अध्यात्म : अगर पूजा करनी है तो खुद मंदिर बन जाना होगा - निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी

मोहाली में एक बार विशाल सत्संग समारोह को सम्बोधित करते हुए बाबा जी ने कहा कि-

कर्म से ही बोलों में असर 

कितनी ही बार देखने को मिलता है कि दो लोग एक ही बात कह रहे होते हैं लेकिन उनके असर एक जैसे नहीं होते |एक तो वो होता है जो कह तो आया लेकिन उसके व्यवहार में उन बोलों का कोई निशान नहीं होता |दूसरे के व्यवहारिक जीवन में उन बोलों का पूरा असर होता है | तो अपने व्यवहार से भी जो बात कहता है,उसके असर ज्यादा होते हैं |  उसे दुसरे व्यक्ति से ज्यादा सत्कार भी प्राप्त होता है | 

जिन भक्तों के नाम लिये जाते हैं,जिनकी उपासना की जाती है वह पूजा उनके बोलों के कारण नहीं की जाती बल्कि उनके कर्मो के कारण की जाती है |अगर उनके अक़ीदे या विश्वास की बात करें तो उनके कर्म ने साबित किया वाकई वे अक़ीदे वाले हैं ,विश्वासी हैं |जिन्होंने कर्म रूप में विनम्र व्यवहार किया उन्होंने सत्कार पाया |

भक्त हमेशा यही प्रार्थना करते हैं कि हमारी भक्ति सिर्फ पढ़ने और कहने तक सीमित न हो बल्कि जिन गुणों का जिक्र करते हैं,वे हमारे जीवन में शामिल हों |कर्म वाली भक्ति से ही हम सजीव रूप में पूजा करने वाले माने जा सकते हैं | 

खुद मंदिर बन जाना होगा 

दास अनेक बार यह बात कह चुका है कि अगर पूजा करनी है तो खुद मंदिर बन जाना होगा | मंदिर शब्द आता है तो ज़हन में पावनता की बात आती है |पावन -पवित्र ह्रदय से जब इस प्रभु की पूजा-अर्चना की जाती है तो पूजा पूर्ण होती है |जो निर्मल-पावन ह्रदय से पूजा करते हैं ,वे अपने आपको मात्र स्तुति गान तक सीमित नहीं रखते बल्कि अपने ह्रदय को निर्मल-पावन बनाने के लिए मेहनत भी करते हैं |जहाँ-जहाँ वे जाते हैं.पावनता-पवित्रता स्थापित होती चली जाती है |यही प्रार्थना-याचना भक्त करते आये हैं कि हम अपने कर्मो की तरफ सचेत भी रहें और भक्ति की मजबूती  कायम रहे | बोल कर्मो के रूप में तब तक संभव नहीं हो पाते जब तक दिलों की मजबूती न हो | दिलों की मजबूती यानी परिपक्वता से ही ऐसी अवस्था बन सकती है | 

परिपक्वता और भक्त प्रह्लाद 

परिपक्वता के कारण ही हम प्रह्लाद जैसे भक्तों का जिक्र करते हैं | अगर परिपक्वता न होती तो जरा सी आंच ही भक्त प्रह्लाद  को हिरण्यकश्यप का अनुकरण करने को प्रेरित कर देती |यह एक परिपक्वता ही थी जिसने उन्हें विचलित नहीं होने दिया |

हजरत ईसा मसीह जी ने भी कहा है-build  your  house  on a solid rock

अर्थात अपना मकान मजबूत चट्टान के ऊपर बनाओ -कहने का भाव- कमजोर आधार पर बनी इमारत में वैसी मजबूती नहीं होती | रेत का आधार इमारत को मजबूती नहीं दे सकता इसीलिए सन्त-महात्मा-भक्त मजबूत निरंकार को अपने विश्वास का आधार बनाते हैं |परिपक्वता उन उसूलों को आधार बनाने से आती है जो केवल जिक्र करने के लिए  नहीं होते |ऐसे उसूल कर्म के द्वारा अभिव्यक्त होते हैं |

अगर आधार मजबूत नहीं तो 

नए वर्ष पर अक्सर लोग संकल्प करते हैं लेकिन चूंकि उनके पीछे इरादों की मजबूती नहीं होती तो इसलिए वे व्यवहार के अंग नहीं बन पाते |Resolute Mind (संकल्प शक्ति ) जरूरी है resolutions (संकल्पों )को व्यवहार में लाने के लिए | उसके प्रति परिपक्वता,यकीन और एकाग्रता हो तो संकल्प व्यवहार के अंग बन जाते हैं |  संकल्प के इरादे की मजबूती ही संकल्प को व्यवहार का अंग बनाती है |  


Temptations (लालसाएं ) कहाँ से आती हैं 

लालसाएं भी उसी दरवाजे से आती हैं जिससे सकारात्मक गुण आते हैं |temptations के प्रति हम उस दरवाजे को पूरी तरह बंद नहीं करते |अगर बंद किया भी तो चिटकनी नहीं लगाते | भक्ति के सिद्धांतों ,उसूलों को संत-महात्माओं ने ही अपने व्यवहार के,जीवन के द्वारा दर्शाया है |  उनका अनुकरण-अनुसरण करने से हमें भी वही परिपक्वता प्राप्त होती है |

ऐसे भक्त ही अनुकरण-अनुसरण करने योग्य होते हैं |

परिपक्वता की ऊँचाई तक पहुँचने का कारण 

सन्त-महात्मा अगर उस ऊंचाई तक पहुंचे हैं तो उसका कारण इरादों की मजबूती ,एकाग्रता और यकीन ही है ,यह नहीं कि दस आदमियों ने जय बोल दी तो वे अनुकरण योग्य हो गए |उनकी अवस्था ने उन्हें वह ऊंचाई दी ,जिससे अनुसरण-अनुकरण और पूजा के योग्य हो पाए | जय-जयकार के कारण उनका रुतबा ऊंचा नहीं हुआ |

हीरे का रुतबा इसलिए ऊंचा नहीं है कुछ करोड़ लोगों ने कह दिया कि हीरा ज्यादा कीमती है बल्कि अपने विशेष गुणों के कारण है |यदि वे विशेष गुण न  रहे तो हीरा भी कांच जैसा ही रहा होता |उसकी कीमत उतनी ही रही होती |

हीरे और कांच की तुलना-रोचक प्रसंग 

हीरा और कांच एक जगह रखे थे |वो कांच भी इस कदर हीरे के तुल्य बनाया गया था कि एकदम हीरे जैसा लगता था |उसे पहचानना बहुत मुश्किल था |चूंकि यह एक चुनौती थी और बहुत सारे आदमी आ गए यह बताने के लिए कि कौन सा हीरा है और कौन सा कांच है ?

एक नेत्रहीन व्यक्ति भी यह पहचानने आया कि हीरे और कांच में से कांच कौन सा है |बाकी लोगों ने उसकी हंसी उड़ाई लेकिन उस व्यक्ति ने हंसी की परवाह नहीं की |बाकी लोगों की तरह उसने भी छूकर देखा और एकदम बोला कि जो पहले वाला था वो हीरा था |

लोग हैरान थे कि इसकी तो आँखें भी नहीं है फिर सही फैसला कैसे किया ?

वह बोला कि दोनों पर धुप थी लेकिन कांच ने धुप का असर ग्रहण किया और वह गर्म हो गया लेकिन हीरा वैसा ही बना रहा |धूप में रहकर भी वह उसी तरह रहा अर्थात उसमें गुणों की मजबूती थी,परिपक्वता थी | 

(प्रस्तुति - रामकुमार 'सेवक')