यही उनका दर्शन था कि जब हम स्वयं को मनुष्य रूप में देखते हैं तो हम वसुधैव कुटुंबकम की वैदिक अवधारणा को अपने विचारों में,व्यवहार में सम्मिलित कर सकते हैं |
अमृतसर में हुए सत्संग समारोह में प्रकट किये गए इन प्रवचनों में भी बाबा जी का स्वर मनुर्भव का ही रहा है |इस प्रवचन के अंतिम चरण में उन्होंने कहा-
यह बड़े भाग्य की बात है कि मनुष्य ने यह देही प्राप्त की है |मनुष्य योनि में आया है लेकिन सोचने की बात तो यह है कि इसे पाकर हमने किया क्या ?संसार की यात्रा को हमने तय किस तरह किया यह हमारे सामने है ,हम विचार सकते हैं |
जैसा मन वैसा जीवन
मन का नाता यदि मालिक से जुड़ा हुआ है तो मन उजाले से भरपूर हो जाता है |जीवन में दिव्य गुणों का वास होता है तो फिर इंसान के रूप में पैदा होना मुबारक होता है |आदमी फिर इंसान बन ही जाता है |जैसे वेदों में कहा गया-मनुर्भव अर्थात मनुष्य बनो |इससे हम समझ सकते हैं कि आखिर यह कहना ही क्यों पड़ा कि-मनुष्य बनो ?
मनुष्य बनने की बात क्यों की गयी ?
अगर जन्म लेने से ही कोई मनुष्य हो जाता है तो वेदों में मनुष्य बनने की बात क्यों कही गयी ?
इसका सीधा मतलब है कि हमने यह जिस्म तो पा लिया लेकिन इंसान की सीरत और फितरत नहीं बन पाई इसीलिए इंसान बनने की बात कही जा रही है कि हम गुणों से भी इंसान हों |हमारी फितरत इंसानो वाली बन पाए | अगर इंसान बनने को कहा जा रहा है तो हमारी वैसी फितरत बन जाए |यदि वैसी चाल हमारी बन जाए तो ही हम इंसान बन पाएंगे |
मुक्ति पाने की बेला
अभी मुक्ति की बात हो रही थी |यह मुक्ति की उपलब्धि हासिल करने का वक़्त है | इसके लिए इंसानो वाले गुण ग्रहण करने होंगे |तब कहीं मुक्ति की मंज़िल तक पहुंचा जा सकेगा |जब इस परमेश्वर के साथ जुड़कर व्यवहार में परिवर्तन लाते हैं तो मुक्ति भी मिल सकती है |हम इस लोक में भी श्लाघा प्राप्त करते हैं और हम सुकून और चैन प्राप्त करते हैं |
साधन एक सामान ही है इसे अपनाने की ही आवश्यकता है |इस परमात्मा अकाल पुरख के साथ अपना नाता जोड़ने की ही ज़रुरत है |इससे आत्मा का भी कल्याण हुआ अर्थात मोक्ष और मुक्ति मिल गयी |
इस लोक की यात्रा तय करते हुए मन को भी सुंदरता मिल गयी |इस प्रकार हम सही मायनो में इंसानो वाली चाल चलने लगे |इस प्रकार हमारा लोक भी सुखी हो गया |
लोक सुखी परलोक सुहेला
यह कहावत हम सदियों से सुनते आ रहे हैं |मूल -आधार तो इस परमात्मा का ही लेना पड़ेगा |इसी के साथ नाता जोड़ना होगा |जिन्होंने नाता जोड़ लिया वो सही मायनो में इन्सान बन गए |उन्होंने संसार को भी सुन्दर देन दी |वो ही संसार में रोशन मीनार बने |
वही हैं जिन्हें हम देवता ,भक्त और महात्मा कहते हैं |देवता ,भक्त और महात्मा वही होता है जो सही अर्थों में इंसान बन जाता है |इंसान जो बनता है,वही देवता होता है |वही धर्मी होता है और भक्त भी |
अगर इंसानियत ही नहीं है तो फिर कोई धर्मी नहीं है |
