सदाबहार अभिनेत्री हैं - अरुणा ईरानी

 -कुणाल 

अरुणा ईरानी बहुत दिनों से फिल्मो में काम कर रही हैं लेकिन इस पीढ़ी के लिए भी अपरिचित नहीं हैं |हिंदी सिनेमा में एक से बढ़कर एक खलनायक हुए हैं, लेकिन जब बात खलनायिकाओं की होती है तब नाम लिया जाता है मशहूर अभिनेत्री अरुणा ईरानी का। उन्होंने 300 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया है । 

अरुणा ईरानी का जन्म 18 अगस्त 1946 को मुंबई में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1961 में फिल्म 'गंगा जमुना' से हिंदी फिल्मो में शुरूआत की थी |इसके बाद उन्होंने माला सिन्हा के बचपन के किरदार का अनपढ़ (1962) में अभिनय किया। 

इसके बाद उन्होंने जहाँआरा (1964), फर्ज़ (1967), उपकार (1967) और आया सावन झूम के (1969) जैसी फ़िल्मों में कई छोटे चरित्र निभाए। बाद में उन्होंने औलाद (1968), हमजोली (1970), देवी (1970) और नया ज़माना (1971) जैसी फिल्मों में हास्य अभिनेता महमूद के साथ अभिनय किया।

1971 में, उन्होंने कारवाँ में अभिनय किया। बाद में उन्होंने महमूद की बॉम्बे टू गोवा (1972), गरम मसाला (1972) और दो फूल (1973) में अभिनय किया। उनकी फिल्मों में फ़र्ज़ (1967), बॉबी (1973), फकीरा (1976), सरगम (1979), रेड रोज़ (1980), लव स्टोरी (1981) और रॉकी (1981) शामिल हैं।

उन्होंने अपना पहला फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार पेट प्यार और पाप (1984) के लिए जीता।

1980 और 1990 के दशक के उत्तरार्ध में उन्होंने माँ की भूमिकाएं निभाना शुरू कर दिया, विशेष रूप से बेटा (1992) में, जिसके लिए उन्होंने अपना दूसरा फिल्मफेयर (सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए ) पुरस्कार जीता।

अपने बाद के करियर में, अरुणा ने विभिन्न धारावाहिकों में चरित्र भूमिकाएं निभाते हुए टेलीविजन पर भी कदम रखा। 

उन्होंने मेहंदी तेरे नाम की, देस में निकला होगा चाँद, रब्बा इश्क ना होवे, वैदेही और इनके जैसे धारावाहिकों का निर्देशन और निर्माण किया।

अरुणा ईरानी हिंदी सिनेमा की मंझी हुई अभिनेत्रीं और टीवी कलाकार  हैं।उन्होंने बड़े पर्दे पर बाल कलाकार, कॉमेडियन, खलनायिका, हीरोइन, चरित्र अभिनेत्री कई प्रकार की भूमिकायें  अदा की हैं।    

महमूद से लेकर क़ादर खान तक उन्होंने हास्य भूमिकाएं कीं लेकिन वे अब भी सक्रिय हैं | 

अरुणा ईरानी का जन्म 18 अगस्त 1946 को मुम्बई, भारत में हुआ था। उनके पिता फरीदुन ईरानी ने नाटक मंडली चलाई, और उनकी माँ सगुना अभिनेत्री थीं। वह आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी है और उन्होंने छठी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी क्योंकि उनके परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह सभी बच्चों को शिक्षित कर सके।उनकी पृष्ठभूमि गुजराती हैं | 

उनके एक भाई हैं- फिल्म निर्देशक इंद्र कुमार।

  .अरुणा ईरानी ने अपने करियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में फिल्म गंगा जमुना से की थी।उस समय वह महज नौ साल की थी।इसमें उन्होंने चरित्र अभिनेत्री अज़रा के बचपन की भूमिका निभाई थी और हेमंत कुमार के गीत "इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके" में अपने गुरुजी के साथ गा रहे बच्चों में वे भी शामिल थीं। 

थोड़ा रेशम लगता है', 'चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी', 'दिलबर दिल से प्यारे', 'मैं शायर तो नहीं' बॉलीवुड फिल्मों के ये वो सुपरहिट गाने हैं जो अरुणा ईरानी के नृत्य के लिए भी प्रसिद्द हैं।

