जो भी दलित और वंचित हैं उन्होंने अपने उद्धारकर्ता के रूप में देखा और श्रद्धा से उन्हें बाबा साहब कहा |यद्यपि महात्मा गाँधी पहले से दलितों और वंचितों के साथ पूरे भारत के लिए काम कर रहे थे लेकिन दलितों और वंचितों को पहचान आंबेडकर से ही मिली इसलिए उन्हें बाबा साहब का विशिष्ट सम्बोधन दिया गया |
बाबा साहब की उपलब्धि कमाल की है चूंकि अस्पृश्यता का दंश झेलते हुए भी उन्होंने बत्तीस डिग्रियां हासिल की, जिन्हें हासिल करना आज भी कठिन है |
बाबा साहब के जीवन में मुझे सबसे प्रभावशाली तत्व नज़र आता है - संघर्ष |
हम उस असमानता के घृणित रूप की कल्पना तक नहीं कर सकते और इसके बावजूद शिक्षा की नयी-नयी ऊंचाइयां प्राप्त करना बेहद कठिन है |हम उस संघर्ष की कल्पना तक नहीं कर सकते ,जो उन्होंने अन्याय के विरुद्ध किया |
दूसरे शब्दों में कहें तो यह अस्तित्व का संघर्ष था |
वे जिस समुदाय में पैदा हुए वह अस्पृश्य अथवा अछूत लोगों का समाज था |कौन -कौन से प्रतिबन्ध नहीं थे उस पर |भले ही वे जितने भी अमानवीय थे लेकिन धर्म के नाम पर थे |
दया धर्म का आधार है और ये प्रतिबन्ध दयाहीनता को प्रमाणित करते थे |इतनी असमानता आम थी और ये अमानवीय प्रतिबंध तत्कालीन समाज की पीठ पर सवार थे ?
अन्याय का ट्रेलर देखिए -प्यास लगती थी पर स्वर्णो के कुए से पानी नहीं ले सकते थे |कहते हैं उनके कुछ मित्रों एक बार ऊंची जातियों के कुए से पानी पी लिया था तो उन्हें ऐसा जुल्म झेला कि जान बचानी कठिन हो गयी |
इसके बावजूद अछूत लोगों को गले में घड़ा बांधकर और उसमें पानी लेकर चलना पड़ता था ताकि उस भूमि पर छिड़काव होता रहे,जहाँ से वे गुजरें |निश्चय ही उस घड़े का पानी पीने योग्य नहीं होता होगा |
उनके पीछे एक झाड़ू बंधी होती थी ताकि जहाँ से भी वे गुजरें ज़मीन गंदी न हो | वहां स्वच्छता रहे |इतना अपमान जिसका हो वो क्या कभी हीनता से उबर सकता है ?इन परिस्थितियों में समाज के एक बड़े वर्ग को मानवीय सम्मान से वंचित कर दिया गया था |वे यदि गलती से भी छू जाएँ तो अपराध हो जाता था |उसे छूना पाप था |
प्रश्न उठता है कि यह कौन से धर्म की परिभाषा गढ़ी जा रही थी ?इसे तो धर्म का विरोधाभास (contradictory )ही कहना चाहिए जहाँ स्त्रियों और अछूत को मुख्य धारा से बाहर कर दिया जाए |उसे शिक्षा से दूर रखा जाए ताकि वह कभी खुद को मनुष्य रूप में देख ही न सके | प्रश्न ही न पूछ सके |
इसे ऊंचे वर्गों में जन्मे इंसानो की चालाकी ही मानना चाहिए कि कोई भी इंसान इस सत्य को महसूस करता है कि हर एक के शरीर पांच तत्वों (मिटटी,अग्नि,जल,वायु और आकाश) से मिलकर बने हैं लेकिन इस सच्चाई को बताया नहीं जाता क्यूंकि फिर ऊंच- नीच का आधार ही ख़त्म हो जायेगा |
शिक्षा के अभाव में बहुत सारे भय तो पूर्वजन्म के नाम पर ही गढ़ लिये जाते हैं जबकि अपने अगले -पिछले जन्म के बारे में किसी को कुछ भी बता दिया जाता है ताकि उससे अपनी पूजा करवाई जाती रहे |जबकि अपने अगले -पिछले जन्म का किसी को कुछ भी ज्ञान नहीं है इसलिए बाबा साहब ऐसे परम्परावादी धर्म के विरुद्ध रहे |अपनी पत्नी को भी उन्होंने अन्धविश्वास और उस पर आधारित परम्पराओं से रोका |
इसी आधार पर उन्होंने शिक्षित बनने का आह्वान किया |
