गुड़गांव से एक बहन एक रोचक प्रसंग बता रही थी जिसे किसी महात्मा ने सत्संग में बताया था |
यह कोई आम प्रसंग नहीं था कि यूँ ही उड़ती बात की तरह कह और सुन लिया जाये |
वास्तव में यह प्रसंग बड़े दिल होने का प्रमाण है |वह बड़ा दिल ,जिसके बारे में सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी कहा करते थे कि-धन रखने वाले तो बहुत होते हैं लेकिन अध्यात्म से,साध संगत से जुड़े महात्मा बड़े दिल भी रखते हैं |
बात दरअसल यूँ है कि किसी मित्र को पैसे की ज़रुरत थी |उसने उनसे पंद्रह हज़ार रूपये मांग लिये | उन दिनों उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी तो उन्होंने पंद्रह हज़ार खुश-ख़ुशी दे दिए और कह दिया कि जब पैसे हों तब लौटा देना |
कोरोना महामारी का दौर आया और काम-धंधे में भारी गिरावट आयी |उन्होंने भाई साहब से कहा कि मुझे पैसे की ज़रुरत है चूंकि काम अब वैसा नहीं है |यदि हो सके तो पैसे मुझे लौटा देना |
जिन लोगों को महात्मा की आर्थिक स्थिति का पता था कि कोरोना के दौर में काम में भारी गिरावट आ गयी है |
जिन्हें पता था कि उन्होंने फलां सज्जन को पंद्रह हज़ार रूपये दे रखे हैं उन्होंने कहा -उनसे अपने पैसे ले लो अब तो कई साल हो गए हैं |
महात्मा ने कहा कि -मैंने कहा तो था |
उकसाने वाले सज्जनो ने कहा-यह क्या बात हुई कि ज़रुरत में अपने ही पैसे ना मिलें |दोस्ती एकतरफा नहीं होती इसलिए कुछ करना जरूरी है |
महात्मा ने कहा कि तब मेरे पास पैसे की कमी नहीं थी तो पंद्रह हज़ार मेरे लिए कोई बड़ी रकम नहीं थी इसलिए पंद्रह हज़ार की वापसी के बारे मैंने सोचा ही नहीं था |
मित्रों ने कहा -निश्चित ही उनकी नज़र में खोट है पंद्रह हज़ार उनके लिए कुछ भी नहीं है |
महात्मा ने कहा-नहीं मुझे ऐसा नहीं लगता |जब भी वे सहजता से लौटाने की स्थिति में होंगे जरूर लौटा देंगे |
मित्रों ने कहा-आप तो भोले हैं ,जो ऐसे लोगों की आदतों के बारे में नहीं जानते |
महात्मा ने यह बात सुनी और दूसरे कान से निकाल दी |
इस तरह की बातें बहुत कही जा रही थीं |पैसे ले चुके भाई साहब की नीयत पर शक किया जा रहा था |
महात्मा ने अपने विचारों में कहा कि -इस निरंकार को हमेशा अपने साथ महसूस करना चाहिए |
उन्होंने कहा कि भाई साहब ने मुझे तीन लाख रूपये दिए और लौटाने की कोई बात नहीं की |
इस प्रसंग से मुझे ख्याल आया दूसरे का मूल्यांकन कभी भी नकारात्मक सोच को जोड़कर नहीं करना चाहिए |जरूरी नहीं कि सामने वाला बेईमान ही हो |
एक बात यह भी है कि - दिल बड़ा रखना चाहिए जैसे महात्मा ने निरंकार को समक्ष रखा और बिना लालच किये उन्हें पंद्रह हज़ार दे दिए अन्यथा मैंने एक बार किसी ब्रह्मज्ञानी कहलाने वाले सज्जन से पचास हज़ार रूपये उधार लिये |उन्होंने मुझसे एक महीने बाद की तारीख का चेक लिया |और पचास हज़ार में से 500 रूपये ब्याज के काट लिये |
मुझे पांच सौ रूपये कम दिए |यह दूसरी बात है कि मेरा काम हो गया और तय समय में प्रभु की कृपा से मैंने उनके पचास हज़ार लौटा दिए |
ये दोनों सज्जन उदाहरण हैं इस तथ्य के कि ब्रह्मज्ञान तो सबको एक जैसा मिला है लेकिन भक्ति सबकी अलग -अलग है |
उन्हीं बहन ने एक प्रसंग और भी बताया -बात दरअसल इस प्रकार है कि सुबह के सत्संग से लौटते समय किसी सज्जन को गली में गाडी की एक चाबी पडी दिखी |
कार की चाभी के विभिन्न बटन दबाकर उन्होंने कार की पहचान करके चाबी के मालिक तक पहुँचने की कोशिश की |लेकिन किसी गाड़ी से कोई सुराग न मिला |
उन्होंने बताया कि रात को रोज दांत की सफाई करके सोने की आदत है |वक़्त रात बारह बजे के आस-पास का था |
मैंने देखा बाहर एक सज्जन घूम रहे हैं,उनकी नज़र सड़क की तरफ थी |लग रहा था जैसे कुछ ढूंढ रहे हैं |मुझे कार की चाबी का ध्यान आ गया |
मैंने उनसे पूछा-कार की चाबी ढूंढ रहे हैं क्या ?उन्होंने कहाँ -हाँ जी |मैंने चाभी ले जाकर उन्हें दे दी |वे बहुत खुश हुए कि-घर से अरदास करके चले थे और मालिक ने कृपा कर दी |
उनकी वस्तु उन्हें सौंपकर मुझे गहरे संतोष का अनुभव हुआ ,उन्होंने बताया |
धन्यवाद,धन निरंकार जी
- रामकुमार 'सेवक'