यह सत्य, ईश्वर,परब्रह्म परमात्मा ,यही जानने योग्य है,अपनाने योग्य है | यह शाश्वत परम सत्ता ,स्वयंभू ,जिसको कोई बनाने वाला नहीं है |सारे संसार का आधार यही है |आत्मा हमारी ,इसी की अंश ,ऐसे परम अस्तित्व इस मालिक को,सत्य को,निराकार को यह जानने की बेला है जब हम इंसानी जन्म को प्राप्त कर लेते हैं |
इस अवसर को हाथों से ना जाने दें |यही संतों-महात्माओं ने जाग्रति प्रदान की,झिंझोड़ा |जैसे कबीर जी झिंझोड़ते हैं |जैसे रैदास जी बताते हैं |इस तरह भाषाएँ,चाहे कोई भी हों |भक्तों -संतों-महापुरुषों के वचन एक सरीखे ही रहे है |इसी तरफ वे प्रेरित करते आये हैं |इसी सत्य की तरफ प्रेरित करते आये हैं |क्यूंकि संसार इस सत्य की तरफ आसानी से बढ़ता नहीं है |यह तो पहले भी महापुरुषों ने कहा कि-
सांचे का कोई गाहक नाहीं ,झूठे जगत पतीजे जी |
सत्य के ग्राहक नहीं हैं |दुनिया में चाहे हमें भक्ति भी देखने को मिलती है |बहुत पूजा-अर्चना भी ,यात्रायें और स्नान भी देखने को मिलते हैं ,धर्मस्थान भी |शहर के केवल कुछ इलाकों में नहीं बल्कि गली -गली में इनकी मौजूदगी भले ही देखने को मिलती है लेकिन इसका हरगिज़ यह मतलब नहीं है कि सत्य के प्रेमी हैं,सत्य की चाहत है |
यह सब कुछ कबीर जी देख रहे थे ,यह सब कुछ देखकर ही उन्होंने कहा-साँचे का कोई ग्राहक नाहीं |
भक्तों के चार प्रकार
भगवान कृष्ण ने भी कहा -मेरे आर्त भक्त और अर्थार्थी भक्त -कि कोई भय के कारण मेरी भक्ति कर रहे हैं ,मेरा नाम ले रहे हैं |धर्मस्थानो पर हाजरी भर रहे हैं,या फिर दान-पुण्य कर रहे हैं |कि कोई नुक्सान न हो जाये,इस भय के कारण ,मैं इस दुनिया से कहीं जल्दी न चला जाऊं,इस भय के कारण |इस प्रकार आर्त भक्त तो हैं और अर्थार्थी भी हैं -जो अर्थ की कामना रखते हैं |
अर्थ में दुनिया के तमाम पदार्थ आ जाते हैं |महल आदि सब सम्पत्तियाँ आ जाती हैं |समस्त सांसारिक उपलब्धियां आ जाती हैं |इनकी प्राप्ति के लिए अभिलाषा मन में रखते हुए ये पूजा-अर्चना-यात्रायें करते हैं ,मेरा नाम लेते हैं,ये भी एक प्रकार के भक्त |इसके अलावा जिज्ञासु भक्त भी हैं |जिनके मन में जिज्ञासा तो हुई ,सत्य को जानने की |ये पहले दो प्रकार के भक्तों से श्रेष्ठ हैं |ये भय और माया अर्थात पहले दो प्रकार के भक्तों से आगे की सोच रहे हैं कि सत्य क्या है ?