इंसानियत के बिना कोई धार्मिक नहीं
अगर कोई सोचे कि मैं तो फलां गुरु ,पीर ,पैगम्बर को मानने वाला हूँ या फलां धर्मग्रन्थ के प्रति आस्था रखता हूँ तो वो लाख ऐसे दावे करता रहे ,लेकिन अगर इंसान ही नहीं बन पाया तो फिर बाकी चीजों के कोई अर्थ नहीं रह जाते |मूलतः हमें सही मानव बनना है |मानवता की डगर पर चलना है | पहल इस कार्य को देनी है |अगर नानवता होगी तो ही हम धर्मी कहलाये जा सकते हैं |अन्यथा धर्म वास्तविकता की बजाय बनावट बनकर रह जाएगा |जिन्हें धर्मी कहा जा रहा है,वे भी बाहरी आधार वाले ही रह जायेंगे |उससे ज्यादा या उससे बढ़कर उनका कोई महत्व नहीं होगा इसीलिए महात्मा भक्ति में मन को परिवर्तित करने की बात करते हैं |
बाबा जी ने आगे कहा-
मन अंदर जोत जला ले तू ,यारी नाल सजण दे ला ले तू |
कहते हैं कि इस मन के भीतर जोत जला ले |मन को रोशन कर ले |ताकि यह प्रकाशित मन सुन्दर रूप धारण कर ले |सुन्दर भावनाओं से युक्त होकर सुन्दर देन देने लगे |सन्तों -महात्माओं -भक्तों ने हमेशा ऐसे ही यत्न किये हैं | उनके यही प्रयास रहे हैं कि इंसान जो कि इंसान के रूप में पैदा हुआ , सही अर्थों में इंसान बन जाए | मानवीय गुणों से युक्त हो जाये |
हर युग में महापुरुषों के यत्न
मानव को मानव बनाने के यत्न हर युग में महापुरुषों ने किये हैं |ये सतयुग में,त्रेता में,द्वापर में और कलयुग में भी रहे हैं |भगवान राम,हजरत ईसा मसीह का भी ऐसा यत्न था ,हजरत मुहम्मद साहब का भी यही यत्न था श्री गुरु नानक देव जी से लेकर श्री गुरु गोविंद सिंह जी तक गुरु साहिबान ने भी ये यत्न किये |
हम इन सबके साथ जोड़ देते हैं कि उन्होंने फलां-फलां धर्म स्थापित किया |जरा गहराई से सोचकर देखें तो उन्होंने वो धर्म स्थापित नहीं किये जिन्हें हम धर्म मानकर बैठे हैं बल्कि उन्होंने जो धर्म स्थापित किया वह मानवता का ही धर्म था |
चाहे उसे भगवान राम स्थापित करें ,चाहे हजरत ईसा मसीह , हजरत मुहम्मद साहब या श्री गुरु नानक देव जी स्थापित करें |
अगर सबने मानवता के धर्म की ही स्थापना की है तो धर्म कितने हुए ?भगवान राम,हजरत ईसा मसीह,हजरत मुहम्मद साहब या श्री गुरु नानक देव जी जब सबने मानवता का ही काम किया तो फिर चार धर्म नहीं एक ही धर्म नज़र आता है जो कि मानवता का है,प्रेम का है ,भाईचारे का है |
एक ही धर्म -मानवता
फिर अनेक धर्मो का स्थान एक ही केंद्र मानवता और इंसानियत में समाहित हो गया |यदि सबने एक ही धर्म की स्थापना की तो भेद-भाव की गुंजाईश बचती नहीं |तफरके,दूरियां और वैर वास्तों का अस्तित्व उतनी ही देर रहता है जब तक हमें सच्चे धर्म की पहचान नहीं होती |हम सच्चे धर्मी नहीं बन जाते |सच्चे धर्म की पहचान करने वाले इंसानियत की राह पर ही चलते हैं |तब ही वो धर्मी कहलाते हैं |सच का बोलबाला,मानवता का बोलबाला और धर्म का बोलबाला वे कराते हैं इसीलिए सन्तों -महापुरुषों ने कहा है कि हे इंसान तुझे सच्चा धर्मी बनकर दिखाना है |जो कि सच्चे धर्म का पालन करने वाला और इंसानियत के गुणों से युक्त है |
