वह गया तो अपने गांव में था लेकिन सीधे गांव में पहुँच नहीं सका |हालांकि वह जिस बस में बैठा वह छपरा की ही थी लेकिन छपरा के बस स्टैंड पर उतरने के बाद, गाँव पहुंचने से भी पहले ही उसे अपने ही गांव के लड़कों ने पकोड़ियों अथवा कोल्डड्रिंक में मिलाकर कुछ खिला दिया |होली के त्यौहार पर खाना -पीना चलता ही है लेकिन खाने के कुछ देर बाद ही उसे नींद का झोंका आने लगा और वह भूल गया कि उसे उतरना कहाँ था ?
होली के त्यौहार पर कोई भी अपने गांव में जाना चाहेगा क्यूंकि गांव की मिट्टी की महक ही कुछ ऐसी होती है जो अपनी तरफ खींचती है |
हमारे जैसे लोग जिन्हें गाँव छोड़े वर्षों हो गये हैं |इस मिटटी के लिए कुछ -कुछ अज़नबी से हो गये हैं |इसका एक कारण यह भी है कि गाँव में अब कोई अपना नहीं बचा |
समय के साथ लोग पुराने होते गये |जैसे पीपल का वृक्ष जब ज्यादा पुराना हो जाता है तो तेज हवा की रफ़्तार को झेल नहीं पाता और गिर पड़ता है |
इसी तरह गाँव के पुराने लोग धीरे धीरे गिरते चले गये |हर पेड़ का गिरना यानी गाँव से एक बुजुर्ग का चले जाना |हर महाप्रयाण गाँव की मिटटी से अपने हिस्से की खुशबू कम करता गया |
धीरे- धीरे पुराने लोग कम होते गए और मेरे लिए गाँव का आकर्षण कम होता गया |एक कवि मित्र अपना दर्द इन शब्दों में बता रहे थे कि-
न ताऊ रहे न चचा
इसी के साथ गाँव का आकर्षण न बचा |
मुझे अपने पिताजी की बात याद आ गयी कि गाँव जाने से पहले तो खूब उमंग होती है लेकिन गाँव में कदम रखते ही मन कहता है-चलो वापस |
मेरे साथ भी कुछ कुछ ऐसा ही हुआ |धीरे धीरे चाचा के सब बेटे दिल्ली में सेटल हो गये तो धीरे धीरे गाँव मुझे भूल गया लेकिन क्या मैं भी गाँव को भूल सका हूँ ?
गाँव से जब कभी किसी शादी-ब्याह के बहाने शहर में जाते थे तो गाँव से निकलने के कुछ घंटे बाद चर्च के क्रॉस दिखने शुरू हो जाते थे |जैसे ही चर्च के गुम्बद दीखते थे ,ख़ुशी बढ़ती जाती थी कि शुरू वाला सफर ख़त्म हुआ |अब आगे ट्रेन का सफर शुरू होगा |
शंकर रोड से निर्माण भवन तक जाने के सफर में तालकटोरा रोड से कुछ पहले राष्ट्रपति भवन के भव्य गुम्बद दिखने लगते तो मेरा मन बिना देर लगाए सरधना से पहले के उस रास्ते पर जा पहुँचता था ,जहाँ से चर्च के गुम्बद दिखने शुरू होते थे |
इसका अर्थ था कि मेरा गाँव अब भी मेरे मन में करवटें लेता रहता है |
लेकिन अब वह मुझे उस तरह नहीं खींचता जितनी ताक़त से संजीव छपरा की तरफ खिंचा और होली के तीन दिन पहले अपने गाँव की तरफ निकल गया |
कश्मीरी गेट के बाहर लम्बे सफर की बसें मिलती हैं |उसका ख्याल था कि सोलह-सत्रह घंटे के सफर के बाद वह छपरा पहुंचेगा और वहां से एक घंटे बाद अपने गाँव में |
संजीव दिखने में तो बच्चा ही लगता था लेकिन बच्चा था नहीं |छह महीने बाद गाँव जा रहा था तो मन में जोश था कि अपनी छोटी सी बच्ची के लिए खिलोने लेकर घर में घुसेगा |उसके लिए फ्रॉक उसने दिल्ली से ही खरीद ली थी |घरवाली के लिए साड़ी भी तभी खरीद ली थी |अपने माता-पिता और बहन के लिए सामान छपरा से ले लेगा |यह सोचकर वह शाम छह बजे के आस-पास कश्मीरी गेट पहुँच गया |
