कुछ साल पहले दिल्ली में वे एक कार्यक्रम में पहुंचे और निजी जिंदगी के बारे में कई खुलासे किए। परीक्षित साहनी ने बताया कि आखिर बॉलीवुड सितारों के बच्चों के लिए अपने पिता की सफलता को दोहरा पाना क्यों बेहद मुश्किल होता है।
अपनी बेबाकी से दिलों को छूने वाले परीक्षित साहनी का जन्म 1 जनवरी 1944 को हुआ था।जैसे कि सब जानते हैं कि उनके पिता प्रसिद्द अभिनेता और लेखक बलराज साहनी थे और माता का नाम श्रीमती दमयंती साहनी था |वे भी कुशल रंगकर्मी थीं |
उनका जन्म रावलपिंडी के पास मुरी, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान में )हुआ था|विपरीत परिस्थितियों के कारण उन्होंने बचपन में ही बाल कलाकार के रूप में अभिनय की शुरूआत की |तब उनका नाम था -अजय साहनी |
लोकसभा टी.वी.पर श्री इरफ़ान से बात करते हुए उन्होंने कहा कि मेरा मेरा ज्यादातर बचपन अपने चाचा भीष्म साहनी के साथ धर्मशाला ,कश्मीर और अम्बाला में बीता |जब वे मुंबई पहुंचे तब बलराज साहनी (उनके पिता फिल्मो में ज्यादा सक्रिय नहीं थे |वे तब इप्टा (Indian peoples theatre Association) में ज्यादा सक्रिय थे |
बचपन में फिल्म विधा के जिन लोगों का प्रभाव पड़ा ,उनमें ख्वाजा अहमद अब्बास ,कैफ़ी आज़मी,कृश्नचन्दर तथा राजिंदर सिंह बेदी आदि सम्मिलित थे |दिलीप कुमार जी चूंकि उसी पृष्ठभूमि के इसलिए उन्हें भी बचपन से देखा |
दस -ग्यारह साल की उम्र में बाल कलाकार के रूप में काम करने का मौका मिला ,इनमें दीदार फिल्म उल्लेखनीय है,जिसमें दिलीप कुमार और अशोक कुमार दोनों थे |बचपन की उस अवस्था में नरगिस और अशोक कुमार,मुराद (अभिनेता रज़ा मुराद के पिता )ने उन्हें प्रभावित किया |
उनका लगाव अभिनय से ज्यादा फिल्म निर्देशन से रहा है|यह अलग बात है कि अभिनय करना पड़ा |और यह सिलसिला जल्दी ही शुरू हो गया चूंकि विभाजन के समय जब भारत आये तो परिस्थितियां बेहद मुश्किल थी और प्रतिष्ठित फिल्म अभिनेता के बेटे होने के बावजूद जीवन जीना आसान नहीं था |
पिताजी बिलकुल नहीं चाहते थे कि बचपन की कोमल उम्र में मुझे फिल्मो में काम करना पड़े लेकिन पिताजी के कुछ दोस्तों को लगा कि यदि फिल्मो में बाल कलाकार के रूप में काम करूँ तो बहुत बेहतर होगा और घर चलाने में थोड़ी आसानी हो जाएगी |
इस लिहाज से फिल्मो में काम तो किया लेकिन पिताजी अपने आपको सहज नहीं पाते थे |वे समाजवादी विचारों के थे और चाहते थे कि गरीब -अमीर में आर्थिक अंतर इतना असहज न हो कि वे इंसान को इंसान ही समझना छोड़ दें |
उनके मन में रूसी क्रांति के प्रति शुभ आशाएं थीं इसलिए फिल्मो के अधिक ज्ञान के लिए उन्होंने मुझे रूस भेजा |1960 में परीक्षित साहनी आगे की पढाई करने के लिए मास्को गए |वहां उन्होंने फिल्म निर्देशन ,पटकथा लेखन आदि सीखा |वे छह साल मास्को में रहे |
बहरहाल उन्होंने फिल्म कला की बारीकियां भी सीखीं और फिल्मो में अभिनय की दूसरी पारी शुरू की |अजय साहनी के नाम से उन्होंने अपना कैरियर शुरू किया |अनोखी रात और पवित्र पापी उनकी शुरूआती फिल्में हैं |दोनों फिल्मो में उनके काम को सराहा गया |पंजाबी लेखक नानक सिंह के उपन्यास पर बनी उनकी फिल्म पवित्र पापी का गीत तेरी दुनिया से मैं होकै मजबूर चला , आज भी सुनने को मिल जाता है और दिल को छूता है |
परीक्षित साहनी ने बताया कि मैंने पवित्र पापी की स्क्रिप्ट लिखी थी और फिल्म का निर्देशन करना था लेकिन किस्मत ने कुछ ऐसे खेल खेले कि अभिनेता हो गया |थिएटर में काम पहले से ही करता था तो कुछ दिक्कत नहीं हुई |बीच में बलराज साहनी प्रोडक्शन भी खोला और कुछ फिल्में बनायीं |
परीक्षित साहनी ने गुल,गुलशन ,गुलफाम धारावाहिक में जो अभिनय किया ,वह इतने वर्षों बाद भी लोगों के मनो में ताजा है |कश्मीरी पृष्ठभूमि पर बनाया गया धारावाहिक बेहद स्वाभाविक था और और लोगों के दिलों को छूता था |
