राजा राममोहन राय - स्त्रियों पर अत्याचार होते देखकर जो खामोश नहीं रहे..

आज से ठीक 500 वर्ष पहले 22  मई 1722 को एक महान सुधारक का जन्म हुआ था , जिनका नाम था - राजा राम मोहन रॉय |मज़े की बात यह है कि वे कहीं के राजा नहीं थे और न ही राजकीय परिवार से थे  बल्कि  उनका राजा होना एक अलंकरण था लेकिन उनके काम इतने बड़े थे जिनके कारण उनका नाम अमर है और रहेगा |

उन्हें राजा का अलंकरण जिस व्यक्ति ने दिया उसका नाम था-अकबर द्वितीय |वो मुग़ल बादशाह थे |उनके बारे में इतना जानना ही पर्याप्त होगा कि वे अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फर के पिता थे | 

अकबर द्वितीय नाम मात्र के ही बादशाह थे चूंकि देश में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था लेकिन उनका दिया अलंकरण राजा आज तक प्रतिष्ठित है चूंकि जिस व्यक्ति को उन्होंने इस उपाधि से  सम्मानित किया वह उस अलंकरण का न्यायोचित पात्र था |

राजा राममोहन रॉय ,बंगाल के थे जो कि उस समय देश का सबसे महत्वपूर्ण राज्य था |भारत की राजधानी कलकत्ता इसी राज्य में स्थित थी |इसके बावजूद हिन्दुओं में जाति भेद और इसके प्रति अन्धविश्वास और कट्टरता बहुत अधिक थी |

इतिहास बताता है कि राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को हुगली के बंगाली हिंदू परिवार में हुआ था | राममोहन के पिता रमाकांत राय वैष्णव थे तो उनकी माता तारिणी देवी शैव मत की थीं |15 वर्ष की आयु तक उन्हें बंगाली, संस्कृत, अरबी तथा फ़ारसी का ज्ञान हो गया था। किशोरावस्था में उन्होने काफी भ्रमण किया। उन्होने 1809-1814 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए भी काम किया। 

वर्ष 1815 में कोलकाता में उन्होंने आत्मीय सभा की स्थापना की थी |वर्ष 1828 में द्वारिकानाथ टैगोर के साथ मिलकर उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की |राजा राममोहन राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर अपने आपको राष्ट्र सेवा में झोंक दिया।

राजा राम मोहन राय का जन्म  कलकत्ता के उच्च ब्राह्मण कुल में हुआ था इसके बावजूद कलकत्ते के हिन्दू उन्हें हिन्दू विरोधी कहते थे चूंकि वे अंध विश्वासों के विरुद्ध और प्रगतिशील थे |उन्होंने उपनिषद भी पढ़े थे और बाइबिल भी |इस कारण वे धर्म की मनघडंत अवधारणाओं को नहीं मानते थे |  भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के अलावा वे वास्तविक धर्म के प्रगतिशील स्वरुप को स्वीकार्य बनाने की लड़ाई भी लड़ रहे थे। दूसरी लड़ाई उनकी अपने ही देश के नागरिकों से थी। जो अंधविश्वास और कुरीतियों में जकड़े थे।

राजा राममोहन राय ने उन्हें झकझोरने का काम किया। बाल-विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, पर्दा प्रथा आदि का उन्होंने भरपूर विरोध किया। धर्म प्रचार के क्षेत्र में अलेक्जेंडर डफ्फ ने उनकी काफी सहायता की। देवेंद्र नाथ टैगोर उनके सबसे प्रमुख अनुयायी थे।

राजा राममोहन राय मानवीयता से परिपूर्ण थे |वास्तविक धर्म मानवीय गुणों का व्यवहारिक प्रस्तुतीकरण ही तो है लेकिन स्थानीय धर्म सभा ने उन्हें हिन्दू विरोधी कहा |

इससे स्पष्ट है कि धर्म में कठमुल्लावाद उस समय भी मौजूद था |इसका परिणाम यह हुआ कि सती होने के नाम पर स्त्रियों की हत्या को धार्मिक स्वरुप दिया जा चुका था |

इसके बावजूद वे खामोश नहीं रहे |  

उन्होंने मानवीयता की अपनी समझ को सती प्रथा पर मौन न रहकर प्रकट किया |इस प्रकार उनकी मानवता निष्क्रिय नहीं थी |

ऐसा तो नहीं हो सकता कि कोई अन्य व्यक्ति अथवा समाज इस नृशंसता और सामाजिक  विकृति को महसूस ही नहीं करता हो लेकिन अन्याय के विरुद्ध और मानवता के पक्ष में खड़े होने की हिम्मत हर एक में नहीं होती |

वास्तव में उन्हीं दिनों उनके बड़े भाई की मृत्यु हुई और लोगों ने उनकी भाभी पर पर सती होने का दबाव बनाया |यह ऐसा वक़्त था कि धर्म के नाम पर इस नृशंसता को भी राजी-ख़ुशी स्वीकार कर लिया गया था |इस प्रकार धर्म में प्रगतिशीलता का कोई अस्तित्व न बचा था |

इससे स्पष्ट है कि धर्मग्रंथों में दया व प्रेम का अस्तित्व मजबूत होने के बावजूद तत्कालीन हिन्दू समाज में नारियों की स्थिति बदतर थी |इस प्रकार मानवीयता का यह गुण उनके भाषणों और लेखन तक सीमित नहीं रहा |उन्होंने इसे सती प्रथा को रोकने के लिए इस्तेमाल किया |

समाज जब ऐसी नृशंसता को स्वीकार कर चुका हो तो कोई भी एक व्यक्ति कैसे इसे रोक पायेगा जबकि उसके उनके धर्म और परिवार के लोग उनके साथ खड़े होने में स्वयं को अक्षम महसूस कर रहे थे तो किसी सक्षम कानून के अस्तित्व की आवश्यकता महसूस हुई | 

आधुनिक भारत के निर्माता माने जाने वाले राजा राममोहन राय की 246वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके जीवन के महत्व को सबने महसूस किया कि जो कार्य उन्होंने किया स्त्रियों के लिए उसका ऐतिहासिक महत्व है |उनका जन्म 22 मई, 1772 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिला अंतर्गत राधानगर गांव में हुआ था।

उन्हें आधुनिक भारत में समाज सुधार का जनक कहा जाता है। बाल विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, अंधविश्वास, कर्मकांड, पर्दा प्रथा आदि का उन्होंने पुरजोर विरोध किया था।इसी से स्त्रियां अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त कर सकीं |उनके योगदान लो नमन |

- आर. के. 'प्रिय'