उनका दूसरा संकल्प था-संगठित रहो |शिक्षित व्यक्ति निजी तौर पर सक्षम होता है चूंकि शिक्षा उसकी बुद्धि को विकसित करती है |उसके भीतर की कुंठा को भी ख़त्म करती है |कुंठा ख़त्म होगी तो आत्मविश्वास बढ़ेगा |यह आत्मविश्वास उसे किसी भी विपरीत स्थिति का मुकाबला करने को प्रेरित करेगा |
यह आत्मविश्वास ही समाज में क्रांति उत्पन्न करने का मौलिक हथियार है |विभिन्न कारणों से धर्म के नाम पर जो भ्रम लाद दिये जाते हैं उनसे समाज को बचाने के लिए सभ्य और शिक्षित लोगों को शेष समाज के साथ संगठित होना होगा |
उन्हें सिर्फ किताबी शिक्षा नहीं बल्कि उनके विवेक को जगाना होगा ताकि वे यथार्थ तक पहुंचें और समाज में रचनात्मक क्रांति हो सके |
इसीलिए उन्होंने सशक्त तथा शिक्षित समाज बनाने की आधारशिला रखी |
उन्होंने मूकनायक नाम का अखबार निकाला और पानी की मूलभूत आवश्यकता पूर्ण करने के लिए महाड में सत्याग्रह किया |
बाबा साहब ने धर्म के नाम पर बहुत विसंगतियां झेली थीं |जब वे बड़ोदा के महाराजा की सेवा में थे तो ऊंची जातियों के धनी लोग उन्हें मकान तक किराये पर देने को तैयार नहीं थे |
उच्च जातियों के लोग महाराजा तक को अपने दबाव में ले लेते थे ताकि वे अम्बेडकर को प्रोत्साहित न कर सकें लेकिन ऐसे भी लोग थे जो अस्पृस्यता के मन से विरुद्ध थे |ऐसे ही उनके एक शिक्षक ने उन्हें अम्बेडकर नाम दिया था,जो उनकी विश्व स्तरीय पहचान बना |
भीषण विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने अछूत समझे जाने वाले लोगों को उनके पैरों पर खड़ा किया लेकिन भीतर की कुंठा धीरे धीरे जाती है |
उन्होंने संविधान में ऐसे प्रावधान किये कि गरीब से गरीब व्यक्ति को भी शिक्षा उपलब्ध हो | यह एक अलग तथ्य है कि ऊंची जातियों के लोग उन्हें पढ़ाना नहीं चाहते थे लेकिन उनमें से कुछ लोग प्रगतिशील भी थे जो मनुष्य मात्र को विकसित देखना चाहते थे |
महात्मा गाँधी का उस दौर में काफी प्रभाव था और वे जाति व्यवस्था को स्वीकार करते हुए अछूतों का उद्धार करना चाहते थे |यह एक ऐसा बिंदु था जहाँ डॉ अम्बेडकर और महात्मा गाँधी में गहरे और गंभीर मतभेद थे |
बाबा साहब दलितों-शोषितों को अलग मताधिकार दिलाना चाहते थे जबकि महात्मा गाँधी उन्हें हिन्दुओं के ही अन्तर्गत रखकर उन्हें विकसित देखना चाहते थे |उन्होंने उन्हें नाम दिया -हरिजन |बाबा साहब को यह नाम स्वीकार्य नहीं था |
महात्मा गाँधी ने उन्हें कहा कि मैं हरिजनों की स्थिति सुधारने के लिए तब से चिंतित हूँ जब आपका जन्म भी नहीं हुआ था लेकिन उन्होंने महात्मा गाँधी को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि यदि आप अछूतों की स्थिति सुधारना चाहते तो हर कांग्रेसी को कांग्रेस में सम्मिलित करने से पहले खादी पहनने की बजाय यह शर्त रखते कि वह किसी अछूत पुरुष अथवा महिला को अपने घर में नौकरी दे ,किसी एक अछूत का भरण पोषण करे अथवा सप्ताह में कम से कम एक बार अछूत व्यक्ति के साथ खाना खाये |महात्मा गाँधी की अपनी विचारधारा थी और बाबा साहब की अपनी |बाबा साहब अस्पृस्यता के भुक्तभोगी थे जबकि महात्मा गाँधी के मन में अस्पृश्यों के प्रति एक सहानुभूति थी |
सम्पूर्ण भारत के परिपेक्ष्य में महात्मा गाँधी अधिक स्वीकार्य थे लेकिन बाबा साहब का महत्व भी निर्विवाद था | |
बाबा साहब ने इंसान की चालाकी के आधार पर चोट की और कहा - शिक्षित बनो, संगठित रहो तथा संघर्ष करो |