वह जल्दी से जल्दी अपने आँगन को सलाम कर लेना चाहता था लेकिन उन लड़कों की पकोड़ियों में न जाने क्या भरा था कि वह खाते ही जैसे सावन के झूलों में झूलने लगा |
उधर उसकी बहन और बहनोई उसके इंतज़ार बेचैन थे |अपने घर में बहुत बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे |उसका बहनोई जोगिन्दर छपरा की मिल कॉलोनी में रहता था |उसका ख्याल था कि गाँव जाने से पहले वह रात को उनके साथ रहेगा |मन भर बातें करेंगे |
बस से उतरकर गाँव जाने के लिए उसने ऑटो लिया था |ऑटो में चार लड़के पहले से ही मौजूद थे |संजीव दिल्ली से आया था ,यह तो बस देखकर ही पता चल गया था | उन लड़कों ने ताड़ लिया कि होली करीब ही है तो सजीव खाली तो नहीं हो सकता |उसके पास जरूर मोटा पैसा होगा क्यूंकि गांव से जो भी लड़के दिल्ली जाते हैं |कम खर्चा करते हैं ताकि कुछ पैसा बचे और वे गांव जाकर अपनी जिम्मेदारी निभा सकें |
जैसे ही संजीव ऑटो में चढ़ा चारों लड़कों ने उसे घेर लिया |अब वह चाहकर भी बाहर नहीं निकल सकता था लेकिन गांव आने के जोश ने उसे किसी आशंका के बारे में सचने ही नहीं दिया |
संजीव वैसे मूर्ख नहीं था |गांव से सैकड़ों मील दूर दिल्ली में रहता था इसलिए चेतन रहना उसकी आदत हो गयी थी |वह मेहनती भी था तो उसके मालिक ने संजीव को फोन किया ताकि उसकी कुशलता के बारे में बाख़बर रहे|संजीव ने बता दिया कि वह गांव की तरफ जा रहा है और गांव के चार लड़के उसके साथ हैं |
यह सुनकर मालिक की तसल्ली हो गयी लेकिन थोड़ी ही देर बाद जोगिन्दर का फोन आया कि संजीव छपरा तक तो कुशलता से पहुँच गया था लेकिन गांव में अब तक नहीं पहुँचा |
छपरा में तो वह शाम चार बजे ही पहुँच गया था लेकिन अब तक न जोगिन्दर के घर आया और न ही गांव में अब तक पहुँचा था |
उसकी बच्ची तीन महीने की हो गयी थी और अब अपनी माँ को पहचानने लगी थी |
माँ को पहचानने में बच्चे को ज्यादा जोर नहीं लगाना पड़ता क्यूंकि माँ के शरीर में से ही वह इस दुनिया में आया है |
बच्ची अगर बाप को पहचानती तो बच्ची की चेतना का परीक्षण भी हो जाता |
जोगिन्दर खुद भी संजीव का इंतज़ार कर रहा था क्यूँकि वह उसका अकेला साला था |सास-ससुर के बाद साला-साली ही ससुराल में मेहमान की आवभगत किया करते हैं |
होली पर साला दिल्ली से आ रहा था तो जोगिन्दर खुद भी उसकी आवभगत करने को उत्सुक था |उसकी पत्नी संगीता खुद अपने भाई को अपने हाथ की बनी चीजें खिलाने की इच्छुक थी |कई दिनों से वह अपने भाई का इंतज़ार कर रही थी लेकिन वह अब तक नहीं पहुंचा था जबकि छपरा के बस स्टैंड पर चार बजे ही उतर गया था |
बस स्टैंड से अपनी बहन के घर तक आने में उसे पंद्रह मिनट से ज्यादा नहीं लगना चाहिए था |जैसे जैसे समय बढ़ रहा था ,संगीता की चिंता भी बढ़ रही थी |तीन बार वह घर से इसी लिए गली के नुक्कड़ तक निकली कि शायद उसका प्यारा भैया संजीव उसे आता हुआ दिख जाए लेकिन तीनो बार उसे निराश लौटना पड़ा |
एक बार तो दूध वाले ने ही टोक दिया ,बोला -कैसी हो भोजी ?भैया तो देर से लौटते हैं ,कोई मेहमान आ रहे हैं क्या ?
