हैसियत - वरदान है या अभिशाप

पुल बनायें, दीवार नहीं 

फिल्म अभिनेता जैकी श्रॉफ का एक अनुभव पढ़ने को मिला |वे कहते हैं कि मैं जब बच्चा था तो अपने माता - पिता के साथ एक कमरे के मकान में रहता था |

उनका कहना था कि मेरी माँ, मैं और पिताजी एक ही कमरे में सोते थे रात को जब भी मैं खांसता था तो माँ - पिताजी को उठने में जरा भी देर नहीं लगती थी |

बाद में मैंने बड़ा मकान लिया और माँ बड़े कमरे में रहने लगी |

हर कमरे को अलग करने वाली एक दीवार थी |

एक दिन जब सुबह मैं माँ के कमरे में गया तो उन्हें मृत पाया |मैं अपनी सबसे बड़ी दौलत खो चुका था |

मैंने सोचा कि रात में माँ ने मदद के लिए आवाज़ लगायी होगी लेकिन यह आवाज़ दीवार की मोटाई को माँ की आवाज़ लांघ नहीं पायी और मैं उनके काम नहीं आ पाया जबकि मेरे बचपन में माँ ने मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा |छोटे कमरे में  हम एक -दूसरे के साथ थे लेकिन ज्यादा कमरों की बड़ी दीवारों ने हमें एक -दूसरे से दूर कर दिया और मैंने अपनी माँ को खो दिया |

निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी कहा करते थे कि - WORLD, WITHOUT WALLS (बिना दीवारों के हो दुनिया)मेरे मित्र कवि सुलेख साथी जी -अपनी एक ग़ज़ल में लिखते हैं -

दीवारें भी सुख देती हैं ,सीमित अगर मकानों तक हों ,

जीना मुश्किल कर देती है ,बनी  मनो में गर दीवार हो |

भौतिक रूप से तो दुनिया में एक ही दीवार प्रसिद्द है ,वह है-चीन की दीवार क्यूंकि बर्लिन की दीवार तो अब टूट चुकी है लेकिन चीन की दीवार तो वर्षों से अस्तित्व में लेकिन जैसा कि उपर्युक्त कवि ने कहा कि मकानों में जो दीवारें हैं वे तो हमें सर्दी -गर्नी से बचाती हैं लेकिन जैकी श्रॉफ जिस दीवार का जिक्र कर रहे थे,वह भावना के स्तर पर बनी हुई दीवार है जिसने उनकी माँ को उन्हीं से अलग कर दिया कि उस कमरे के मकान में कितना अपनत्व था जो कि बड़े मकान में उपलब्ध नहीं है |

यद्यपि उनके मन में माँ के प्रति अपनत्व की जरा भी कमी नहीं है लेकिन उन्होंने कहा कि दीवार के उस पार होने के कारण वे माँ की आवाज़ को नहीं सुन सके |उन्हें बचा नहीं सके |

 बड़े मकान में रहना गलत नहीं है लेकिन अलग-अलग कमरे होने के कारण सब कमरों में जाना सम्भव नहीं होता | कार्य की व्यस्तता में तो भाग -दौड़ ही लगी रहती है  ,सब लोगों के तो दर्शन भी नहीं होते,यह एक अभिशाप है जो हैसियत का है |         

- रामकुमार 'सेवक'