संघर्ष अपने अस्तित्व को सिद्ध करने का |क्यूंकि उन्हें शूद्र समझे जाने की ग्रंथि लोगों के दिमागों में बहुत मजबूत थी और यह इतनी मजबूत थी कि लोग उनका मूल्यांकन एक शूद्र के तौर पर करते हैं |बेशक आज उनका स्थान बहुत ऊंचा है लेकिन उन्हें देखने का नजरिया अब तक कमोबेश वैसा ही है जबकि वे उस समय के बबसे ज्यादा शिक्षित भारतीय थे |
जब वे बड़ोदा के महाराजा के यहाँ सेवारत थे तो उनका चपरासी उन्हें पानी देने से इंकार कर देता था चूंकि वह ऊँची जाति के अहंकार से भरा हुआ था |
यह मनोवैज्ञानिक समस्या अब तक है |लोग उन्हें वह सम्मान देने को राजी नहीं हैं ,जिसके वे हक़दार थे |जनमत के दबाव और पिछली सरकारों की परंपरा के कारण वर्तमान सत्ता भी उन्हें सम्मान देने को विवश है अन्यथा सत्ता तो मनुस्मृति को संविधान से भी ऊंचे स्थान पर रखना चाहती है |
संविधान को निंदनीय मानना ऊँची जाति का अहंकार रखने वालों का एक फैशन है जबकि इस संविधान को बनाने के लिए बहुत मेहनत की गयी |बेशक उसमें बाबा साहब अम्बेडकर का सबसे ज्यादा योगदान था लेकिन संविधान बनाने के लिए सर्वानुमति ,सर्वसम्मति अथवा बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के व्यापक स्वभाव को अंगीकार किया गया जिससे 26 जनवरी 1950 से इसे पूरी तरह लागू किया जा सका |
हिन्दू धर्म की यह विकृति है ,जो बहुत श्रेष्ठ मन्त्रों की चर्चा तो करती है|मानवता और विश्वबंधुत्व की पक्षधर होने का दावा भी करती है लेकिन व्यवहार के तल पर जब समानता का प्रश्न खड़ा होता है तो बिलकुल औंधे मुँह जा गिरती है|
हिन्दू परंपरा मनुस्मृति को मानती है जिसमें प्रावधान है कि ब्राह्मण,क्षत्रिय ,वैश्य और शूद्र जन्म के आधार पर हैं|वह अपने पवित्र ग्रंथों को पढ़ने या सुनने की अनुमति सबको नहीं देती ,इस परिपेक्ष्य में जब डॉ.अम्बेडकर की शिक्षा को देखते हैं तो उनकी उपलब्धियां ज्यादा महत्वपूर्ण लगती हैं |अर्थशास्त्र में उनकी डिग्रियां इस कारण भी हो सकीं क्यूंकि विदेश में इंसान का मूल्यांकन उसके काम के आधार पर होता है न कि जन्म या जाति के आधार पर |
डॉ अम्बेडकर इस प्रगतिशील विचार को मानते थे कि जन्म से न लोई छोटा है,और न बड़ा |इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए शिक्षित होना बहुत जरूरी है |उसके लिए उन्होंने भारतीय संविधान में ऐसे प्रावधान किये जिससे कि कोई इंसान शिक्षा से वंचित न रहे |
उन्होंने समझा दिया कि शिक्षा इंसान की असली ताक़त है |जिस इंसान में शिक्षा को ग्रहण करने की क्षमता है उसे फिर बरगलाया नहीं जा सकता |शिक्षित व्यक्ति को डराया नहीं जा सकता |
बंधुत्व की भावना किसी भी एक आदर्श समाज की मूल अवधारणा होती हैं। डॉ. बी. आर. अंबेडकर का मानना है, कि एक आदर्श समाज में समानता और स्वतंत्रता के साथ-साथ बंधुत्व भी होना जरूरी है, क्योंकि इन तीनों तत्वों के होने से लोकतंत्र मजबूत होता है। और जितना समानता स्वतंत्रता संबंधी बंधुत्व होगा उतना ही लोकतंत्र और भी मजबूत से मजबूत होगा। उसमें किसी भी प्रकार का उच्च एवं नीच भाव पैदा नहीं होगा, वहां पर लोग स्वयं को कभी भी बंदी के रूप में न समझ कर उनमें देश के प्रति सम्मान एवं कर्तव्य की भावना पैदा होगी,, और एक दूजे से मिलजुल कर राष्ट्र को और भी मजबूत बनाएगी, इसलिए डॉक्टर बी आर अंबेडकर के अनुसार मानवता और बंधुत्व की अनिवार्य आवश्यकता हैं।
- आर.के. प्रिय