बुद्ध अंतर्राष्ट्रीय शख्शियत हैं |वास्तव में उनका विज़न बड़ा है |उनका चिंतन प्राणिमात्र के लिए था |उनका वाक्य है-अप्पो दीपो भव अर्थात अपने दीपक स्वयं बनो |
बुद्ध इस अवस्था तक पहुंचे कैसे,इस पर चिंतन करते हैं तो पाते हैं कि उन्होंने भोग को छोड़ा और त्याग को पकड़ा |त्याग करना कोई सरल काम नहीं है चूंकि भोग का अपना रस है |बुद्ध बचपन में सिद्धार्ध थे,एक राजकुमार |उनके पिता उन्हें चक्रवर्ती राजा के रूप में देखना चाहते थे लेकिन उन्होंने सन्यासी बनना पसंद किया चूंकि वे दुखों के अनंत चक्र से छुटकारा पाना चाहते थे |
मुझे लगता है कि बोध तक पहुँचने हेतु सिद्धार्थ का तप-त्याग तो कारण था ही लेकिन यशोधरा का भी योगदान था |वे राजा की पुत्री थीं |सिद्धार्थ की विधिवत पत्नी और उनके पुत्र की माँ होने के बावजूद उन्होंने सिद्धार्थ के मार्ग में कोई व्यवधान उपस्थित नहीं किया |
सिद्धार्थ और यशोधरा की जोड़ी मुझे सदा से बहुत आकृष्ट करती रही है |सिद्धार्थ से यशोधरा को कोई भय या बाधा नहीं थी इसलिए यशोधरा ने सिद्धार्थ को नहीं छोड़ा लेकिन सिद्धार्थ ने यशोधरा को छोड़ दिया लेकिन क्या छोड़ पाए ?निश्चय ही ,अन्यथा निर्वाण का मार्ग दिखा पाते या नहीं दिखा पाते ,कौन कह सकता है ?
इस दृष्टि से यशोधरा बहुत मजबूत दिखाई देती हैं |उन्होंने बुद्ध के पुत्र राहुल को जन्म दिया और उसका पालन -पोषण किया |
समय गुजरा ,सिद्धार्थ बुद्ध हो गये |बहुत प्रसिद्धि प्राप्त हो गयी |आस-पास के राज्यों के लोग ,यहाँ तक कि सामंत और राजा भी उनके शिष्य बन गये |उन दिनों अखबार तो नहीं छपते रहे होंगे ,रेडियो और टी.वी.जैसे संचार माध्यम भी नहीं रहे होंगे लेकिन यशोधरा को बुद्ध की सब खबर रही |
सिद्धार्थ भी हृदयहीन नहीं थे लेकिन उनका ह्रदय ज्ञान में समां गया था या ज्ञान उनके ह्रदय में समां गया था, कौन कह सकता है ?
बहरहाल उनके पिता भी उनके क़ायल हो गए |पूरे राजभवन में बुद्धम शरणं गच्छामि गूँज रहा था |
अतीत का राजकुमार आज एक भिक्षुक था |संग्रह वृति और वासना का लेश भी न था लेकिन उनका ह्रदय उन्हें किसी न किसी तल पर कचोटता रहा होगा चूंकि यशोधरा उनकी पत्नी थी और आज भी उसके पत्नी होने पर कोई प्रश्न चिन्ह न था |वह उनके पुत्र की माता थी |इस प्रकार उनकी अपनी प्रतिष्ठा थी ,सम्मान था ,पत्नी और माँ होने का गौरव था |
नारी की कोमल भावनाओं को अपने काव्य में उकेरने वाले महान कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने उनकी पीड़ा समझी और कहा-
सिद्धि हेतु स्वामी गए ,यह गौरव की बात
पर चोरी-चोरी गये यही बड़ा व्याघात ,
सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
शायद मुझको अपनी पथ बाधा ही पाते
सखी,वे मुझसे कहकर जाते ....
गुप्त जी कहते हैं कि यदि सिद्धार्थ खुलकर निर्वाण के पथ पर जाते तो भी यशोधरा कोई रुकावट नहीं डालती |
बुद्ध भिक्षुक के रूप में थे,चीवर लपेटे |पूरा संघ उनके पीछे था |उद्घोष हो रहा था-
बुद्धम शरणम् गच्छामिधम्मं शरणम् गच्छामि
संघम शरणम् गच्छामि
इस अवस्था में बुद्ध के जीवन में यशोधरा का कोई स्थान न था लेकिन पत्नी होने के नाते बुद्ध आज भी उसके थे | वह भी राजमहिषी थी |पत्नी और माँ होने के अलावा उनकी एक राजकीय प्रतिष्ठा भी थी |उन्हें बुद्ध से कोई भय नहीं था इसलिए आत्मसम्मान और आत्मबल भी था |उसका कोई दोष न था |पूरा नगर बुद्ध के दर्शनों के लिए जा रहा था ,राजा भी जा रहे थे लेकिन यशोधरा का ह्रदय कहता था -वे आएंगे ,अवश्य आएंगे और ह्रदय की बात कभी झूठी नहीं होती -तब भी और आज भी |
उनका पुत्र था -बुद्ध को देने के लिए राहुल था |यशोधरा ने उसे ही बुद्ध की झोली में डाल दिया |आज भी वह दात्री थी |बुद्ध ने भेंट स्वीकार की और आगे बढ़ गये |
राहुल को उसके पिता को सौंप देने के बाद,क्या था उसके पास ?
वे बुद्ध की अनुगामी हो गयी |बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन को पता लगा तो बहुत व्यथित हुए |पुत्र तो पहले ही छोड़ चुका था |पूरी उम्मीद पौत्र राहुल से ही थीं |उसे भी पुत्र ने अपने संघ में शामिल कर लिया |पूरी उम्मीदों पर पानी फेर दिया |उन्होंने आपत्ति दर्ज़ कराई कि अभिभावकों की सहमति लिये बिना किसी बच्चे को संघ में शामिल नहीं करेंगे |बुद्ध ने यह स्वीकार किया |
वे चाहते तो खुद भी यह आपत्ति कर सकते थे चूंकि वही तो राहुल के पिता थे लेकिन यदि वे अपने पिता के प्रति आपत्ति करते तो सामान्य नागरिक होते लेकिन वे बुद्ध थे चूंकि परम शुद्ध थे |
- रामकुमार 'सेवक'