-रामकुमार सेवक
भारत एक भिन्न किस्म का राष्ट्र है |स्वामी विवेकानंद कहा करते थे कि भारत का आधार है-धर्म |पश्चिम का आधार है -विज्ञानं |उनका कहना था कि भारत को पश्चिम से विज्ञानं सीखना चाहिए और पश्चिमी देशों को धर्म का ज्ञान देना चाहिए |
इसी नाते विश्व में भारत की पहचान धर्म से है |मेगस्थनीज ,फाह्यान ,ह्वेनसांग,मैक्समूलर आदि भारत से धर्म ही सीखने आये थे |
इसका एक कारण यह भी है कि भारतीय मनीषियों ने जिस धर्म की चर्चा की है उसका रूप संकुचित नहीं था इसीलिए स्वामी जी ने कहा-यदि भारत धर्म का आधार छोड़ता है तो वह नष्ट हो जायेगा |
खेद का विषय यह है कि आज धर्म का स्वरूप विशाल नहीं रह गया है |कल ही माननीय उच्चतम न्यायालय ने नफरती भाषणों की व्यापकता पर चिंता प्रकट की |हम सब यह अच्छी तरह जानते हैं कि न्यायालय की चिंता काल्पनिक नहीं है |
भारत का चरित्र सांप्रदायिक कभी भी नहीं था जबकि नफरती भाषणों का आधार धर्म नहीं साम्प्रदायिकता है |
कोई भी समझ सकता है कि जिस देश का आधार वसुधैव कुटुंबकम हो,वह संकुचित हो ही नहीं सकता लेकिन पिछले कुछ वर्षों में धर्म को एक राजनीतिक औज़ार के रूप में बदल दिया गया है जबकि धर्म का काम जोड़ना है तोडना नहीं |धर्म का आधार है-प्रेम,शांति,मिलवर्तन को धारण करना |
माँननीय उच्चतम न्यायालय के निष्कर्ष के परिपेक्ष्य में यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि नफरती भाषणों का बढ़ता चलन देश,समाज और विश्व की भी चिंता बढ़ा रहा है |कई बड़े देशों और संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी भारत में बढ़ रही असहिष्णुता पर चिंता प्रकट की की है |हम कहना चाहते हैं कि धर्म हमारे लिए राजनीतिक सत्ता का माध्यम नहीं व्यक्तिगत आस्था का विषय है |यह मानव को नैतिक बल प्रदान करता है |
धर्म से प्राप्त नैतिक बल के आलोक में व्यक्ति में काम,क्रोध,लोभ व अहंकार के विकारों में कमी आनी चाहिए |यदि धर्म के आधार के बावजूद अहंकार में वृद्धि हो रही है तो हर व्यक्ति को आत्मचिंतन करना चाहिए कि गलती कहाँ हो रही है ?अपने धार्मिक आख्यानों में हम यह कितनी ही बार सुन चुके हैं कि सिकंदर ने विश्व विजय का सपना देखा |यह नींद में देखा गया कोई सुन्दर सपना नहीं था बल्कि एक दुर्लभ महत्वाकांक्षा थी |
महत्वाकांक्षा को मैं कोई अच्छी चीज नहीं मानता लेकिन महत्वाकांक्षा ही हमें निरतर सक्रिय रखती है |इसी के कारण कोई भी युवक नित नए लक्ष्यों को अर्जित करने के लिए सख्त मेहनत करते हैं |यहाँ मुझे एक विचारक का कथन याद आता है जिसने लिखा है कि सपने वे नहीं होते जिन्हें हम नींद में देखते हैं बल्कि वो होते हैं जो हमें सोने नहीं देते बल्कि जागने और आगे बढ़ते रहने को प्रेरित करते हैं |
स्वामी विवेकानंद कहा करते थे-
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत अर्थात उठो जागो और हमेशा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहो |