श्रद्धांजलि - निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी.. माँ की सीख

बचपन में  एक प्रसंग पढ़ा था - सच्चा बालक 

तब मैं तीसरी कक्षा में पढता था |

घटनाक्रम के अनुसार एक बालक घर से दूर जाना था |उसकी माँ ने कुछ अशर्फियाँ उसे दी और उन्हें कोई लूट न ले इस दृष्टि से उन अशर्फियों को उसके वस्त्रों के साथ सिल दिया | 

बच्चा घर से चल दिया |रास्ते में लुटेरे मिले ,उन्होंने रास्ते  में काफिले को रोक लिया और लूट-मार करने लगे |

बाद में उनका ध्यान उस बालक की ओर गया | उन्होंने उससे भी पूछा कि -क्या तुम्हारे पास भी कुछ है ?

उसने कहा -मेरे पास पांच अशर्फियाँ हैं |उन्हें कोई लूट न ले इसलिए माँ ने वो अशर्फियाँ मेरे कपड़ों के साथ सिल दी हैं |

चोरों के सरदार ने जांच की तो पाया कि बच्चे की बात सच थी |

चोरों के सरदार ने कहा -हम ही तो लुटेरे हैं |तुम्हें यह बात हमें नहीं बतानी चाहिए थी |यह बात तुमने हमें क्यों बताई ? 

बच्चे ने कहा-मेरी माँ ने चलते समय कहा था कि बेटा-झूठ कभी न बोलना, झूठ बोलना पाप है |

सरदार के ह्रदय क्रांति हो गयी |उसने अपने साथियों से कहा-लूटी हुई चीजें वापस कर दो |हमें भी बचपन में माँ-बाप ने यही समझाया था लेकिन हमने उनकी बात मानी नहीं और इस प्रकार लूट-मार करते रहते हैं |

हमें यह बात समझनी चाहिए कि-अंत में जब हम खुदा के पास जायेंगे तो अपने कुकर्मो का क्या जवाब देंगे ?

आज के दौर में उस सच्चे बालक को हम अव्यवहारिक ही मानेंगे जबकि हमारे शास्त्रों में कहा-गया है-भोले भाव मिले रघुराया |महत्मा कहते हैं -जो भोले भाव रखते हैं उन्हें परमात्मा का सहज संयोग प्राप्त होता है | 

आज निरंकारी राजमाता जी का एक प्रवचन सुना |उनका समझाना आज भी ऐसे लगता है जैसे माँ अपने बच्चों को संसार की ऊंच-नीच समझा रही हो |उन्होंने कहा कि कोई इंसान अपनी सोच के कारण किस प्रकार वरदान को भी अभिशाप बना लेता है |

माता जी ने कहा कि-एक इंसान ने अपनी मनोकामना बताते हुए कहा कि-पड़ोसी को यदि एक मिले तो मुझे दो |

प्रभु ने उसकी इच्छा पूछी तो उसने कहा-पड़ोसी की एक भैंस मर जाए |उसकी एक भैंस मरी तो इसकी दो भैंसे मर गयीं |फिर इसने प्रभु से माँगा कि पड़ोसी की एक आँख खराब हो जाए तो इस  की दोनों ही खराब हो गयीं |अब इसे महसूस हुआ यदि उसने पड़ोसी के लिए अच्छा माँगा होता तो उसे उससे दोगुनी खुशियां प्राप्त होतीं |

इससे मुझे यह ज्ञान मिला कि कोई यदि बुरा भी हो तो भी उसके बारे में भला ही सोचूँ | 

हमारे धर्म ग्रन्थ कहते हैं कि-किसी भी हालत में किसी के भी लिए बुरा न सोचा जाए,सत्संगों में तो हर  बार सबके भले की प्रार्थना की जाती है इसके बावजूद भला होता दिख नहीं रहा ,इसके कारणों पर विचार करना चाहिए |

निरंकारी सत्संग में निर्धारित मंगलाचरण में  कहा गया है-

परम पिता परमात्मा सब तेरी संतान 

भला करो सबका प्रभु सबका हो कल्याण 

यहाँ यह प्रश्न खड़ा हो जाता  है कि क्या सबका भला होना संभव है ?मुझसे वर्षों पहले यह प्रश्न किसी ने पूछा था और मुझे भी लगा था कि एक चोर और सज्जन का एक साथ भला कैसे संभव है ?

ध्यान आया कि चोर का भला क्या इसमें है कि उसे चोरी के क्षेत्र में बड़ी सफलता मिले ?

जी नहीं ,उसका भला बड़ा दांव लगने में नहीं बल्कि चोरी जैसे दुष्कर्म को छोड़ देने में है |

और सज्जन का कर्म तो है ही सत्कर्म |

इस प्रकार दोनों का भला एक साथ होना संभव है |

भारतीय संस्कृति में उद्बोधन है-

सर्वे भवन्तु सुखिनः ,सर्वे सन्तु निरामया 

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चिद दुखभाग्भवेत 

इस प्रकार निरंकारी राजमाता जी का यह वचन बिलकुल सत्य है कि हरदम सबका भला ही सोचना चाहिए | सबके भले में ही हमारा भी भला छिपा हुआ है,यह एक वास्तविकता है | धन्यवाद          

आर.के.प्रिय