(02 अक्टूबर 2022 (महात्मा गाँधी के जन्मदिवस )को आयोजित एक सत्संग कार्यक्रम में अहिंसा पर विचार प्रकट करने का अवसर मिला |अहिंसा पर चिंतन करते हुए जो ध्यान आया ,आपके श्रीचरणों में प्रस्तुत है-)
अहिंसा मनुष्य की आस्तिकता का प्रमाण है |चूंकि इसमें यह विश्वास रखना होता है,कि परमात्मा ही सब कुछ का करता है और यह जो करने वाला है,वह मेरे लिए सदैव ही हितकर होगा |
यह बात कहने-सुनने में जितनी आसान है,व्यवहार में लागु करनी उतनी ही कठिन है |यह वैसे ही है जैसे हम एक गुरु की कहानी सुनते हैं जिनके पास एक माँ अपने बच्चे की गुड़ खाने की आदत छुड़वाने के लिए उसे साथ लेकर गयी थी |बच्चे को समझाने के किए गुरु को खुद गुड़ खाना छोड़ना पड़ा |मेरे साथ भी कुछ -कुछ वैसा ही हुआ था |
अब से लगभग 25 वर्ष पहले मेरे सत्गुरु निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी का एक प्रवचन प्रकाशन के लिए आया ,जो कि अहिंसा पर केंद्रित था |
सन्त निरंकारी मासिक पत्रिका के हिंदी संस्करण का संपादक होने के नाते मुझे उस समय अक्टूबर अंक निकालना था |दो अक्टूबर (महात्मा गाँधी के जन्म दिन )को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जा रहा था |
मुझे लगा कि अक्टूबर अंक को क्यों न अहिंसा विशेषांक के रूप में निकाला जाये |
उसमें मेरे सामने एक बड़ी समस्या यह थी कि मैं उस समय शत प्रतिशत शाकाहारी नहीं था बल्कि जब भी मुझे कोई मांसाहारी भोजन के लिए निमंत्रित करता तो मैं निःसंकोच उसे कर लेता था |निरंकारी मिशन में भोजन स्तर पर पूर्ण स्वतंत्रता थी लेकिन आज प्रश्न अहिंसा के उपदेश का था और मेरा ज़मीर कहता था कि मांसाहार त्यागने से पहले मुझे अहिंसा पर विशेषांक निकलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है इसलिए अपनी खाद्य रुचि में परिवर्तन करना ही होगा |इस दिशा में आगे सोचने पर मुझे महसूस हुआ कि मेरी ऊँगली में यदि एक आलपिन भी चुभता है तो मुझे पीड़ा होती है |
मेरे भोजन के लिए जिस पशु की बलि हुई है उसे आलपिन की अपेक्षा कितने ज्यादा दर्द का सामना करना पड़ता होगा |यह सोचकर मांसाहार में मेरी रुचि का अंत हुआ |तब मैंने निःसंकोच अहिंसा पर अंक निकाला | तब से मेरा भोजन शत प्रतिशत शाकाहारी हो गया है | वास्तव में आत्मनिरीक्षण और आत्म प्रशिक्षण अत्यंत कठिन है बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर कुछ भी प्रतिबन्ध अपने ऊपर लागू करना किसी चुनौती से कम नहीं |
यद्यपि अहिंसा का सिद्धांत अपने ऊपर लागू करना बिलकुल भी कठिन नहीं है|चूंकि अहिंसा मनुष्य का प्राकृतिक गुण है इसलिए अहिंसा का गुण-गान कोई भी कर सकता है ,इसमें बाधा तब होती है,जब हम गीता पढ़ते हैं |
गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हैं बल्कि इससे भी आगे जाकर वे अर्जुन को युद्ध करने का आदेश देते हैं |आज तक शायद ही कोई युद्ध ऐसा रहा हो,जिसमें हिंसा न हुई हो |प्रश्न उठता है कि क्या श्रीकृष्ण हिंसा के पक्षधर थे ?