दूध वाला तो बेवज़ह भी बोलता ही रहता है इसलिए उसने उसे कोई जवाब नहीं दिया और घर में आकर काम में लग गयी |उसे शाम के खाने का इंतज़ाम भी तो करना था लेकिन उसके मन में शकाओं की घटा घिरने लगी थी क्यूंकि उसका प्यारा छोटा भाई दिल्ली से तो आ चुका था लेकिन अभी तक उसके कमरे तक नहीं पहुंचा था |
अपने भाई के आने की ख़ुशी में बाजार से पनीर मंगाकर रखा था |
उसके पति जोगिन्दर कपडा मिल में ही तो काम करते थे |तनख्वाह इतनी ही थी कि गुजारा हो जाता था |वैसे संजीव को मीट के साथ चावल पसंद थे लेकिन रेखा को डर था कि त्यौहार के दिनों में मीट खिलाने से देवी मैया कहीं नाराज़ न हो जाएँ और संजीव के साथ कुछ बुरा हो जाये |इस डर के कारण उसने मीट की बजाय पनीर मंगवाया था |
उसने हाथ जोड़कर मन ही मन देवी से प्रार्थना की कि संजीव जल्दी आ जाये |
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प्रार्थनाओं की भी बहुत महत्ता है |बचपन से ही हम किसम-किसम की प्रार्थनाएं सुनते आये हैं |हर मज़हब की अपनी प्रार्थना है |हिन्दुओं की ज्यादातर प्रार्थनाएं संस्कृत में हैं |हिन्दुओं में चूंकि बहुत सारी जातियां और देवता हैं इसलिए भाषाओँ में भी भिन्नता है और प्रार्थनाओं में भी |बचपन में मैं सोचता था कि मेरी क्लास में पढ़ने वाला नफीस उर्दू में प्रार्थना करता है तो खुदा उसे समझ पाता होगा या नहीं |हिंदुस्तान का खुदा तो हो सकता है हिंदी ही समझता हो |यह भी हो सकता है कि उसकी प्रार्थना अरबी या फ़ारसी में हो |अरबी में हो या फारसी में हो ,जिस भाषा को जानते न हों तो उसकी भाषा से हमें क्या फर्क पड़ता है लेकिन हर प्रार्थना में भावनाएं लगभग एक जैसी ही होती हैं किसी भी प्रार्थना को कभी निचली जगह नहीं दी जाती |
भोले-भाले लोगों को तो कभी -कभी यह भी लगता है कि संस्कृत समझना मेरे लिए इतना कठिन है तो
फिर देवता मेरी समस्या को कैसे समझेंगे ?
इसलिए अपनी भाषा में संगीता ने वही प्रार्थना की जो वह बचपन से करती आ रही थी लेकिन प्रार्थना किये हुए एक घंटा बीत रहा था और संजीव का कहीं आता-पता न था |
छह बजे के करीब उस का पति जोगिन्दर भी आ गया |
उसने उसके पीछे -पीछे बहुत दूर तक देखा लेकिन संजीव के आगमन का कोई चिन्ह न था |
उसे लगने लगा कि वाकई उसकी प्रार्थना में ठीक भाषा इस्तेमाल नहीं हुई है |
हालांकि बचपन में तो देवी-देवता उसकी बात समझ लेते थे |वह जब चाहती नयी गुड़िया मिल जाती थी लेकिन आज उसका भाई संजीव उसे नहीं मिल रहा था जबकि दिल्ली से वह छपरा के बस स्टैंड पर पहुँच चुका था |
उसे ख्याल आया कि हो सकता है वह गांव पहुँच गया हो लेकिन ऐसा लगता न था क्यूंकि अगर गांव पहुँचता तो खबर मिल ही जाती |
अब पनीर की तरफ उसका ध्यान भी नहीं जा रहा था |उसकी आँखों में एक ही तस्वीर घूम रही थी उसके प्यारे भाई संजीव की ,जिसका कोई आता-पता नज़र न आता था |
उसकी मौसी कहती थी कि जिसके लिए बहुत सारी प्रार्थनाएं की जाती हैं वह कभी भी जल्दी नहीं आता इसलिए प्रार्थना करनी बंद कर देनी चाहिए |