सत्य की खोज में राजा जनक की भूमिका
सत्य की खोज में राजा जनक को अभिलाषा हुई और अष्टावक्र जी ने राजा जनक की इस चाहत को पूरा किया |सत्य और असत्य का निर्णय कराया गया अष्टावक्र जी के द्वारा |इसी प्रकार स्वामी विवेकानद जी ने भी कहा कि प्रभु को जानने की इच्छा इंसानो में इतनी होनी चाहिए जितनी डूबते हुए इंसान को पानी से बाहर आने की होती है |इतनी तीव्र इच्छा to know the truth ... The ultimate truth (शाश्वत सत्य ) ऐसी चाहत जिनके मन में आयी-वे जिज्ञासु भक्त |
जिनको यह ख्याल तो आया कि इस शाश्वत सत्य को जानें |जो नाशवान नहीं है |जिसे शस्त्र काटता नहीं है | जिसको वायु सुखाती या उड़ाती नहीं है |जो प्रलय के साथ ख़त्म नहीं होता |
सत्य के अन्य गुण-
स्वयंभू है |जो सीमित नहीं असीम है |जो किसी कारण से पैदा नहीं होता और किसी कारण से खत्म नहीं होता |यह स्वयंभू है |इसे जानने की जिज्ञासा रखने वाले जिज्ञासु भक्त |जो सत्य को जानने की अभिलाषा रखते हैं |
इनसे भी बढ़कर हैं मेरे ज्ञानी भक्त,जो मेरे असली रूप में मुझे जान लेते हैं |जो सबको मुझमें और मुझे सबमें जानकर जो भक्ति करते हैं |वो ज्ञानी भक्त मेरे सबसे श्रेष्ठ भक्त हैं |श्री कृष्ण जिन्हें ज्ञानी भक्त कह रहे हैं ,उनकी विशेषता है कि उन्होंने सत्य को जान लिया |
आर्त और अर्थार्थी भक्त
इन पहले दो प्रकार के भक्तों के बारे में ही कबीर जी कह रहे हैं कि-
साँचे का कोई ग्राहक नाहीं ,झूठे जगत पतीजे जी --अर्थात झूठ और संसार के ऊपर फ़िदा हैं |उसकी प्राप्ति के लिए ही सब कुछ किया जा रहा है |पंजाबी में भी अक्सर महापुरुष गीत बोलते आ रहे हैं -
कच दी मंडी विच सच दा गाहक कोई-कोई |
कहते हैं कि कच दी मंडी में सच दा ग्राहक कोई-कोई है,हर कोई नहीं हैं | इसीलिए लगातार सन्देश दिये जा रहे हैं |
संदेशों के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता
बार-बार सन्देश का दोहराना,बार-बार समागमों के आयोजन इसीलिए क्यूंकि सत्य की तरफ आसानी से इंसान बढ़ता नहीं है |महापुरुषों-भक्तजनो की वाणी आज भी उसी ओर प्रेरित कर रही है कि हम सत्य की तरफ अग्रसर हों |इस परम पिता परमात्मा जो त्रिकाल सत्य है,इसी से कल्याण होने वाला है |यह संसार ,जिसे झूठ की संज्ञा दी गयी है,कल्याणकारी नहीं है | इससे किसी की आत्मा को मोक्ष या मुक्ति मिलने वाली नहीं है |इससे जीवन का सच्चा आनंद मिलने वाला नहीं है |
यह दुनिया तो कहाँ स्थायी आनंद दे सकेगी क्यूंकि यह तो आनंद को छीनने वाली है |
संसार स्थायी आनंद क्यों नहीं दे पाता ?
