र और रेगिस्तान बना डाले | इस विविधता की अपनी ख़ूबसूरती है लेकिन इंसान इसकी कदर करने की बजाय विविधता को अलगाव का कारण बना लेता है | संकुचित और अंधकार में डूबे हुए मन अपनी अज्ञानता वाली सोच के कारण वरदान को अभिशाप में बदल लेते हैं |  इंसान की ऐसी सोच सदियों से चलती आयी है |

दुनिया में इंसानो की कितनी भाषाएँ,जर्मन भाषा,लेटिन,फ्रेंच आदि कितनी ही भाषाएँ |हिंदुस्तान को देखें तो यहाँ भी कितनी भाषाएँ और आगे उनकी बोलियां | पहनावे बोली आदि के भेद ये ख़ूबसूरती प्रकट करने के माध्यम हैं |भिन्नताएं तो कितने ही प्रकार की हैं लेकिन ज़रुरत है बीच में धागे की,जो भिन्न-भिन्न फूलों को पिरो डाले |अनेकता में एकता -सोचने की बात यह है कि एकरूपता (Uniformity) संभव ही नहीं है |इसके बावजूद मजहब वाले,धर्म वाले इस विविधता को ही झगडे के कारण बना लेते हैं |डराकर,धमकाकर,जुल्म-ओ -सितम  करके यही रास्ता अपनाते आये हैं कि Uniformity (एकरूपता )लानी है |जैसा पहनावा हम पहनते हैं वैसा पहनो ,हम जिस तरफ मुख करके इबादत करते हैं उसी तरफ मुख करके इबादत करो |हम जिस दिन को पावन मानते हैं,तुम भी उसी दिन को पावन मानो |जिस गुरु-पीर-पैगम्बर को हम मानते हैं बाकी लोग भी उन्हीं को माने |

हम जो भोजन स्वीकार करते हैं बाकी लोग भी वही भोजन स्वीकार करें |हम  जो भाषा बोलते हैं वो बोलो कोई और भाषा बोलोगे तो मौत के घाट उतार देंगे ,ऐसी सोच इंसानो वाली सोच नहीं है | इस प्रकार के लोग हमेशा से एकरूपता लाने की कोशिशें करते आये हैं |  जो ख़ूबसूरती थी ,अपनी संकीर्णता और अज्ञानता के कारण उसे अभिशाप बना डाला |अपनी खुदगर्जियों के कारण नहीं समझे-गुरु-पीर-पैगम्बरों की शिक्षाओं को |   

विश्वप्रसिद्ध विरासत ताजमहल का जिक्र करते हुए बाबा जी ने कहा कि  ताजमहल के बारे में अक्सर कहा जाता है कि -एक बादशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल ,सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है |इस प्रकार ताजमहल को प्रेम का प्रतीक माना जाता लेक्किन  किसी विद्वान ने कहा कि- इक शहंशाह ने बनवा कर हसीं ताजमहल हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मजाक |

यह इंसान की सोच ही है अन्यथा बादशाह शाहजहां ने ताजमहल बनवाया वह किसी का मज़ाक उड़ाने के लिए नहीं बल्कि अपनी मुहब्बत की भावना के कारण बनवाया |इसीलिए कहा गया है-जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि |जैसे रंग की ऐनक हम पहनने लगते हैं वैसा ही रंग हमारी दृष्टि पर छा  जाता है |

नकारात्मक विचारों की ऐनक पहनकर खूबसूरत इमारत को नफरत का कारण बना लिया | ये हमारी नकारात्मक सोच ही है जिसने धरती को स्वर्ग नहीं बनने दिया है इसलिए संत-महात्मा-गुरु-पीर -पैगम्बर सकारात्मक दृष्टि की बात ही कहते आये हैं |