यथार्थवादी कहानीकार -समय के हस्ताक्षर थे-सआदत हसन मंटो

 - आर. के. प्रिय 

सआदत हसन मंटो का नाम आते ही उनका लेखन ज़हन में उभरता है |इस लेखन में सत्य की मात्रा इतनी ज्यादा है कि इसे साहित्य की बजाय सत्य के ही अंग के रूप में रखना ज्यादा उचित है | या यह भी हो सकता है कि लेखन पक्ष इतना प्रबल है कि किस्सा सत्य लगने लगता है |

विभाजन की पृष्ठभूमि पर लिखी गयी उनकी रचनाएँ इतनी सत्य होती हैं कि पाठक उन्हें सत्य मानने को विवश हो जाता है |

इस प्रकार मंटो का कद बहुत बड़ा हो जाता है |मंटो की विशेषता यह भी है कि वे हिन्दू-मुसलमान के दायरे से ऊपर उठ गए हैं |यह एक बड़ा कारण है कि उन्हें बहुत सारे मुक़दमे झेलने पड़े |

वे चूंकि सत्य के हिमायती थे इसलिए उनके विरोधी हर धर्म में थे |उनकी हर रचना में उन्हें उलझने का कारण मिल ही जाता था |

यद्यपि वे सब सामाजिक उत्थान के पक्षधर न थे लेकिन प्रश्न ऐसे उठाते थे कि मंटो कलम ही न उठा पाएं |लेकिन मंटो में एक कबीर छिपा हुआ था जो सच्चाई के आवरणों को तार-तार कर देता था लेकिन समाज सत्य का नहीं आवरण का पक्षधर होता है | 

मैंने उनकी बहुत सारी कहानियां पढ़ी हैं और उनमें हर एक ने मुझे किसी न किसी मात्रा में प्रभावित भी किया |उनकी एक कहानी है जिसमें एक औरत तांगा चलाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करती है लेकिन शहर की म्युनिसिपालिटी उसे तांगा चलाने का लाइसेंस देने से इंकार कर देती है |

अंत में मंटो कहते हैं कि अब वह तांगा नहीं चलाती है ,कोठे पर शरीर बेचती है |

यह करारा व्यंग्य भीतर तक झिंझोड़ जाता है |

उनकी एक कहानी है-मोज़ेल |कहानी बहुत ही रोचक है |उसमें एक एंग्लो इंडियन युवती खुद वस्त्रों के बिना भीड़ में घुस जाती है ताकि उस बिल्डिंग में रह रहा एक बुजुर्ग और उसकी पोती बच जाये |दंगाई उसकी तरफ लपके लेकिन बाकी लोग बच गए |

आज तो स्वामी ही औरत के जिस्म के सबसे पड़े व्यापारी सिद्ध हो रहे हैं और बेशर्म सत्ता उन्हें बचाने में लगी है |जाति के नाम पर एक हाथरस या उन्नाव की बेटियां ही नहीं कितनी ही युवतियां शोषण झेलने को विवश है |ऐसे में मंटो की कहानियां आशा की किरण नज़र आती हैं |

मंटो की कहानियों पर अश्लीलता का आरोप है लेकिन सत्य यह है उन कहानियों में एक अज़ीम दर्द है |उस दर्द को उभारने के लिए उन्होंने जिस भाषा का इस्तेमाल किया है,उसमें कोई बनावट नहीं है |उसमें जान -पूछकर अश्लीलता पैदा करने की कोशिश नहीं की गयी है इसलिए उन्हें अश्लील नहीं माना जा सकता |अगर उन्हें पढ़कर किसी को मज़े का एहसास होता है वह भी इंसानी फितरत है इसलिए इन्हें    कहानियों की अश्लीलता माना जाना अनुचित है |

मंटो वास्तव में यथार्थवादी थे लेकिन वक़्त से पहले पैदा हो गए थे |आज यथार्थ  चित्रण का दौर है |यथार्थ चित्रण को पसंद किया जाता है लेकिन आज मंटो नहीं हैं |

वास्तव में उस समय समाज प्रगतिशील नहीं था |उसे सच्चाई हजम नहीं हुई इसलिए मंटो को मुकदमेबाजी झेलनी पडी और हैरानी की बात यह है कि मंटो की जिन कहानियों पर अश्लीलता फ़ैलाने के जुर्म में मुक़दमे चले ,उनमें से कोई भी अदालत में अश्लील सिद्ध नहीं हुई |

जिन कहानियों अश्लीलता के नाम पर अदालत में घसीटा गया बाद में वही कहानियां शिल्प के आधार पर बेहतरीन मानी जाती हैं |वास्तव में मंटो की संवेदनशीलता की ऊंचाई बहुत ज्यादा है |वे कहते हैं-हर औरत वैश्या नहीं होती लेकिन हर वैश्या एक औरत होती है | 

उनका कहना था कि-अगर आप मेरी कहानियों को बर्दाश्त नहीं कर पाते तो इसका मतलब यह है कि ज़माना नाक़ाबिले बर्दाश्त है |मुझमें जो बुराइयोँ हैं वे इस अहद की बुराइयॉँ हैं |