रामकुमार सेवक
मशहूर गायक उस्ताद नुसरत अली खान गाते थे -
जब से राधा श्याम के नैन हुए हैं चार, श्याम बने हैं राधिका,राधा बन गयी श्याम |
राधा -कृष्ण के प्रेम की ऊँचाई में जाएँ तो एक ही रह जाता है -अद्वैत का सिद्धांत यही है-एकत्व |
आदि शंकराचार्य ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया कि दो नहीं एक ही है -
एको ब्रह्म द्वितीयोनास्ति
अर्थात -
काशी-काबा एक है,एक है राम-रहीम
मैदा इक पकवान बहु ,बैठ कबीरा जीम |
उस्ताद कहते हैं-
प्रेम के रंग में ऐसी डूबी ,बन गयी एक ही रूप ,
प्रेम की माला जपते-जपते ,आप बनी मैं श्याम |
एकत्व की बात को जब दर्शन के स्तर पर सोचते हैं तो यह बहुत सारपूर्ण और आनंददायक लगती है लेकिन सांसारिक जीवन में इससे गुजारा नहीं है |संसार में तो दो रूप हैं-एक स्त्री ,एक पुरुष |दो के सम्मिलन से मानव की रचना होती है -सोच के इस स्तर पर हमें उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान की ओर लौटना पड़ेगा |उस्ताद श्याम और राधिका की आँखें चार होने की बात कह रहे हैं |यह आँखें चार होना- सांसारिक प्रेम की शुरूआत है लेकिन जब यह प्रेम पराकाष्ठा पर पहुँचता है तो फिर एक ही रह जाता है |राधा श्याम में मिल गयी और श्याम राधा में मिल गए |
जो पुरुषवादी सोच रखते हैं वे इसे यूँ कहेंगे कि राधा श्याम को समर्पित हो गयी ,दूसरी ओर जो प्रेमवादी सोच रखते हैं वे कहेंगे कि प्रेम की ऊंचाई तब प्राप्त होती है,जब शरीर होकर भी न हो |राधा और श्याम के शरीर तो हैं लेकिन जब प्रेम सोच पर हावी हो जाए तो प्रेम ही बचता है,शरीर जैसे लुप्त हो जाते हैं |मुझे एक बहुत मीठा प्रसंग याद आ रहा है,संस्कृत की अपनी पाठ्य पुस्तक में विद्यार्थी जीवन में पढ़ा |
घटनाक्रम यूँ है-कृष्ण द्वार पर खड़े हैं और आवाज़ लगा रहे हैं कि-राधा,द्वार खोलो |
राधा भीतर से पूछती है-कौन है ?कृष्ण कहते हैं-मैं |राधा ने कहा-मैं के लिए यहाँ कोई स्थान नहीं है |
कृष्ण लौट जाते हैं, कुछ ही समय पश्चात फिर लौटते हैं |फिर द्वार खटखटाया .फिर वही प्रश्न भीतर से आया कि-कौन ?कृष्ण ने इस बार मैं के स्थान पर कहा-कृष्ण |
राधा ने कहा-कृष्ण के लिए यहां कोई स्थान नहीं |
कृष्ण फिर लौट गए -हैरानी से भरे लेकिन कृष्ण निराश नहीं हो सकते और वे फिर लौटे |
इस बार फिर वही प्रश्न भीतर से आया-कौन ?
लेकिन उत्तर फिर बदल गया ,कृष्ण बोले-तू ही है |लेखक लिखता है कि-द्वार खुल गया |
यह सर्वश्रेष्ठ उत्तर था जिसमें अहंकार था ही नहीं |अहंकार की जगह को भरा गया -प्रेम से |वह जगह थी ही प्रेम की जिस पर अहंकार ने ज़बरदस्ती कब्ज़ा कर लिया था |प्रेम की ज्योत हावी हो गयी तो अहंकार का अंधकार ख़त्म हो गया |
दुनिया में अहंकार हर जगह पसरा है |इसी का प्रमाण है कि हर कोई हैसियत बढ़ाने में लगा है|पति की अपनी हैसियत है,पत्नी की अपनी हैसियत है इसलिए कोई किसी के सामने झुकना नहीं चाहता |हर जगह यह मुकाबला चल रहा है -घर में,बाजार में,दफ्तर में,बैंक बैलेंस में |
जो शांति के प्रवचन करते हैं या भजन गाते हैं-उनके बीच भी हैसियत की दौड़ है क्यूंकि अहंकार की कमजोरी पीछा नहीं छोड़ रही |
प्रेम की ऊंचाई पर स्थित होना है तो हैसियत के पहाड़ को बीच से हटाना होगा |कृष्ण ने यह हिम्मत की इसलिए अत्यंत विपरीत हालातों को झेलने के बावजूद उन्होंने जितनी ऊंचाई पाई,आज तक किसी अन्य को उपलब्ध नहीं हो पायी |
ज्ञान मार्ग में कृष्ण हैं -परमात्मा और राधा हैं आत्मा |
आत्मा और परमात्मा के बीच कोई पत्थर की दीवार नहीं है बल्कि दीवार हमारे अहंकार की है अन्यथा पानी पर खिंची लकीर स्थायी कदापि नहीं हुआ करती |
हमारे अहंकार ने पानी पर खिंची लकीर को पत्थर की दीवार बना दिया है ,जिसके कारण पहले से ही बने फासलों को और बढ़ाया जा रहा है |सत्ता आमतौर से यही किया करती है |
काश हम लोग हैसियत के अहंकार को बीच से हटा सकें ताकि-
१-वसुधैव कुटुंबकम के मर्म का एहसास कर पाएं
२-इस दुनिया में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का भाव कायम रहे
३-दिलों में प्रेम का स्थायी ज़ज़्बा जन्म ले |
जब प्रेम होगा तो हिन्दू-मुस्लमान छोटे रह जाएंगे और इंसान इन दोनों से बड़ा हो जाएगा |यह इबादत ही एक परमसत्ता को स्वीकार हो पायेगी अन्यथा आडंबर कभी भी मन को वो शांति नहीं दे सकते ,जिसकी उपलब्धि के लिए हर इंसान इस दुनिया में आया है |