उसने इस टोटके का भी इस्तेमाल करके देखा लेकिन संजीव का अब भी कुछ पता न था |
रात के नौ बजने लगे थे ,मामा की इंतज़ार करके मुनिया भी सो गयी थी |छोटी बच्ची को क्या पता कि मामा का चेहरा कैसा है लेकिन बच्ची माँ को बहुत खुश देखकर खुद भी खुश हो रही थी |माँ के चेहरे की रौनक बता रही थी कि आज का दिन बाकी दिनों जैसा नहीं है बल्कि कुछ ख़ास है |
आखिर ग्यारह बजे जोगिन्दर भी ऊँघने लगा |मिल में पूरे दिन काम करके हाथ -पैर जवाब देने लगते हैं |आखिर कब तक जागता |
जोगिन्दर के सोने के बाद भी वह जागती रही लेकिन उसका शरीर भी थककर चूर हो गया था |उसने फिर देवता से प्रार्थना की कि उसका भाई जहाँ भी हो सुरक्षित हो और फिर उसकी चेतना ने जवाब दे दिया और वह भी बेसुध होकर सो गयी |
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संजीव जैसे ही छपरा में उतरा तो वह बहुत खुश था चूंकि बस समय पर पहुँच गयी थी |जोगिन्दर से उसकी बात रास्ते में ही हो गयी थी |
बस स्टैंड से संगीता के घर जाने में बैटरी रिक्शा में सिर्फ पंद्रह मिनट लगते थे |अभी सिर्फ चार बजे थे |जल्दी ही वह संगीता के घर पहुँच जायेगा और वहाँ से फिर गाँव की ओर रवाना हो जायेगा |
उसका इरादा था कि दिन छिपने से पहले पहले वह गाँव में पहुँच जायेगा |
छपरा में वह वक़्त से पहुँच गया था |
उसे ध्यान आया कि संगीता और उसकी बेटी के लिए अभी उसने कुछ भी नहीं खरीदा है |उसका ख्याल था कि संगीता के घर जाने से पहले ही संगीता और उसकी बच्ची के लिए कुछ खरीदेगा |
उसका ख्याल था बस स्टैंड के पास जो बाजार है,वहाँ से उसे फ्रॉक भी मिल जाएगी और खिलोने भी | उसकी नज़र शहर का नयापन खोज रही थी |कई साल से वह दिल्ली में ही रह रहा था |छपरा में घुसते ही उसे बिहार की संस्कृति की महानता याद आने लगी थी |यहाँ के भोजपुरी गीत ही उसे दिल्ली में भी तारो-ताज़ा रखते थे |
उसे ध्यान आ गया कि छठ के मौके पर कैसे उसकी भाभी ने उसे खुश कर दिया था |त्यौहार पर स्पेशल खाना बनाया जाता है |छठ के दिनों में सर्दियों का मौसम होता है |उस गुलाबी सर्दी में भाभी ने उसके रिश्ते की बात शुरू की और अगले छह महीनो में रिश्ता मजबूत हो गया था | गीता को देखते ही उसे एक अलग तरह की ख़ुशी का एहसास हुआ और उसने अपने दिल में गाया-
साँच कहें तोहरे आवन से हमरे आंगन में आयी बहार भौजी |
अभी वह बहार की कहानी दिल में दोहरा ही रहा था कि तीनो लड़कों ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिये |
एक लड़के ने उसे कोल्ड ड्रिंक पीने को दी |उसे लगा कि कोल्ड ड्रिंक पीनी ठीक नहीं है लेकिन अपने गांव -गिरांव में क्या खतरा |कोल्ड ड्रिंक के साथ पकोड़ियां भी थीं |दिल्ली से चले हुए बीस घंटे बीत रहे थे |संजीव नौजवान था इसलिए भूख भी लगने लगी थी |उसने पकोड़ियां खाईं और कोल्ड ड्रिंक भी पी |पीते -पीते ही उसका शरीर निढाल पड़ने लगा था |उसके बाद उसे कुछ याद नहीं|
