युवाओं में गति रहती ही है इसीलिए वो गाना,जिसे परदे पर सुपर स्टार राजेश खन्ना ने अभिनीत किया था और लोकप्रिय गायक किशोर कुमार ने पूरे दम-खम से गाया था-मुझे अक्सर याद आता है,और आज शुरू में ही याद आ गया-
ज़िंदगी इक सफर है सुहाना ,यहां कल क्या हो, किसने जाना
युवाओं की तेज रफ्तार ही उन्हें आगे बढ़ाती है और जो किसी कारण से सुस्तकदम हैं उन्हें भी आगे बढ़ने को प्रेरित करती है |आज के युवाओं की तेजरफ्तार और रोमांस का प्रतिनिधित्व देखना हो तो आज जो चेहरा ख्याल में आता है-वह है शाहरुख़ खान का |शाहरुख़ खान दिल्ली के हैं दिल्ली की तेज रफ़्तार उनके अंग-अंग से टपकती है |
शाहरुख़ खान ने वीर जारा में अभिनय के जो जलवे दिखाए हैं,वो मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं |हालांकि मैंने उनकी ज्यादा फिल्में नहीं देखीं लेकिन उनकी तेजरफ्तार ,चंचलता और विशेषकर संवाद शैली दिल्ली के युवाओं के करीब महसूस होती है |
शाहरुख़ की सफलता से आज लोग बहुत चकित हैं लेकिन यह सफलता अनायास नहीं है बल्कि कठिन परिश्रम का नतीजा है |उनके पिताजी की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन वे अपने बेटे को अच्छे संस्कार जरूर देते थे |शाहरुख़ खान ने एक इंटरव्यू में एक बार बताया था कि अपने जन्म दिन पिताजी की और से उन्हें उनकी पुरानी चीजें अक्सर मिलती थीं |पिताजी को शतरंज का शौक था और वे खाली समय में हनुमान मंदिर के पुजारी के साथ शतरंज खेलते थे |शायद इसी का परिणाम है कि साम्प्रदायिकता का लेश मात्र भी उनके विचारों में दिखाई नहीं देता |उन्होंने बताया कि पिताजी ने अपनी शतरंज को साफ़ करके मुझे दिया |साथ ही सिखाया कि राजा -रानी के साथ-साथ प्यादों को भी पूरा महत्व देना चाहिए |उन्होंने बताया कि हर किसी का अपना महत्व है इसलिए किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए |आइये उनके जीवन को करीब से देखें-
ख़ान के माता पिता पठान मूल के थे| उनके पिता ताज मोहम्मद ख़ान एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उनकी माँ लतीफ़ा फ़ातिमा मेजर जनरल शाहनवाज़ ख़ान की पुत्री थी|
ख़ान के पिता हिंदुस्तान के विभाजन से पहले पेशावर के किस्सा कहानी बाज़ार से दिल्ली आये थे, हालांकि उनकी माँ रावलपिंडी से आयीं थी| ख़ान की एक बहन भी हैं जिनका नाम है शहनाज़ और जिन्हें प्यार से नज़दीकी लोग लालारुख बुलाते हैं|
ख़ान ने अपनी स्कूली पढ़ाई दिल्ली के सेंट कोलम्बिया स्कूल से की जहाँ वह क्रीड़ा क्षेत्र, शैक्षिक जीवन और नाट्य कला में निपुण थे| स्कूल की तरफ़ से उन्हें स्कूल के सबसे बड़े सम्मान "स्वोर्ड ऑफ़ ऑनर" से नवाज़ा गया जो प्रत्येक वर्ष सबसे काबिल और होनहार विद्यार्थी एवं खिलाड़ी को दिया जाता था|
मात्र 16 वर्ष की आयु में उनका पिता की मृत्यु हो गयी ,इस प्रकार उन्हें कठिन परिस्थिति से गुजरना पड़ा |विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करने की ताक़त ऐसे ही मिलती है |
1985में हंसराज कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद उन्होंने एक थियेटर ग्रुप से नाता जोड़ा और उस ग्रुप में रहते हुए BARRYJOHN अंतर्गत अभिनय सीखा |एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि मुझे अभिनय पसंद था और वही मेरा कैरियर भी बना,यह मेरी खुशकिस्मती थी अन्यथा मन की इच्छा कुछ और होती है और रोजगार कुछ और |
उन्होंने हंसराज कॉलेज से अर्थशास्त्र की डिग्री एवं जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से मास कम्युनिकेशन की मास्टर्स डिग्री भी हासिल की|उन्हें अभिनय का अवसर लेख टंडन जी के टी .वी.धारावाहिक दिल दरिया में मिला लेकिन अनेक परेशानियों के चलते यह समय पर शुरू न हो सका |इस बीच उन्होंने फौजी नामक धारावाहिक में काम शुरू कर दिया |इसके बाद उन्होंने सर्कस,वागले की दुनिया,इडियट और उम्मीद नामक धारावाहिकों में काम किया | उनके काम को देखकर समीक्षकों और उनके प्रशंसकों ने उनकी तुलना महान अभिनेता दिलीप कुमार से करनी शुरू कर दी |