एक ही शर्त धार्मिक होने की
यह चाल तुझे अवश्य ही चलनी होगी |तुझे इंसानियत को ऊंचाइयों तक ले जाना होगा |देखा यह जा रहा है कि जो चाल तू चल रहा है,वह नुक्सान की कारण बनी हुई है |तू हैवानी और शैतानी हरकतें कर रहा है |तू निरंतर दानवता के मार्ग पर चलता जा रहा है |इसके कारण तू खुद भी नुक्सान उठा रहा है और तेरे कारण दूसरों का भी नुक्सान हो रहा है |
स्वर्ग की परिकल्पना
जहाँ इंसान को इंसान से भय नहीं होगा ,हम चैन की नींद सो पाएंगे |जहाँ कोई लूट-मार नहीं होगी |जोर-जबरदस्ती नहीं होगी |जहाँ किसी मासूम को लताड़ा नहीं जायेगा |एक दुसरे पर जुल्म-ओ-सितम नहीं किया जायेगा |
जहाँ ज़ख्म नहीं दिए जायेंगे बल्कि हर हाथ में राहत प्रदान करने के लिए मरहम होगा |धरती पर ऐसा स्वर्ग का रूप बस जायेगा जब यह निरंकार प्रभु हमारे हृदयों में बस जायेगा |अपने हृदयों में इस मालिक को बसाना है | यही महापुरुषों की प्रेरणा और आवाज़ है |
आशा की किरण
महात्मा समझाते हैं-
कहाँ भूलो रे लोभ -लाग
कुछ बिगरयो नाही अबहु जाग |
अभी तू झूठे लोभ-लालश्च में पड़कर मालिक को बिसरा रहा है |मालिक को खुद से दूर करता जा रहा है |इस प्रकार तू कुराह पर है |महात्मा समझाते हैं कि अब भी कुछ नहीं बिगड़ा यदि इंसान जाग जाए | अपना जीवन संवार ले |
सज्जन ठग जिसे कह रहे हैं |वह जबरदस्ती तो सज्जन नहीं बना |पहले नाम तो उसका बेशक सज्जन था लेकिन काम विपरीत था |
उसे जब एहसास हो गया कि अभी कुछ बिगड़ा नहीं है,अब भी संवारा जा सकता है |उसे समझाया गया और वह संभल गया |फिर उसका पार-उतारा हो गया |वह फिर मानवता की श्रेणी श्रेणी में आ गया अन्यथा चोर और ठग ही था |अपनी सराय में रहने की जगह देकर उन्हें ठगता ही तो था लेकिन जब एहसास हो गया कि सुधरने के लिए अब भी देर नहीं हुई है तो समय रहते महापुरुषों का संग करके उसने सच्चाई को अपना लिया |
परमात्मा को अपने हृदय में बसा लिया |फिर वह धरती के लिए वरदान बन गया जो कि पहले अभिशाप था |इसी तरह जो इस परमात्मा को हृदय में बसा लेते हैं वे इस धरती के लिए वरदान सिद्ध होते हैं | वे मानवता के लिए वरदान बनते हैं |
किस प्रकार का वातावरण चाहिए
सुगन्धित वातावरण,मधुर संगीत वाला वातावरण,ऐसा वातावरण ही सन्त-महात्मा स्थापित करते हैं |काँटें तो कभी वह वातावरण स्थापित नहीं कर सकते |फूल ही होते हैं जो ऐसा वातावरण स्थापित करते हैं |शीतलता देता है तो पानी देता है आग नहीं इसी तरह अध्यात्म की भावना ,सन्तों -महात्माओं की अपनत्व की भावना ही ठंडक देती है |ऐसी भावनाओं में वृद्धि होती चली जाए ,विस्तार मिलता चला जाए |अगर वृद्धि हो तो प्यार में वृद्धि हो |सहनशीलता में वृद्धि हो |विनम्रता में वृद्धि हो |इस प्रकार सुन्दर भावनाओं में ही वृद्धि होती जाये |इनका विस्तार होता जाए |
