प्रगतिशील साहित्य पाठक मंच द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन 14/08/2021(शनिवार) में प्रस्तुत कवितायेँ (एक) - केवल जश्न्न नहीं आजादी यह तो जिम्मेदारी है..

- जगन्नाथ पटौदी

वीर शहीदों के भावों पर कुछ तो प्यारे गौर करो !

राष्ट्रवाद की आड़ में नाहक, एक दूजे को ढोर कहो

प्यार मोहब्बत सदा मधुर है, वैर भावना खारी है !

केवल जश्न नहीं आजादी यह तो जिम्मेदारी है।


विश्व कुटुंब का नारा देखो गूंजा है हर बार जहां।

ये धरती है इंसानों की, बन के रहना इंसान यहां

अध्यात्म के बल पर ही तो कुल विश्व में सरदारी है

केवल जश्न नहीं आजादी यह तो जिम्मेदारी है

अमन शांति और मिलवर्तन इस बस्ती का गहना है

गीता वेद पुराणोंसंतो, गुरु पीरों का कहना है!

मानवता के पथ पर चलना हर दम ही हितकारी है

केवल जश्न नहीं आजादी यह तो जिम्मेदारी है।


कर्तव्यों को भूल गए हैंअधिकारों में है उलझे 

मैं- मेरी के उलझे धागे, हटधर्मी से कब सुलझे।

बुनियादों से करना नफरत, भवन से ही गद्दारी है

केवल जश्न नहीं आजादी यह तो जिम्मेदारी है।


जिस घर में नारी की पूजादेवगण वहां रहते हैं।

बड़े गर्व से हम तुम सारे सकल विश्व को कहते हैं

सबसे ज्यादा मुश्किल में क्यों ये बनी माल सरकारी है

केवल जश्न नहीं आजादी यह तो जिम्मेदारी है।


लोकतंत्र के रक्षक ही मित्रों, देखों बन गये भक्षक है। 

कानूनों को डसने वालेये तो विषैले तक्षक है।

आस्तीन के सांप पहचानोंयार यहीं  होशियारी है।

केवल जश्न नहीं आज़ादी में तो जिम्मेदारी...