मुद्दा (अध्यात्म) भारत एक धनी देश फिर भी रहने वाले गरीब क्यों कहे जाते हैं ?

हिंदुस्तान के बारे में वर्षों पहले एक विद्वान ने कहा कि India is a rich  country  inhabited by poor कि भारत एक धनी देश है, जहाँ गरीब लोग बसते हैं |कहने वाले ने यह संसाधनों और आर्थिक सन्दर्भ में यह बात कही |

हिंदुस्तान में सुंदर नज़ारों की कमी नहीं है लेकिन basic facilities यहाँ provide नहीं कराई जातीं |  जब कि बाहर के मुल्कों में वे कराई जाती हैं इसलिए वहां के जो सुन्दर स्थान हैं,वहाँ दूर-दूर से लोग पहुँचते हैं|ऐसे ही अनेक कारण देखकर यह बात कही गयी कि हिंदुस्तान एक अमीर मुल्क है, जहाँ गरीब लोग बसते हैं |

कहने का भाव कि Resources तो हैं लेकिन शोषण भी बहुत है | हम अख़बारों और समाचारों में देखते रहते हैं कि कितनी corruption  है हिंदुस्तान में |जो funds और साधन मजबूर लोगों तक पहुँचने चाहिए उनमें political level तथा अन्य levels  पर भी corruption (भ्रष्टाचार) होता है |

लोभ-लालच-खुदगर्जी में आकर उनका निजी इस्तेमाल कर लिया जाता है,वह लोगों तक पहुंचता ही नहीं है |  

शोषण की दृष्टि से भी और Resources को हथिया लिया जाता है |कुछ और मजबूरियां,जिनके कारण Resourses को पूरी तरह उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा, जितना provide होना चाहिए |इन सब कारणों से गरीबी हिंदुस्तान में है |इसीलिए कहा कि मुल्क अमीर हैं लेकिन लोग गरीब हैं |इस प्रकार आर्थिक दृष्टिकोण से किसी के द्वारा यह कहा गया |दास ने जब यह पहली बार सुना तो एक और दृष्टिकोण ध्यान में आया कि अगर आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो तब भी लगभग यही बात लागू होती है |

आध्यात्मिक दृष्टि से अमीरी और गरीबी 

कहा गया है-India is a rich country कि हिंदुस्तान एक अमीर मुल्क है क्यूंकि जितने गुरु-पीर-पैगम्बर ,सन्त-महात्मा इस मुल्क में हुए ,दुनिया में कहीं नहीं हुए |अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान रूपी दौलत हमारे हिस्से में आयी |

इतने सन्त -महात्मा जैसे राजस्थान में मीराबाई का हम जिक्र कर रहे हैं |इसी तरह कहीं कबीर जी का,कहीं रविदास जी का जिक्र |उत्तर प्रदेश में कोई पैदा हुए तो महाराष्ट्र में सन्त तुकाराम जी ,नामदेव जी इत्यादि 

|दक्षिण भारत में हम देखते हैं ,कहीं त्यागराज जी.बोतन्ना जी,वेमन्ना जी ,बंगाल की धरती पर हम देखते हैं ठाकुर रामकृष्ण परमहंस जी कहीं स्वामी विवेकानंद जी,इसी प्रकार पंजाब में भी कितने ही गुरु -पीर-पैगम्बर हुए ,श्री गुरु नानक देव जी से लेकर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज या फिर अनेकों सूफी-संतों-भक्तों का जिक्र हो रहा है ,उनके अमोलक वचनो का सरमाया हमारे पास है |

हमारे पास दौलत तो है लेकिन फिर भी यह गरीबी ?

इसका कारण यह पाया गया कि दौलत तो हमारे हिस्से में आयी गुरु-पीर-पैगम्बरों-भक्तों के रूप में,उनके मार्गदर्शन के रूप में,उनकी व्यवहारिक प्रेरणा के रूप में |उनके देशप्रेम के रूप में ,जागरूकता देने वाली उनकी वाणी के रूप में लेकिन फिर भी हम कंगाल इस लिहाज से हैं कि उसके बावजूद हम भेद -भाव करते हैं | नफरत करते हैं,ईर्ष्या करते हैं |

