सर मुहम्मद इक़बाल के इस शेअर का मर्म समझ में आ रहा है-
खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
खुदा बन्दे से खुद पूछे ,बता तेरी रज़ा क्या है |
इक़बाल साहब खुदी की जिस बुलंदी की बात कर रहे हैं वह विज़न की बुलंदी थी |यह बुलंदी अल्बेयर कामू में दिखाई देती है ,जो कि उन्नीसवीं शताब्दी की शुरूआत में पैदा भी हुए और ख़त्म भी हो गए |अपने आस-पास बाबा हरदेव सिंह जी में इतना बड़ा विजन मुझे देखने को मिला |समर्पण का अर्थ गुलामी नहीं है यह उन्होंने अपने विजन से समझाया |उन्होंने अपनी शर्तें हम पर लादी नहीं |न कुछ पढ़ने से रोका न कुछ बोलने और लिखने से |उन्होंने मेरी आज़ादी को संयम की तरतीब दी ,न कि गुलामी और स्वेच्छाचार का बोझ |
यहाँ तक कि वर्ष 2005 में सन्त निरंकारी मंडल के पत्रिका विभाग में सेवा करते हुए मैंने सम्पादकीय लिखा-दर्पण झूठ न बोले |उसे लिखना जैसे सीधे सीधे तत्कालीन व्यवस्था से विद्रोह था लेकिन मुझे बाबा जी ने पूरी स्वतंत्रता दी |अल्बेयर कामू को पढ़ते हुए यह लग रहा है कि बाबा हरदेव सिंह जी को यदि किसी दायरे में बांधा जाता है तो वह उनके साथ घोर अन्याय होगा |
मैं अपने पाठकों से निवेदन करूंगा कि मेरे आलेख इसलिए न पढ़ें कि मैं निरंकारी हूँ या सन्त निरंकारी पत्रिका का पूर्व संपादक हूँ बल्कि इसलिए पढ़ें कि मैंने बाबा हरदेव सिंह जी के विशाल विजन (सहनशीलता -अमन-चैन से रहना है तो सहनशील बन जाएँ सारे )विशालता -किसी से वैर नहीं है,कोई भी गैर नहीं है |धर्म-धर्म एक प्रक्रिया है,जिससे मनुष्य,मनुष्य बनता है |को समझकर एक सच्चा मनुष्य बनने और किसी भी सिद्धांत की गहराई में जाकर उसकी वास्तविकता समझने की कोशिश की.जिस कारण सर मुहम्मद इक़बाल,मैक्सम्यूलर और अल्बेयर कामू को भी पढ़ सका |बाबा हरदेव सिंह जी के विजन का अनुयाई होने के कारण कोई भी लेखक मुझे मेरी बात समझा देता है |यही मेरे विजन की बुलंदी है जिसे एकत्व तक पहुंचाने की कोशिश में लगा हूँ |आशीर्वाद तो बहुत बड़ी चीज है,यदि शुभकामनाएं भी मिल जाएँ तो काफी है | इसी प्रार्थना के साथ - प्रणाम
(जुलाई 2018 )
- रामकुमार सेवक