- आर.के.प्रिय
प्रातः कालीन सत्संग में भाग लेने का सौभाग्य अक्सर ही प्राप्त होता है |आज सुबह भी कई प्रेरक प्रसंग सुनने को मिले |
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प्रथम -
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महात्मा बुद्ध के अनुयाइयों में से एक मठाधीश महात्मा बुद्ध के पास आया और बोला -महाराज कुछ दिनों से मठ में सुकून महसूस नहीं हो रहा है |
बुद्ध बोले-आपकी बात ठीक है चूंकि मैं कुछ दिनों से रूप बदलकर वहीं रह रहा हूँ |यह सुनकर मठाधीश के पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गयी कि गुरु जी मठ में ही हैं और सब पर नज़र रख रहे हैं |
उसे ध्यान आ गया कि दो-तीन दिन पहले ही तो उसने किसी को बुरी तरह डांटा था |
इसी प्रकार के कई और दुर्व्यवहार उसकी नज़र में आ गए |
धीरे -धीरे सबको पता चल गया कि महात्मा हमारे बीच में ही हैं |अब लोग क्रोध करने से बचने लगे |उन्हें डर लगने लगा कि जिस पर क्रोध करने जा रहे हैं ,वह कहीं महात्मा बुद्ध ही इसके रूप में न हों |इससे तो छवि धूमिल हो जायेगी |सब एक दुसरे से आशंकित रहने लगे |यद्यपि आशंकित रहना कोई अच्छी बात नहीं है लेकिन इसका अच्छा प्रभाव यह हुआ कि लोग गलत काम करने से बचने लगे और मठ का वातावरण सुधरने लगा |
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द्वितीय
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एक बहन ने कहा कि सत्संग में आकर हम जैसे स्नान कर लेते हैं लेकिन वो स्नान कितने समय के लिए है,इसका पता बाहर निकलकर चलता है |
हाथी भी तालाब में घुसकर स्नान करता है लेकिन वह अपनी मस्ती में आकर अपनी सूंड से शरीर पर जब रेत-मिटटी डालने लगता है तो पूरा शरीर गन्दा हो जाता है और स्नान का असर जरा भी नहीं रहता |
हम जो रोजाना सत्संग में आते हैं.हमें यह आत्मचिंतन करना चाहिए कि सत्संग में जो प्रभाव ग्रहण किया है सत्संग से बाहर निकलकर,निंदा-चुगली आदि में फंसकर शरीर को मिटटी आदि में तो गन्दा नहीं कर रहे ?
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तृतीय
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सन्त और सत्गुरु सदैव सबके हित की बात सोचते और करते हैं इस भाव प्रकट करते हुए एक महात्मा ने कहा कि एक गुरु और उनका शिष्य यात्रा कर रहे थे |रात्रि हुई तो पड़ाव की आवश्यकता पडी |एक घर सामने आया |
गृहस्वामी से थोड़े -बहुत परिचित थे |दोनों व्यक्ति घर के भीतर चले गए |गृहस्वामी से उन्होंने भैंस के बारे में पूछा जो कि बाहर बंधी हुई थी |उसने बताया कि -मालिक की कृपा है कि भैंस जो दूध देती है उसी को बेचकर हम गुजर-बसर करते है |
कमरे में जगह कुछ तंग थी इसलिए उन्होंने कहा कि आप चिंता न करें, हम बाहर सो जायेंगे |और गुरु और शिष्य दोनों बाहर सो गए |
कुछ घंटे बाद गुरु ने अपने चेले से कहा -यह जो भैंस बंधी हुई है ,इसे खोल लो और पीछे जो गड्ढा हमने आते समय देखा था,उसमें धक्का दे दो |
इसके बाद हमें यहाँ से रातों रात निकल लेना है |चेले ने सोचा कि यह तो पाप हो जायेगा लेकिन आदेश का पालन तो करना ही था फिर भी उसने स्पष्ट कर लेना उचित समझा कि क्या सचमुच भैस को गड्ढे में गिरा देना है ? गुरु जी ने कहा-बिलकुल ,मैं तुम्हें यही आदेश दे रहा हूँ |
किन्तु-परन्तु की अब कोई गुंजाईश नहीं थी |उसने भैंस खूंटे से खोली और बाहर जाकर गड्ढे में गिरा दिया |इसके बाद दोनों,वहां से रफू-चक्कर हो गए |
कुछ वर्ष बाद दोनों का फिर उधर से गुजरना हुआ |गुरु ने चेले से कहा-आज भी इसी घर में ठहरेंगे |शिष्य को ऐसी आशा बिलकुल नहीं थी बल्कि वह तो इस घर के आस -पास भी नहीं फटकना चाहता था |रात का समय था ,वे दोनों फिर उस घर में घुसे |
गृहस्वामी ने उन्हें पहचान लिया |अब घर की स्थिति काफी बेहतर थी |खाली जगह में अब खेती -बाड़ी दिख रही थी |गृहस्वामी ने उन्हें भीतर ही ठहराया |
गुरु ने कहा-कुछ साल पहले भी हम आपके घर में आये थे |गृहस्वामी ने कहा-मैं आपको अच्छी तरह पहचान रहा हूँ |मुझे यह भी अच्छी तरह याद है कि जिस दिन आप आये,उस रात हमारी भैंस न जाने कहाँ चली गयी |
फिर आपने क्या किया ?गुरु ने पूछा-भैंस के गुम होने से एकदम हम बड़ी कठिनाई में आ गए चूंकि उसका दूध बेचकर ही हमारा गुजारा होता था |
जब भैंस नहीं रही तो नया उपाय सोचना पड़ा |ज़मीन हमारे पास थी ही ,इसलिए हमने उसी पर सब्जी उगाना शुरू कर दिया |धीरे-धीरे हालातों में बदलाव आया और हमारे घर में सुख-समृद्धि आती चली गयी |
गुरु जी ने खुश होकर कहा -हर परिस्थिति के दो पक्ष होते हैं |कर्मठ लोग विपरीत परिस्थितियों में भी आशा बनाये रखते हैं और अंततः सफल सिद्ध होते हैं |