यहाँ महात्मा गाँधी की उपस्थिति ज़हन में उभरती है|शांतिप्रिय व्यक्ति को लोग प्रायः कायर मानते हैं |महात्मा गाँधी कहते हैं कि अहिंसा कायरता नहीं है |वे कहते हैं कि हिंसा और कायरता में से यदि किसी एक को चुनना पड़े तो मैं हिंसा को चुनूंगा |इस आधार पर कोई भी उन्हें हिंसा का पक्षधर मान सकता है जबकि वास्तविकता यह है कि वे ऊँचे दर्जे के अहिंसक थे |
कायरता और अहिंसा में यह बात एकसमान है कि कायर किन्हीं भी परिस्थितियों से पलायन करता है क्यूंकि कठिनाइयों का मुकाबला करना उसका स्वभाव नहीं होता इसके विपरीत अहिंसक व्यक्ति हिंसा में अरुचि के कारण हिंसा से बचना चाहता है |
वास्तव में अहिंसा में कायरता की जरा भी गुंजाईश नहीं है |महात्मा गाँधी ने नमक कानून तोड़ने के
लिए साबरमती आश्रम से डंडी तक मार्च किया |यह मार्च सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में था अर्थात पूर्णतः अहिंसक था |
इस मार्च के परिणामस्वरूप गाँधी जी ने दिखा दिया कि नमक गरीब आदमी के लिए सब्जी की तरह महत्वपूर्ण है इसलिए उस पर लगाए गए किसी भी टैक्स को सहन नहीं किया जायेगा |
नमक कानून का विरोध करने के लिए उन्होंने 12 मार्च से 3अप्रैल 2020 तक साबरमती आश्रम से दांडी तक मार्च किया और वाष्पीकरण द्वारा नमक बनाया |
उनके साथ शुरूआत में उनके सबसे विश्वस्त 78 साथी थे जो अंत में 60000 लोगों की भारी भीड़ में बदल गए |अहिंसक सत्याग्रह का यह एक ऐतिहासिक नमूना था |
हिंसक होना और वीर होना इसमें कुछ भी विरोधाभास नहीं है |महात्मा गाँधी और शहीदे आज़म भगत सिंह दोनों महापुरुष वीर थे |
ये दोनों ही ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध प्राणो की बाजी लगाकर भी लड़े |शहीद भगत सिंह ने दिल्ली के असेम्ब्ली हॉल में बम फेंका लेकिन बम खाली जगह पर फेंका ताकि लोग जख्मी न हों |
वे हत्या में यकीन नहीं करते थे चूंकि उन्होंने अंधाधुंध फायरिंग नहीं की |
उनके बम फेंकने का कारण यह था क्यूंकि भारतीय जनता भूख व बेरोजगारी से थक चुकी थी |ब्रिटिश शासन के प्रति जनता की पीड़ा,असहमति और संघर्ष को उन्होंने ख़ामोशी से सहन नहीं किया |जेल में उनकी लम्बी भूख हड़ताल उनके अहिंसक संघर्ष का परिणाम है |
उन्होंने कहा भी था कि हम किसी का भी व्यर्थ खून बहाना नहीं चाहते |बम विस्फोट किसी की हत्या के लिए नहीं बहरी सरकार के कानो तक अपनी आवाज़ पहुंचाने के लिए है |
अब लेख के शुरू में उठाये गए प्रश्न पर आते हैं कि अहिंसक पलायनवादी नहीं होता और उसके आस्तिक होने की गुंजाईश बहुत ज्यादा है चूंकि वह शक्तिसम्पन्न होने के बावजूद हिंसक प्रतिरोध नहीं करता | चूंकि उसे अहिंसक तरीके प्रार्थना और असहयोग आदि ज्यादा प्रभावित करते हैं |
अब हम अहिंसा पर श्रीकृष्ण और अर्जुन के संबंधों का विश्लेषण करते हैं |सतही तौर पर विचार करें तो न श्रीकृष्ण अहिंसक थे और न अर्जुन |
अर्जुन की श्रीकृष्ण के प्रति आस्था भी थी और विश्वास भी इसके बावजूद श्रीकृष्ण ने अर्जुन से अहिंसक संघर्ष की बात नहीं कही बल्कि निष्काम कर्मयोग का उपदेश दिया |
