मुद्दा - साम्प्रदायिकता और आध्यात्मिकता

साम्प्रदायिकता आग लगाने का काम करती है और आध्यात्मिकता उसे बुझाने का |जो लोग बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करते वे साम्प्रदायिकता की चपेट में सबसे पहले आते हैं और नेताओं के हाथ की कठपुतली बनकर विनाश करते हैं |

नेता उनका इस्तेमाल अपनी ताक़त दिखाने के लिए करते हैं |

गुलाम अली साहब एक बहुत बढ़िया गायक हैं |पूरी दुनिया उनके गायन को पसंद करती है |कल पता चला  कि कुछ लोगो ने अपनी ताक़त दिखा दी और उनका शो रद्द करवा दिया |यह कला का दमन है जो कि पूरी तरह गलत है |यह एक साम्प्रदायिक कदम है |

हम भारतीय साम्प्रदायिकता का बहुत गहरा ज़ख्म झेल चुके हैं -विभाजन के रूप में |

हमारे देश के दो टुकड़े हो गए |लाखों लोग मर गए -दर्द का वह मंज़र हमने खूब पढ़ा है,सुना भी है, बहुत गहराई से महसूस किया है |

क्या उसके बाद भी हमें किसी और सबक की ज़रुरत है ?फिर यह पागलपन क्यों ? 

क्या गुलाम अली के आने से किसी दंगे-फसाद के होने का ख़तरा था ?

एक शायर,एक गायक तो दुसरे के दर्द को शब्द देता है,उसे अपनी आवाज़ देता है इसलिए लोग उसे प्यार करते हैं |फिर मज़हब भी पीछे छूट जाता है और गोरा-काला रंग भी |देश भी पीछे छूट जाता है जब मानवता की धारा बहती है |

किसी भी नागरिक को अपने देश पर गर्व होता है और वह होना भी चाहिए लेकिन हम मूलतः मानव हैं और उस देश के वासी हैं जहाँ की संस्कृति उन ऋषियों की वाणी से निर्मित हुई है ,जिन्होंने वर्षो पहले कहा था  कि -

सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः,

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्  | 

यानी कि - सबका भला करो भगवान,

सबका सब विधि हो कल्याण 

यह है -अध्यात्म ,जो कि भारत की महानता का कारण है,वास्तविक धर्म है |इस धर्म का जन्मदाता होने के कारण हमें भारत देश पर और खुद के भारतीय होने पर गर्व होता है |

अब इस आध्यात्मिकता पर खतरे के बादल छाये हुए हैं क्यूंकि विशालता को साम्प्रदायिकता की आरी से लगातार काटा जा रहा रहा है |सहनशीलता ,जो कि मानव के इस धरती पर अस्तित्व की कारण है स्वभाव से लुप्त होती जा रही है |उसे कमजोरी मान लिया गया है |

अहिंसा के सिर्फ नारे हैं और हिंसा मनुष्य के स्वभाव का हिस्सा बनी हुई है,इसके कारण देश के समतावादी और आध्यात्मिक चरित्र पर आंच आई है |मुझे लगता है कि धर्म के नाम पर जो व्यापारिकता और संकीर्णता पनप रही है ,उसे रोकने और अध्यात्म को फैलाने की बहुत ज्यादा ज़रुरत है |    

(वर्ष 2015 में लिखा लेख ) 

- रामकुमार सेवक