समझदारी किस प्रकार जीवन संवार सकती है और उलझे मसलों को सुलझा सकती है ,पर प्रकाश डालते हुए कल (03 /07 /2019 )को विजय चौक पर महात्मा ने कहा कि किसी दम्पति की घर की कलह इतनी उलझी कि विवाह को बनाये रखना कठिन हो गया |
विवाह के सिर्फ छह साल बाद ही तलाक़ का मामला अदालत में पहुँच गया और कुछ दिन चला |अदालत ने तलाक़ को मंजूरी दे दी ,साथ ही स्त्री को उसका सामान ले जाने की इजाजत भी |
पत्नी और उसकी माँ दोनों संतुष्ट थे | अदालत से फैसला होते ही माँ और बेटी , बेटी के ससुराल वाले घर में चल दीं |
घर जब पहुँची तो बेटी का पति अर्थात उसकी माँ का दामाद भी मौजूद था |मामला चूंकि चार साल से अदालत में चल रहा था और अब फैसला हो गया था तो उसे अब राहत थी | वह इंसान कुछ विशेष दुखी नहीं दिख रहा था लेकिन विवाह इंसान ख़ुशी और आपसी सुख के लिए करता है न कि विभिन्न प्रकार तनावों बाद तलाक़ के लिए |तलाक़ कम समय में और आराम से मिल जाए तब भी यह कोई अच्छी बात नहीं है क्यूंकि इंसान विवाह से पहले भी सपने देखता है और बाद में भी |सत्य कहें तो तलाक़ उन सपनो की हत्या है |
माँ -बेटी दोनों घर पहुंची तो लड़की के पति ने उनसे सामान इकठ्ठा करने और ले जाने के लिए अनुरोध किया |निर्णय भी यही हुआ था इसलिए बेटी उस घर में घुस गयी जो कुछ साल पहले तक उसका अपना मकान था |
दहेज़ और मिले उपहारों सहित पूरा सामान एक कमरे में बंद था ,जिसका ताला खुला था |बेटी ने देखा कि उपहारों में वे चीजें भी थीं जो उसके पति ने उपहार में दी थीं |बाकी सामान के साथ वह प्यार का उयहार भी धूल खा रहा था |
कीमती उपहारों को धूल खाते देखकर बेटी को रुलाई आ गयी |उसका पति भी मर्माहत था ,दूसरी तरफ बेटी की माँ जोर लगा रही थी कि सामान जल्दी इकठ्ठा करो ,देर हो रही है |
बेटी ने अपने उपहारों को धूल खाते देखा तो उसे ख्याल आया कि उपहार जब मिले थे तब यह तो नहीं सोचा था कि ये सब एक गंदे कमरे में पड़े होंगे ,विवाह के सिर्फ छह साल बाद |
पति भी मर्माहत था |वे यादें आंसू बनकर बहने लगीं |प्रेम फिर ऊपर आ गया और दोनों ने अदालत का फैसला न मानने का निर्णय लिया , बिना कुछ विरोध किये |
बेटी की माँ अब भी आवाज़ लगा रही थी कि जल्दी करो,देर हो रही है |
- रामकुमार सेवक