अगले दिन तक भी संजीव अपने गांव नहीं पहुंचा तो उसके माँ-बाप और बीवी बहुत चिंतित हो गये |संजीव की माँ ज्यादा उदास हो रही थी |वास्तव में उन्हें ब्लड प्रेशर की समस्या भी थी |इस बुढ़ापे में तो एक मात्र युवा पुत्र ही अंधे की लाठी था और उसी का कुछ अता-पता न था |
बीवी की अपनी समस्या थी |सजीव की छोटी सी बच्ची उसकी गोद में थी ,इस प्रकार वह जिम्मेदारी भी बढ़ गयी थी |दो साल पहले उसे ऐसी कोई समस्या न थी |अपने गांव में वह राजकुमारी की तरह रहती थी |
माँ बनना सचमुच एक बड़ी जिम्मेदारी है |माँ और बच्ची की जिम्मेदारी भी संजीव के युवा कन्धों पर थी |
उधर संजीव का कुछ पता नहीं चल रहा था इसलिए अगले दिन थाने में शिकायत की गयी |
पुलिस के कुछ अपने रीति -रिवाज़ हैं |जब तक मुट्ठी गर्म न हो वह कुछ नहीं करती |
गरीब कैसे मुट्ठी गर्म करे जब कि उसकी जेब में हमेशा ठंडापन रहता है |मौसम भी उसकी जेब में गर्माहट नहीं ला पाता |
जो भी पुलिस में भर्ती होता है वह इस बात से बहुत खुन्नस खाता है कि जो खुद एक खतरा हैं उनकी भी सुरक्षा करनी पड़ती है |विशिष्ट लोगों के उसे तलवे चाटने पड़ते हैं |विशिष्ट लोगों में बड़ी संख्या धनी लोगों की है |
कहावत भी है-मालदार की जोरू सबकी चाची और गरीब की जोरू सबकी भाभी |संजीव न किसी की चाची था और न भाभी लेकिन गरीब जरूर था |उसके माता-पिता भी गरीब थे और गरीबों की तो भगवान ही सुनता है |
भगवान से उनका कोई संपर्क नहीं ,जान-पहचान नहीं |गांव में कुछ लोग कहते थे कि इस युग में तो पैसा ही भगवान है |
संजीव ने दिल्ली में खून-पसीने से मेहनत की |तब कहीं जाकर छह महीनो में बीस हज़ार रूपये जोड़ पाया था |
दिल्ली से छपरा तक उसकी खून -पसीने की कमाई सुरक्षित थी |बस में जब भी उसे नींद आयी उसे गांव का घर ही नज़र आया |नींद खुलते ही घर गायब |फिर जरा आँख लगी तो उसकी बीवी और बच्ची सपने में आयी |एक बार सपने में उसकी बहन संगीता भी दिखी |
ऐसे ही मनभावन सपनो में सफर पूरा हुआ |बस से उतरकर जैसे ही गांव की ओर रवाना हुआ चारों लफंगों ने उसकी खून पसीने की कमाई लूट ली |वह छोटी सी पूँजी, जो गरीब के लिए भगवान है लफंगों की जेब में चली गयी |
वे लफंगे जो कि उसी गांव की मिटटी में पले-बढे थे जिसकी मिटटी में संजीव भी पला-बढ़ा था |उसी गांव की पैदाइश होने के नाते वे सब उसके भाई थे लेकिन उन भाइयों ने ही संजीव का बेडा ग़र्क़ कर दिया था |
इतना ही नहीं ,जो कीमती जैकेट पहनकर वह छपरा तक आया था |वह भी उन्होंने उतार ली |तीन दिन बाद जब उसे होश आया तो उसके आस-पास पुलिस के जवान थे |पुलिस के इन लोगों ने ही उसे हस्पताल में दिखाया और उसे गांव तक पहुँचाया |अच्छे लोग भी पुलिस में होते हैं साफ़ हो गया |
तो क्या बताऊँ साहब हंसी-ख़ुशी का त्यौहार होली कितनी कंगाली में बीता |
संजीव जब वापस आया तो गुनगुना रहा था-
गैरों से बचकर आ गए ,अपनों में आकर लुट गये
इस लूटमार की दौड़ में सुख -चैन कैसे पाएंगे
भारत तो है आज़ाद हम आज़ाद कब कहलायेंगे ?
मैंने उससे पूछा -कैसे हो संजीव ?
वह बोला - आपकी मेहरबानी है साहब |
- रामकुमार 'सेवक'