उनकी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के सेंट स्टीफन स्कूल में हुई |जे.जे.स्कूल ऑफ़ आर्ट से उन्होंने फाइन आर्ट में पढाई की |कलाकार माता-पिता के बेटे होने के कारण कला के प्रति उनका स्वाभाविक रुझान था |
अपने अभिनय के शुरूआती दौर को याद करते हुए परीक्षित साहनी ने उस इंटरव्यू में बताया कि उस दौर में तकनीक का पक्ष इतना विकसित नहीं था तो शूटिंग ज्यादातर रात को होती थी |दिन में शोर होता इसलिए ज्यादातर काम रात को होता था |रात को सात-आठ बजे बुलाते थे और सुबह छोड़ते थे |1951 में बनी दीवार फिल्म का दृश्य मुझे याद आता है |दृश्य तूफ़ान का था और उस समय मैं उसे एन्जॉय कर रहा था लेकिन पिताजी को बहुत बुरा लगा |उस फिल्म के निर्देशक थे नितिन बोस साहब |उस ज़माने के सर्वोत्तम डायरेक्टर्स में थे लेकिन पिताजी ने उन्हें भी भला-बुरा कहा |उनका कहना था कि बच्चों के साथ यह नहीं किया जाना चाहिए |
वास्तव में तूफ़ान पैदा करने के लिए ज़हाज़ के बड़े पंखे लगाए जाते थे |मिटटी -घास आदि भी होती थी |फिल्म के बाकी लोग बड़े बड़े चश्मे और मास्क आदि पहनते थे |
उनके पिता चूंकि बहुत संवेदनशील लेखक और अभिनेता थे तो बच्चों को बहुत प्यार करते थे |दस-ग्यारह साल की उम्र में बेटे की इतनी मेहनत उनसे देखी नहीं जाती थी और वे खुद को अपराधी महसूस करते थे |उन्होंने अपने बेटे को अभिनय का यह गुर दिया कि लेंस बहुत ताक़तवर चीज है और आपके हाव-भाव से बता देती है कि आपके भीतर किस किस्म का इंसान है इसलिए वे बेहद ईमानदार थे और इतनी मेहनत से काम करते थे कि दर्शकों के दिलों में उतर जाते थे |राज्यसभा टी वी के श्री इरफ़ान से परीक्षित साहनी ने बेबाकी से अपनी बातें कहीं |
उन्होंने कहा कि एक्टिंग करना बहुत कठिन काम है |अपने पिताजी के साथ अपनी तुलना पर उन्होंने कहा कि मैं तो उनके घुटने तक भी नहीं पहुँचता |फिर मुझे वैसे रोल भी नहीं मिले |सिर्फ गुल,गुलशन ,गुलफाम में वो बात थी |मुझे स्क्रिप्ट लिखने और निर्देशन में असली मज़ा आता था इसलिए पिताजी को एक्टिंग में जितनी दिलचस्पी थी उतनी मुझे नहीं थी |
परीक्षित साहनी बेशक विनम्रतावश यह कहें लेकिन उनके स्वाभाविक अभिनय से उनके पिताजी की याद आती है और अपने रोल को वे पूरी खूबी से करते हैं |
प्रमुख फिल्में
वर्ष फ़िल्म
2009 थ्री इडियट
2007 एकलव्य
2006 लगे रहो मुन्ना भाई
2006 उमराव जान
2002 ये मोहब्बत है
2002 मुझसे दोस्ती करोगे
2001 कसम
1998 वजूद
1997 साज़
1997 शेयर बाज़ार
1996 छोटा सा घर
1995 अब इंसाफ़ होगा
1994 यूंही कभी
1993 शक्तिमान
1993 इन कस्टडी
1993 कुंदन
1993 प्यार का तराना
1992 आज का गुंडाराज
1991 फूल बने अंगारे
1990 अव्वल नम्बर
1989 गलियों का बादशाह
1988 एक आदमी
1988 विजय मेहरा
1987 शेर शिवाजी
1987 दिल तुझको दिया
1987 कलयुग और रामायण
1987 वतन के रखवाले
1986 कार थीफ
1985 मेरा जवाब
1985 शिवा का इन्साफ
1985 जवाब
1985 मेरी जंग
1985 रामकली
1984 तेरी बाहों में
1984 बॉक्सर
1984 जाग उठा इंसान
1984 अंदर बाहर
1983 लाल चुनरिया
1982 सुराग
1982 देश प्रेमी
1982 तहलका
1981 अग्नि परीक्षा
1981 समीरा
1980 कस्तूरी
1980 हमकदम
1979 काला पत्थर
1978 मुकद्दर
1978 विश्वनाथ
1978 काला आदमी
1977 प्रायश्चित
1977 जीवन मुक्त
1977 जलियाँ वाला बाग़
1977 दूसरा आदमी
1976 तपस्या
1976 कभी कभी
1973 हिन्दुस्तान की कसम
1970 आँसू और मुस्कान
[श्रेणी:2009 में बनी हिन्दी फ़िल्म 2009 ३ इडियट श्री कुरैशी फरहान के पिता]
इसके अलावा, उन्होंने राजकुमार हिरानी द्वारा निर्देशित तीन ब्लॉकबस्टर फिल्मों "लगे रहो मुन्ना भाई", "3 इडियट्स" और "पीके" में अभिनय किया है।