इस संसार की बनावट में क्या-क्या नहीं है |जहाँ पर माया के खेल खेले जाते हैं | जहाँ लोभ-प्रलोभन से युक्त होकर लूटा जाता है |जहाँ अपनों का ही हक़ छीन लिया जाता है |भाई,भाई का लिहाज करने को भी तैयार नहीं |बेटा,बाप की जान लेने से गुरेज़ नहीं करता कि कहीं सारी जायदाद दूसरे भाई के नाम न कर दे |इस प्रकार से क्या -क्या नहीं हो रहा है |इसीलिए संसार को झूठ की संज्ञा दी गयी है |
कबीर जी कहते हैं कि इंसान झूठ के ऊपर फ़िदा है ,जिसने बेचैनी के ,नुक्सान के सिवा कुछ नहीं दिया है | जिसने बिगाड़ा ही बिगाड़ा है |सांसारिक प्रवृत्तियां ही तो ले डूब रही हैं इंसानो को |घरों के माहौल भी शिथिल होते जा रहे हैं |खून के रिश्ते भी कमजोर हो रहे हैं कि कहना पड़ता है कि खून का रंग सफ़ेद हो गया है |इसमें किसी बेगाने का दोष नहीं है बल्कि उनका दोष है,जिन्हें blood relatives (रक्त सम्बन्धी )कहते हैं |वहीं कहा जा रहा है कि खून सफ़ेद हो गया है |
अन्य पक्ष
समाज को यदि दोष दें,तो वह तो दूर की बात |मुल्क या देश को दोष दें तो वो भी दूर की बात |यहाँ तो घरों से ही बात शुरू हो गयी है |ऐसे-ऐसे प्रलोभनों से युक्त यानी ऐसी- ऐसी सांसारिक प्रवृतियाँ प्रबल हैं,जो हमारे पतन की कारण बन रही हैं |और हैरानी की बात यह है कि इसी की तरफ इंसान सबसे ज्यादा बढ़ते हैं |इससे अलग ध्यान होता ही नहीं |दिलोदिमाग हटता ही नहीं |जो शाश्वत है,राम है रमा हुआ ,जिससे सदैव का आनंद मिलना है,उसकी तरफ बढ़ते ही नहीं हैं |महात्मा समझाते हैं -
जे सुख को चाहे सदा तो शरण राम की ले |
अगर सदा रहने वाला सुख चाहता है तो राम की शरण लेनी होगी |राम ही शाश्वत है,सदा यही रहने वाला है |संसार सदा रहने वाला नहीं है |जिस्म सदा रहने वाले नहीं हैं |खूबसूरतियाँ सदा रहने वाली नहीं हैं |
संसार क्षणभंगुर
दौलतों के मालिक सदा नहीं बने रहेंगे |अभी तो फख्र के साथ अपनी जायदाद,दौलत गिनवा देते हैं लेकिन चन्द वर्ष बीतते हैं तो कहते हैं कि हम तो इतने बड़े depth ( गिरावट )में आ गए |ये लोन,वो लोन -ये भी जायदाद चली गयी,वो भी चली गयी |अपना मकान चला गया -किराये के मकान में-मजबूरियां ही मजबूरियां |दुनियावी दौलतें और पदार्थ भी साथ नहीं जा रहे हैं |ये शाश्वत तो हैं नहीं फिर सुख कैसे दे पाएंगे |क्या रिश्तेदार देंगे ?या दौलत या तन की ताक़त देगी ?इनमें से कोई शाश्वत है ही नहीं |
जो शाश्वत नहीं है,उससे सदैव के सुख की उम्मीद कैसे की जा सकती है ?
सदा का सुख तभी मिल सकता है यदि उसका साधन सदैव रहने वाला हो |जो सदा रहने वाला है ही नहीं वह सदैव का सुख नहीं दे सकता |
उपाय
इसलिए राम की शरण-यही सत्य है |लेकिन इसी के ग्राहक नहीं |दुहाई तो देते हैं कि ठंडक मिले लेकिन पसंद करते हैं जलती हुई भट्टी के पास बैठना |कितनी अजीब बात कि कह रहा है-ठंडक मिले लेकिन बैठता है जलती हुई भट्टी के पास |यह देखकर कहना पड़ता है कि इसके दिमाग को कुछ हो गया है |यह तो उलटे गर्मी की तरफ चला गया है |
इसी प्रकार दुहाई दी जाती है कि आनन्द मिले |लेकिन जो स्रोत है आनन्द का,उसकी तरफ तो पीठ ही रहती है |
सूर्य की तरफ पीठ करें तो चेहरा अंधकार में रहेगा ही |जब सूर्य पीठ के पीछे होगा तो परछाई सामने होगी | एक -एक कदम आगे बढ़ेगा अर्थात परछाई के पीछे चल रहे हैं |
सत्य की तरफ मुख
अगर सूर्य की तरफ मुख हो जाता है |परछाई फिर पीठ की तरफ हो जाती है,वह फिर नज़र ही नहीं आती |हम आगे आगे बढ़ते हैं तो परछाई हमारे पीछे -पीछे चलती है |कहाँ हम परछाई का पीछा कर रहे थे और कहाँ अब परछाई हमारे पीछे आ रही है क्यूंकि हमारा मुख सूर्य की ओर है |