इस प्रकार सन्त -महात्मा-भक्त हर इंसान के साथ मेहनत करते हैं |उन्हें जाग्रत करने की कोशिश करते हैं कि इंसान इस प्रभु से अपना नाता जोड़ ले |इंसान बनकर जीवन जिए और अपना पारउतारा कर ले |इंसान इस संसार की यात्रा को प्रेम से तय करे |नफरत तथा वैर के रास्ते से हट जाए |आग न फैलाये |वैर की आग में न झुलसे |उसे राम भी प्यारा हो और अल्लाह भी |वह इस अकाल पुरख की भी जय-जयकार करे | ऐसा मनुष्य जान लेगा कि नाम बेशक अलग हैं लेकिन इनमें कोई भेद नहीं है |राम भी वही है,जो अल्लाह ,गॉड और वाहेगुरु है |इस प्रकार सब तिफरके मिट जायेंगे क्यूंकि इनमें रत्ती भर भी भेद नहीं है |जो यह सच्चाई जान लेगा उसके मन से नफरत का आधार ही मिट जायेगा |वहां नफरत के लिए जगह ही नहीं बचेगी |आधार ही समाप्त हो गया तो नफरत का अस्तित्व ही नहीं बचेगा |
अंततः
इस प्रकार नफरत के आधार मिटते चले जाएँ |अज्ञानता के आधार ही मिटते चले जाएँ तो इनके साथ जुडी नफरत ,वैर,हिंसा आदि मिटती चली जाएगी |इस प्रकार जो अज्ञानता के आधार हैं ,इन्हें मिटाने की ज़रुरत है |जहाँ से काँटें उगते हैं उसे मिटाने की ज़रुरत है |वह है-अज्ञानता ,इस प्रभु के प्रति जो अज्ञानता है,उसे मिटाने की ज़रुरत है |
इस प्रभु को यदि हृदय में नहीं बसाया ,यह वो बीज बन जाता है जिससे नफरत ,वैर,हिंसा आदि का जन्म होता है |
जो इस प्रकार के काँटों को जन्म देता है ,जो कि छलनी करते हैं |इसी से अंधकार फैलता है जिसके कारण भ्रम पैदा होते हैं और सब पराये लगने लगते हैं |
यही अरदास है कि दातार कृपा करे कि सबको ही ऐसी अवस्था प्राप्त हो|
इस धरती पर जो भी इंसान के रूप में पैदा हुए हैं सब समय रहते अपना पार उतारा कर लें |इस अकाल पुरख ,एक निरंकार के साथ अपना नाता जोड़कर सन्तों- महापुरुषों का अनुकरण करें |जिस राह पर इंसान चले हैं उसी पर चलते जाएँ |महापुरुषों ने नम्रता को अपनाया ,ये भी नम्रता को ही धारण करते जाएँ |
समदृष्टि,मीठी भाषा , का इस्तेमाल महापुरुषों ने किया|कड़वाहट से बचकर ये भी मीठे बोल ,बोलते चले जाएँ |
महापुरुषों को मानना अच्छी बात है |महापुरुषों को तो मानना ही चाहिए लेकिन महापुरुषों की शिक्षाएं भी माननी हैं |अगर महापुरुषों को तो मान लिया लेकिन उनकी शिक्षाएं नहीं मानी तो उनसे कुछ भी बनने वाला नहीं है |
ऐसा खिला हुआ गुलज़ार देखने को मिले जिसमें फूल ही हों ,भले ही उनके रंग अलग-अलग क्यों न हों लेकिन होंगे वो सुगंध देने वाले ,खूबसूरती को बढ़ाने वाले इसी तरह चाहे वे गुरमुखी बोलने वाले हों या हिंदी बोलने वाले |चाहे पगड़ी या टोपी पहनने वाले ही क्यों न हों |चाहे इस संस्कृति से सम्बंधित हों या उस संस्कृति से ,चाहे इस मुल्क के हों या उस मुल्क के ,अगर फूल के रूप बन गए तो फिर गुलज़ार ही खिलाएंगे |फिर धरती का हर हिस्सा सुन्दर बाग़ का रूप होगा और वहां महक ही महक होगी |
ये सन्त-महात्मा ऐसी ही ऊँची कामना करते हैं इसीलिए ये सबसे ऊंचे परमात्मा के सामने ही यह अरदास कर रहे हैं |