हम मजहबों-मिल्लत की दीवारें खड़ी करते हैं |हम एक-दूसरे को लूटने में लगे हैं |दुत्कारने और दबाने में लगे हुए हैं |शोषण करने में लगे हुए हैं |हमारा ऐसा व्यवहार प्रकट करता है कि गुरु-पीर-पैगम्बरों की  जो शिक्षाएं उन्हें मिली थी और जो उन्होंने हम सबको बाँटी ,उसकी हमने संभाल नहीं की |

उसको हमने अपनाया नहीं है |इस दृष्टि से यह कंगाली है और इससे ज्यादा कंगाली हो नहीं सकती |भले ही हीरे-जवाहरात के ढेर हमारे घरों में पड़े हों,अर्थात गुरु -पीर-पैगम्बरों की शिक्षा का सरमाया हमारे पास हो और फिर भी हम लड़-झगड़ रहे हों ,गला काटने में लगे हों |चाहे Educated (शिक्षित )भी हो जाए ,फिर भी गँवारों की तरह व्यवहार कर रहे हों तो फिर काहे की education (शिक्षा )है, कैसी अमीरी है ?

जीवन के विभिन्न पहलू और सन्तों की शिक्षाएं 

अगर हमारे जीवन के विभिन्न पहलू ही सुन्दर न बन पाये तो  फिर शिक्षित या धार्मिक होने के दावे करने का क्या औचित्य है ?अगर हमारी भावनाएं सुन्दर न बनी ,हम नफरत आदि से ऊपर न उठे ,प्यार में स्थित न हो पाए ,दुत्कारने के भाव बने रहे ,दीवारें गिराने की बजाय और मजबूत करते चले गए ,कदम-कदम पर नफरत-वैर -ईर्ष्या तो फिर यही है वो गरीबी |

इसका अर्थ है कि शिक्षाए तो मिलीं,संपत्ति तो मिली मगर फिर भी कंगाल |यह केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं साबित होता बल्कि व्यवहारिक दृष्टि से पूरी तरह सिद्ध हो जाता है | 

प्रतितर्क 

इसके विपरीत हम तर्क देते हैं कि ऐसा कैसे कह रहे हैं ,हमारे देश में कितने प्रभु प्रेमी हैं ,कितने पूजास्थल हैं |कितनी पूजा-अर्चना ,जप-तप -स्नान लोग करते हैं |यह सब धर्म का ही तो विस्तार है | इतने पूजास्थल ,धर्मस्थान क्या किसी अन्य देश में हैं ?

पश्चिमी देशों में चर्च और Synagogues (यहूदियों के धार्मिक स्थल )हैं लेकिन उनकी अगर गणना करें तो जितने धर्मस्थल हमारे देश में हैं उनका मुक़ाबला वे सब कर न पाएंगे, फिर हिंदुस्तान spiritually गरीब कैसे हुआ ?

इसे इस रूप में देखना पड़ेगा कि spirituality अथवा आध्यात्मिकता अब धर्म में से निकल चुकी है |अब जितनी चाहे पूजा-अर्चना कर लें ,धर्म स्थान बनवा लें ,तीर्थाटन कर लें,हमारा व्यवहार जब तक अच्छा नहीं होता ये सब Rites & Rituals (रीति - रिवाज़ )ही सिद्ध होते हैं |

धर्म में से अध्यात्म कैसे निकल चुका है ?

True essence of religion  was  because of spirituality (अध्यात्म के कारण ही धर्म में सार था )लेकिन धर्म में से आध्यात्मिकता निकल चुकी है |

इसे प्रमाणित करते हुए बाबा जी ने कहा -

यह नफरत,यह वैर,यह ईर्ष्या ,जाति के नाम पर झूठा अभिमान ,एक धर्म वाले को दूसरे धर्म वाला नहीं भाता, तो इसे spirituality (अध्यात्म )कैसे कहें ?

Spiritual  होने की पहचान 

Spirituality होने की पहचान है यदि इंसान का इंसान से प्यार है |विनम्रता है |विशालता है |सहनशीलता है |सब्र -संतोष है |अपनत्व का भाव है |यही अध्यात्मिकता है, beyond rites & rituals (रीति-रिवाज़ों से हटकर )|यह कर्मकांडों से बहुत आगे है |आध्यात्मिकता अगर लुप्त हो गयी तो िहं लोगों के लिए वास्तव में कंगाली है |

 - निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी

(साभार - प्रगतिशील साहित्य, जनवरी 2021 अंक)