अपने माता पिता के देहांत के उपरांत ख़ान 1991 में दिल्ली से मुम्बई आ गए| 1991 में उनका विवाह गौरी ख़ान के साथ हिंदू रीति रिवाज़ों से हुआ | उनकी तीन संताने हैं - एक पुत्र आर्यन (जन्म 1997) और एक पुत्री सुहाना (जन्म 2000) व छोटा पुत्र अब्राहम।
मुंबई पहुंचकर शाहरुख़ ने खुद को अभिनय में झोंक दिया |उनकी मेहनत और क्षमता को देखकर उन्हें कई अच्छी फिल्में मिलीं | 1992 में व्यापारिक दृष्टि से सफल फ़िल्म दीवाना से फ़िल्म क्षेत्र में कदम रखा।
इस फ़िल्म के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर का पहला प्रथम अभिनय पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके पश्चात् उन्होंने कई फ़िल्मों में नकारात्मक भूमिकाएं अदा की जिनमें डर (1993), बाज़ीगर (1993) और अंजाम (1994) शामिल है।हेमा मालिनी के निर्देशन में उन्होंने दिलं आशना है में उन्होने काम किया |
शाहरुख़ खान ने नायक की छवि को अपने भीतर के अभिनेता के ऊपर हावी नहीं होने दिया |1993 में उन्होंने बाजीगर और डर नामक फिल्मो में खलनायक की भूमिकाएं कीं |बाजीगर में तो उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का भी सम्मान मिला ,स्पष्ट हैं किसी खास इमेज में न बांधने की उनकी कोशिश सफल रही |सिर्फ दो वर्ष के भीतर उन्होंने अभिनय का दुनिया भर में लोहा मनवा लिया |
जूही चावला के साथ मिलकर उन्होंने फिल्म निर्माण का कार्य भी किया |संयोग से वे उसमें इतने सफल नहीं रहे {वर्ष 2001 में चोट लगने के कारण उनकी पीठ में दर्द रहने लगा |
वे कई प्रकार की भूमिकाओं में दिखें व भिन्न-भिन्न प्रकार की फ़िल्मों में कार्य किया जिनमे रोमांस फ़िल्में, हास्य फ़िल्में, खेल फ़िल्में व ऐतिहासिक ड्रामा शामिल हैं |
ख़ान की कुछ फ़िल्में जैसे दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (1995), कुछ कुछ होता है (1998), देवदास (2002), चक दे इंडिया (2007), ओम शांति ओम (2007), रब ने बना दी जोड़ी (2008) और रा.वन (2011) अब तक की सबसे बड़ी हिट फ़िल्मों में रही है|
कभी ख़ुशी कभी ग़म (2001), कल हो ना हो (2003), वीर ज़ारा सहित उनके द्वारा अभिनीत ग्यारह फ़िल्मों ने विश्वभर में Indian Rupee symbol.svg 100 करोड़ का व्यवसाय किया है।
अक्सर मीडिया में इन्हें "बॉलीवुड का बादशाह", "किंग ख़ान", "रोमांस किंग" और किंग ऑफ़ बॉलीवुड नामों से पुकारा जाता है। ख़ान ने रोमांटिक नाटकों से लेकर ऐक्शन थ्रिलर जैसी शैलियों में लगभग 80 हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय किया है।
फ़िल्म उद्योग में उनके योगदान के लिये उन्होंने (तीस नामांकनों में से ) चौदह फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीते हैं। वे और दिलीप कुमार ही ऐसे दो अभिनेता हैं जिन्होंने फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार 8 बार जीता है। 2005 में भारत सरकार ने उन्हें भारतीय सिनेमा के प्रति उनके योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया।
वे एक बिजनेसमैन भी हैं जूही चावला के साथ मिलकर उन्होंने red chillies entertaiment नामक प्रोडक्शन कंपनी के मालिक हैं |जूही चावला और उनके पति जय मेहता से मिलकर उन्होंने आई पी एल टीम कोलकाता nightreders के मालिक हैं |
वेल्थ रिसर्च फ़ॉर्म वैल्थ एक्स के मुताबिक किंग ख़ान सबसे अमीर भारतीय अभिनेता बन गए हैं। फॉर्म ने अभिनेता की कुल संपत्ति 3660 करोड़ रूपए आँकी थी लेकिन अब 5000 करोड़ रूपए बताई जाती है।