यह शायद इसलिए था चूंकि सामने वाले पक्ष अर्थात कौरवों की श्रद्धा शांति व् प्रेम में नहीं थी |उन्हें अपनी शक्ति का अहंकार भी था इसलिए यहाँ तो सशस्त्र युद्ध ही सार्थक परिणाम दे सकता था |शायद इसीलिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना निज विराट स्वरुप दिखलाया और अर्जुन को कहा-जो जन्मा है वह मरेगा भी इसलिए मोह छोड़कर धर्मयुद्ध करो |अर्जुन को निष्कामकर्मयोग से शक्ति मिली और वह श्रीकृष्ण के विश्वास पर खरा उतरा |
मुझे लगता है कि जो मनुष्य अहंकार से अलग होकर, सात्विक लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित होकर युद्ध करता है उसे हिंसा से अलग मानना चाहिए चूंकि वह अपने अहम के वशीभूत होकर युद्ध नहीं कर रहा है |
उसका लक्ष्य सिर्फ निज स्वार्थ पूर्ति में सीमित नहीं है तो वह अस्त्र -शस्त्रों का प्रयोग तो करेगा लेकिन उसका लक्ष्य व्यक्तिगत नहीं है |उसका लक्ष्य सात्विक वातावरण की स्थापना है इसलिए हिंसक साधनो का उपयोग करते हुए भी उसे पूरी तरह हिंसक नहीं मान सकते |
हनुमान जी को ऐसा ही कर्मयोगी मानना चाहिए |उन्होंने जो भी युद्ध किये राम जी के आदेश से किये और राम जी ने सदैव मर्यादा की रक्षा की |इस प्रकार हनुमान जी सब कुछ करते हुए भी कर्तापन के अहंकार से ऊपर उठ चुके थे |
निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी को जब सत्गुरु की जिम्मेदारी मिली तो मिशन पर हिंसा के बादल छाये हुए थे |
उनके पूर्ववर्ती सत्गुरु को हिंसक आक्रमण का शिकार होना पड़ा था |हिंसक वातावरण के प्रभाव के कारण निरंकारी श्रद्धालुओं में बहुत आक्रोश था |वे हिंसा का बदला हिंसा से लेना चाहते थे |इसके बावजूद बाबा हरदेव सिंह जी ने बदले की भावना से बचने का आदेश दिया तथा अहिंसा के मार्ग का पूर्ण अनुकरण किया | बाबा हरदेव सिंह जी का मानना था कि सन्तों का मार्ग सदैव अहिंसा का ही मार्ग रहा है |
आमतौर से परमात्मा में जो आस्था रखते हैं,वे परमात्मा को ही सर्वोच्च कर्ता मानते हैं |इस प्रकार वे जल्दी उत्तेजित नहीं होते |उनमें धैर्य की मात्रा ज्यादा होती है और वे हिंसा को विकल्प के रूप में देखते ही नहीं हैं |
यहाँ मेरा ध्यान महाभारत युग की तरफ अनायास ही चला जाता है |महाभारत के युद्ध में अर्जुन युद्ध से पलायन करना चाहते हैं जब कि श्रीकृष्ण चाहते हैं कि अर्जुन वीरता से युद्ध करे और विजयी हो |अर्जुन को श्रीकृष्ण ने अहिंसक होने के लिए नहीं कहा |गीता के सन्देश में अहिंसा की प्रेरणा कहीं नहीं है |
प्रेरणा शायद इसलिए नहीं है चूंकि अहिंसा प्राकृतिक है |जब बच्चा माता की गोद में होता है,वह हिंसक नहीं होता |वह पूर्णतः अहिंसक होता है |
अहिंसक होने की किसी को कोशिश नहीं करनी पड़ती |हिंसक होने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था अवश्य की जाती है |
मेरे ख्याल से हिंसा सबसे पहले मन में पैदा होती है |फिर विचारों के द्वारा वह आगे यात्रा करती है |सोचना यह भी है कि अहिंसा क्या सिर्फ हथियार से दूरी बनाना है ? नहीं अहिंसा को अपने विचारों में जीवित रखना होगा |यही जियो और जीने दो का मार्ग है |इसी से इस पृथ्वी पर मनुष्य का अस्तित्व सुनिश्चित हो सकता है |
- रामकुमार 'सेवक'