मेरी दृष्टि में शुकराना सबसे बड़ी अवस्था है और शुकराने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है |सत्संग में महात्मा ने आज एक प्रसंग सुनाया |उन्होंने कहा-पति-पत्नी कहीं जा रहे थे |चलते-चलते थक गए तो एक पेड़ के नीचे रुक गए |पति ने कहा-आप थोड़ी देर सो जाओ |मैं जाग रहा हूँ,चिंता की कोई बात नहीं है |
पत्नी सो गयी ,पति जागकर देखभाल करता रहा |
पति ने देखा कि एक साँप उधर से गुजरा |साँप को आते देखा तो पति चिंतित हुआ और प्रभु का सुमिरन करने लगा |
पति-पत्नी दोनों ब्रह्मज्ञानी थे इसलिए इस तथ्य को भली भाँति जानते थे कि यह प्रभु सदैव हमारी सुरक्षा करता है |
पति ने सुमिरन किया और साँप का एक ओर से बचकर चला गया |पत्नी आराम से सोती रही |
थोड़ी देर बाद पत्नी उठी |उसने अपने पति से कहा कि अब आप सो जाओ |
पत्नी को बिलकुल सहज देखकर पति कुछ झुंझलाया |उसने सोचा कि साँप जब यहाँ था तो इस पर बहुत बड़ा खतरा था |इसने मेरा धन्यवाद भी न किया कि मैं जागकर इसकी सुरक्षा करता रहा |
फिर उसने सोचा कि यह तो सो रही थी ,इसे साँप के बारे में कैसे पता होगा ?
यह सोचकर उसकी झुंझलाहट ख़त्म हो गयी |
उसे ख्याल आया कि साँप को भगाने के लिए मैंने सुमिरन ही तो किया था |फिर मुझे खुद के शुक्राने की चाहत क्यों रहे ?
ख्याल यह भी आया कि जिस प्रकार सुमिरन ने पत्नी की तब भी सुरक्षा की,जबकि वह सो रही थी |उसे इसका एहसास भी नहीं हुआ |
इसी प्रकार यह प्रभु हमारी सोते -जागते सुरक्षा करता है,उनमें से कितनी बार हमें इसके अस्तित्व का एहसास रहता है और कितनी ही बार हमें इसका एहसास भी नहीं होता |जब एहसास ही नहीं होता तो शुकराने का भाव दिल में कैसे पैदा होगा ?
एक महिला की आदत थी कि वह हर रोज सोने से पहले अपनी दिन भर की खुशियों को एक काग़ज़ पर लिख लिया करती थीं।एक रात उन्हों ने लिखा...
"मैं खुश हूं कि मेरा शौहर पूरी रात ज़ोरदार खर्राटे लेता है।क्योंकि वह ज़िंदा है और मेरे पास है ना...ये मालिक का शुक्र है।"
"मैं खुश हूं कि मेरा बेटा सुबह- सवेरे इस बात पर झगड़ा करता है कि रात भर मच्छर-खटमल सोने नहीं देते।यानी वह रात घर पर गुज़रता है आवारागर्दी नहीं करता...इस पर भी मालिक का शुक्र है।"
" मैं खुश हूं कि हर महीना बिजली,गैस, पेट्रोल, पानी वगैरह का अच्छा खासा टैक्स देना पड़ता है।
यानी ये सब चीजें मेरे पास, मेरे इस्तेमाल में हैं ना...अगर यह ना होती तो ज़िन्दगी कितनी मुश्किल होती...?इस पर भी प्रभु का शुक्र है।"
" मैं खुश हूं कि दिन ख़त्म होने तक मेरा थकान से बुरा हाल हो जाता है।यानी मेरे अंदर दिनभर सख़्त काम करने की ताक़त और हिम्मत है। यह भी मालिक की कृपा है |
मैं खुश हूं कि हर रोज अपने घर का झाड़ू पोछा करना पड़ता है और दरवाज़े -खिड़कियों को साफ करना पड़ता है।शुक्र है मेरे पास घर तो है ना... जिनके पास छत नहीं उनका क्या हाल होता होगा...?
इस के लिए भी मालिक का शुक्र है।"
" मैं खुश हूं कि कभी- कभार थोड़ा बीमार हो जाता हूँ यानि कि मैं ज़्यादातर सेहतमंद ही रहता हूं।
इस के लिए मेरे सत्गुरु का शुक्र है।"
" मैं खुश हूं कि हर साल त्यौहारो पर तोहफ़े देने में पर्स ख़ाली हो जाता है।
यानि मेरे पास चाहने वाले मेरे अज़ीज़, रिश्तेदार, दोस्त,अपने हैं जिन्हें तोहफ़ा दे सकूं।अगर ये ना हों तो ज़िन्दगी कितनी बे रौनक हो...?इसके लिए भी प्रभु का शुक्र है।"
" मैं खुश हूं कि हर रोज अलार्म की आवाज़ पर उठ जाता हूँ।यानि मुझे हर रोज़ एक नई सुबह देखना नसीब होती है।ज़ाहिर है ये भी मालिक का ही करम है।"
जीने के इस फॉर्मूले पर अमल करते हुए अपनी, अपने परिवार की और सभी की ज़िंदगी भी पुरसुकून बनानी चाहिए।
सूफी सन्त बाबा बुल्लेशाह कहते हैं-
चढ़दे सूरज ढलदे वेखे ,बुझदे दीवे बलदे वेखे
हीरे डा कोई मोल न जाणे,खोटे सिक्के चलदे वेखे
जिन्हां दा ना जग ते कोई,वो भी पुत्तर पलदे वेखे
ओहना दी रहमत दे नाल बन्दे ,पाणी उत्ते चलदे वेखे
लोकी कहन्दे दाल नी गलदी,मैं ताँ पत्थर गलदे वेखे |
जिन्हां ने कदर न कीती रब दी ,हथ खाली वो मलदे वेखे |
कई पैरां तो नंगे फिरदे ,सिर तो लभ्भण छावां
मैनू रब ने सब कुछ दित्ता क्यों न शुकर मनावां
धन्यवाद का यह भाव जीवन को सकारात्मकता से भरता है |धन्यवाद के शब्द बार बार बोलने से आपसी संबंधों में माधुर्य पैदा होता है |इसलिए जीवन में धन्यवाद का भाव प्रकट करने की आदत बहुत उपयोगी है |अपने सरकारी कार्यालय में कई बार ऐसे सज्जनो से संपर्क होता है जो कई कई बार धन्यवाद प्रकट करते है |यद्यपि यह भी सही है कि उनमें से अनेकों के मन में विनम्र भाव नहीं होता ,लेकिन शाब्दिक भाव भी उन्हें व्यवहारकुशल लोगों की श्रेणी में स्थापित कर देता है |इस प्रकार धन्यवाद का सिर्फ शब्द भी लाभ पहुँचाता है |इसके बावजूद धन्यवाद का सिर्फ शब्द काफी नहीं हैं क्यूंकि यह सर्वव्यापक मालिक परमात्मा हमारे मन की अवस्था भी जानता है इसलिए धन्यवाद का भाव अगर मन में भी हो तो वह समय भक्ति का अंग हो जाता है |मालिक कृपा करे कि आत्मनिरीक्षण जीवन का अंग बने ताकि अहंकार से बचकर जीवन में शुक्राने का भाव अविभाज्य अंग बन जाये |
- रामकुमार सेवक