बाबा हरदेव सिंह जी को प्रायः लोग एक धर्मगुरु के रूप में जानते हैं |
प्रायः लोग यह समझते हैं कि धर्मगुरु वह शख्स है,जो अपनी पूजा करवाना चाहता है लेकिन हमें बाबा हरदेव सिंह जी को धर्मगुरु की उनकी छवि से स्वतंत्र करके देखना चाहिए |
बाबा हरदेव सिंह जी स्वयं इस सच्चाई को महसूस करते थे कि उनके बारे में यह राय प्रचलित हो सकती है इसलिए उन्होंने एक बार अंधभक्ति और तानाशाही का विश्लेषण किया |
अपने इस प्रवचन में बाबा जी ने गुरु अमरदास जी का एक प्रेरक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि वे अपने गुरु के समर्पित सेवादार थे | वे गुरुसाहब के लिए पानी भी भरकर लाते थे ताकि गुरु साहब स्नान कर सकें |
एक बार गुरु साहब ने शिष्य से कहा कि तुम रात को ही आज पानी भरने चले गए ?
(गुरु) अमरदास जी ने कहा - हुजूर, मैं तो यही मानता हूँ कि आप जब कहें तो दिन है और आप जब रात कहें तो रात है |
समर्पण की दृष्टि से यह एक कालातीत उदाहरण है |बाबा जी ने यहाँ अवतार बाणी के काव्यांश को उद्धृत करते हुए कहा कि-
गुरसिख गुर दी अख नाल वेखे गुर दे कन नाल सुणदा ए
गुरसिख ज्ञान सरोवर विच्चों हीरे -मोती चुनदा ए |
बाबा जी ने कहा कि कोई भी यह पहली बार सुनेगा तो यही समझेगा कि भक्ति की यह परिभाषा अपनी पूजा करवाने के भाव को प्रकट करती है |
हिटलर और मुसोलिनी भी तो ऐसे ही भक्त चाहते थे | यहाँ बाबा जी ने तानाशाही और भक्ति को अलग करते हुए कहा कि यहाँ शासन करने के चाव नहीं हैं |इसका तात्पर्य है कि वे गुरुडम से खुद को अलग रखते थे |बाबा जी जीने का सलीका सिखाते थे कि बाँस आपस में रगड़ खाते हैं और जल जाते हैं |आंधी आती है तो उखड जाते हैं जबकि घास में एक किस्म की विनम्रता होती है |बड़ी -बड़ी आंधियाँ और तूफ़ान भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाते |
बाबा जी ने अक्खड़पन और क्रोध पर विनम्रता को तरजीह दी |आज देश में विनम्रता को जैसे कमजोरी मान लिया गया है और सहनशीलता की कोई बात नहीं करता |जो हमारे धर्म का नहीं है उसे शत्रु मान लिया गया है जबकि भारतीय संविधान हर नागरिक को धार्मिक आज़ादी देता है |
बाबा हरदेव सिंह जी क्रोध और सहनशीलता की तुलना एक पुल से करते थे |उनका कहना था कि-वाहनों के बोझ को जो सहन कर लेता है ,वही पुल मजबूत होता है |इस प्रकार हर इंसान को सहनशील होना चाहिए |अहिंसक और विनम्र होना चाहिए |
मुझे लगता है कि रस्किन साहब ने जो कहा है कि वास्तविक महान व्यक्ति की पहली पहचान उसकी विनम्रता है, इसका अर्थ है कि जो महान होते हैं वो विनम्र तो जरूर होने चाहिए |बाकी महान आदमी के अपने कुछ गुण होते हैं -जैसे-दूसरों के काम आना,निराश की हिम्मत बढ़ाना,अपने विषय में कोई उपलब्धि हासिल करके दुनिया को विशेष उपहार देना| महान व्यक्तियों की ये विशेषताएं होती हैं/
विनम्रता से सिर्फ शुरूआत है|अन्य गुण भी तो होने चाहिए तभी महानता सिद्ध हो सकेगी |
साथ ही यह बात भी समझनी चाहिए कि यहाँ जिस विनम्रता की बात हो रही है वह अहम् के न होने का परिणाम है |
अहम् के न होने का मतलब है- परमात्मा के होने का निरंतर एहसास |
इस कारण यह विनम्रता वास्तविक है-दिखावटी नहीं | ऐसी विनम्रता सचमुच एक बड़ी उपलब्धि है |
साथ ही मुझे यह भी लगता है कि कुछ लोगों का स्वभाव कुछ अक्खड़ किस्म का होता है लेकिन दिल के वे अछे होते हैं और परोपकारी भी होते हैं|ऐसे लोग विनम्र न होने पर भी महान होते हैं |वे लोकप्रिय नहीं हो पाते लेकिन उपयोगी जरूर होते हैं|
इसके बावजूद विनम्रता,सहनशीलता और अहिंसा की अपनी महत्ता है|भक्ति के ये गुण विकसित करने की कोशिश हर किसी को ज़रूर करनी चाहिए क्यूंकि कि इनके कारण वह देश,समाज और विश्व के अधिक काम आ सकेगा |
- रामकुमार सेवक