 वे 'जहांआरा' (1954), 'फर्ज' (1967), 'उपकार' (1967), 'आया सावन झूम के' (1969), 'कारवां' (1971) जैसी सफल फिल्मों में काम कर चुकी हैं। फिल्म 'कारवां' में अरुणा के काम को सभी ने बहुत सराहा था। इस फिल्म के गाने 'चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी', 'दिलबर दिल से प्यारे' अरुणा के नृत्य  की वजह से काफी लोकप्रिय हुए थे। 


उन्होंने  फिल्मों में उल्लेखनीय काम किया है।जिन फिल्मों में उन्होंने काम किया ,उन फिल्मो में हिंदी के अलावा कन्नड़, मराठी और गुजराती फिल्में भी शामिल हैं। 

फिल्मों के अलावा अरुणा ने टीवी की ओर भी रुख किया और वहां भी सफलता हासिल की।

 अरुणा के करियर में महत्वपूर्ण मोड़ आया,1971 में "कारवाँ" के साथ।

 इस सुपरहिट म्यूजिकल फिल्म में उन्होंने तेज-तर्रार बंजारन की यादगार भूमिका निभाते हुए अपने अभिनय कौशल के साथ-साथ नृत्य की प्रतिभा का भी प्रदर्शन किया। 

निर्माताओं ने उन्हें ऐसी भूमिकाओं के लिए माकूल पाया जिनमें कुछ नकारात्मकता का पुट हो और जिनमें एकाध नृत्य की भी गुंजाईश हो। 

इस बीच अरुणा को महमूद की "बॉम्बे टू गोवा" (1972) में नायिका की भूमिका मिली | हीरो थे अमिताभ बच्चन जो तब तक एक संघर्षशील कलाकार ही थे।

 "बॉम्बे टू गोवा" हिट तो हुई, लेकिन अरुणा हीरोइन के रूप में करियर न बना सकीं। हाँ, कई फिल्मों में सहायक भूमिका निभाते हुए वे नायिका पर भी भारी पड़ जाती थीं। 

1973 में राजकपूर की फिल्म  "बॉबी" में एक संक्षिप्त मगर दिलचस्प भूमिका में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी।

इसके बाद वे लगातार एक सशक्त चरित्र अभिनेत्री के तौर पर अपना स्थान मजबूत करती गईं। 

"खेल-खेल में", "मिली", "लैला मजनू", "शालीमार" आदि उनकी महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। "कुर्बानी" में उन्होंने बदले की आग में धधकती स्त्री के रोल में फिरोज खान, विनोद खन्ना, जीनत अमान, अमजद खान जैसे कलाकारों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

लव स्टोरी" में वे "क्या गजब करते हो जी" गाते हुए कुमार गौरव को रिझाती नजर आईं, तो "कुदरत" में मंच पर शास्त्रीय अंदाज में "हमें तुमसे प्यार कितना" गाते हुए दिखाई दीं। 

गुलजार की क्लासिक कॉमेडी "अंगूर" में देवेन वर्मा की पत्नी के रूप में वे अपने किरदार में पूरी तरह डूबी हुई थीं। 1984 में "पेट, प्यार और पाप" के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्रीके लिए फिल्मफेयर   अवॉर्ड मिला।

नब्बे के दशक में अरुणा ईरानी ने "बेटा" और "राजा बाबू" जैसी फिल्मों से माँ के रोल निभाने शुरू किए। "बेटा" में उन्होंने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता। 


अपने करियर के दौरान अरुणा कई मराठी फिल्में भी कर चुकी हैं। इतना ही नहीं उन्होंने बड़े पर्दे के साथ छोटे पर्दे पर भी किस्मत आजमाई। 

वर्ष 2000 में उन्होंने धारावाहिक 'जमाना बदल गया' से छोटे पर्दे पर अभिनय की शुरुआत की। 'कहानी घर घर की'(2006-2007), 'झांसी की रानी' (2009-2011), 'देखा एक ख्वाब' (2011-2012), 'परिचय' (2013-2013), 'संस्कार धरोहर अपनो की' (2013-14) जैसे कई टीवी शोज में अरुणा अहम किरदार निभा चुकी हैं।

वे निरंतर फिल्मो में काम करते रहना चाहती हैं |