
प्रजातंत्र को बहुत अच्छी शासन पद्धति माना जाता
रहा है,मैं राजनीतिक विज्ञानं का विद्यार्थी रहा हूँ और अनेक ऐसे विचारकों को पढ़ा है
जो प्रजातंत्र का सुखद विश्लेषण करते थे |
यह एक तथ्य है कि हमने प्रजातान्त्रिक
शासन पद्धति को स्वीकार किया है और 1954 से इसे देखते आ रहे हैं | इस शासन पद्धति की
सबसे अच्छी बात तो यह है कि बिना खून बहाये सत्ता का हस्तांतरण हो जाता है लेकिन शासकों
के अपने स्वभाव होते हैं जो प्रजातंत्र को अच्छा या बुरा रूप दे देते हैं |आजकल प्रजातंत्र
के अच्छे दिन नहीं हैं |यद्यपि कोरोना के इस दौर में अच्छे दिन किसी के भी नहीं हैं
लेकिन प्रजातंत्र को समझने के लिए जो मानसिकता चाहिए,वह वर्तमान शासकों में दिखाई नहीं
देती |
ध्यान देने योग्य बात यह
है कि शासकों को उदार होना चाहिए चूंकि प्रजातंत्र शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के सिद्धांत
पर काम करता है इसलिए सरकार को भी शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की भावना को अपने व्यवहार
का अंग बनाना चाहिए |प्रजातंत्र का सिद्धांत इस भावना के फैलाव की इजाजत नहीं देता
कि किसी दल का अस्तित्व ख़त्म हो जाये |
2014 के बाद से आज तक गाँधीवादी
और नेहरूवादी सिद्धांतों के बारे में ऐसा दुष्प्रचार किया जा रहा है कि इन्होने देश
के लिए कुछ नहीं किया जबकि तथ्य इसके विपरीत हैं | यदि प.जवाहरलाल नेहरू प्रजातान्त्रिक
मानसिकता के न होते तो हमारा देश प्रजातान्त्रिक न होता चूंकि वे देश के पहले प्रधानमंत्री
थे और हमारे देश में प्रधानमंत्री ही सर्वोच्च शासक है |बहरहाल यह एक तथ्य है कि हम
एक प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था में जी रहे हैं और यह संतोष की बात है |हमें सत्य
लिखने ,बोलने और समझने की स्वतंत्रता है |
मेरा मानना है कि हमें राजीव
गाँधी ,जो 1984में प्रधानमंत्री बने ,के कार्यकाल
की उपलब्धियों को ध्यान में लाना चाहिए और
निष्पक्षता के साथ उनका विश्लेषण करना चाहिए चूंकि 21 मई 1991 को वे आतंकवाद के शिकार
हुए और 21मई को बीते मात्र एक सप्ताह हुआ है |
उनकी पहली उपलब्धि तो सूचना
क्रांति है,अर्थात भारत में कम्प्यूटर्स का
आगमन उन्हीं के समय में हुआ |आज शायद ही कोई
होगा जो कम्प्यूटर्स के प्रभाव से बचा होगा |इसके बेशक कुछ नकारात्मक प्रभाव भी होंगे
लेकिन सकारात्मक प्रभाव इतने ज्यादा हैं कि उनकी रोशनी नकारात्मक प्रभाव अपनी ओर ध्यान
नहीं खींच पाती |
राजीव गाँधी देश के सबसे
युवा प्रधानमंत्री थे तथा जब वे प्रधानमंत्री बने तब उनकी उम्र मात्र 40 वर्ष थी |उनका
कहना था -मैं नौजवान हूँ और मेरा एक सपना है |हमने देखा कि उन्होंने मताधिकार की न्यूनतम
आयु 21 वर्ष से घटाकर 18वर्ष कर दी |इसके कारण मेरे जैसे कितने ही युवकों को प्रजातंत्र
में अपनी भागीदारी प्रकट करने का मौका मिला |
एक और कदम ,जिसने हमारा
दृष्टि पटल (Vision ) बढ़ाया ,वह था पांच दिनों का कार्य सप्ताह |जब यह घोषित हुआ तो
आम भारतीय इसके विरुद्ध था |मैं स्वयं इसके विरुद्ध था लेकिन यह विरोध मुझे मेरी अपरिपक्वता
लगती है ,चूंकि शनिवार की छुट्टी ने मेरे साहित्यिक विकास के मार्ग खोल दिये और मैं
अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति बेहतर ढंग से दे सका |अन्य लोगों को भी इससे अपनी रूचि
को बेहतर ढंग से पूरा करने का अवसर मिलेगा ,आशा है |
उनके व्यक्तिगत जीवन को देखें तो पाते हैं कि वे
पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे,जो राजनीतिज्ञ नहीं थे |वे एयर इंडिया के एक पायलट थे हवाई
जहाज चलाना उनका पेशा था और उससे पहले एक शौक़ था |
उनके छोटे भाई संजय गाँधी
अवश्य एक राजनीतिज्ञ हो सकते थे यदि लम्बे समय तक जीवित रहे होते |31 अक्टूबर 1984
को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी गयी और बेहद असामान्य परिस्थितियों
में राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली |यह निर्णय सही था या नहीं ,इस बारे
में अलग अलग व्यक्ति की अलग अलग राय हो सकती है लेकिन राजीव गाँधी का प्रधानमंत्री
बनना एक इतिहास है तथा इतिहास को बदलने की क्षमता किसी में भी नहीं है इसलिए किसी भी
दल की राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में उनके योगदान की
सराहना अथवा आलोचना होनी चाहिए |
1991 के चुनाव ,जिनमें राजीव
गाँधी की हत्या हुई,में मैं चुनाव ड्यूटी कर रहा था इसलिए उनके योगदान को महसूस कर
सकता हूँ |उनकी हत्या ,उनके परिवार के लिए एक बड़ा हादसा थी चूंकि पिछले लगभग दस वर्षों
के दौरान उनके परिवार के तीन सदस्य अपना जीवन गँवा चुके थे और दूसरे शब्दों में कहें तो यह परिवार असुरक्षा के दायरे
में था |
हत्या करने वाले लोगों की
अपनी भावनाएं रही होंगीं और उन्हें लगता होगा कि राजीव गाँधी का अस्तित्व उनके लक्ष्य
की प्राप्ति में बाधा है |राजीव गाँधी को खत्म करके वे अपने लक्ष्य को तेज गति से हासिल
कर लेंगे लेकिन ऐसा होता नहीं है |किसी की हत्या करके कभी भी किसी अच्छे लक्ष्य की
प्राप्ति संभव नहीं है इसलिए हत्या किसी मानव के करने योग्य कर्म नहीं है |जिसे आप
जीवित नहीं कर सकते उसे मार डालने का हमें क्या अधिकार है |
सूचना क्रांति के अलावा
राजीव गाँधी का कार्यकाल नवोदय विद्यालयों की श्रृंखला और पंचायती संस्थाओं को मजबूत
बनाने के लिए भी याद किया जाता है |
कल मैं कुछ पत्रकारों को
सुन रहा था ,जो राजीव गाँधी के कार्यकाल में खूब सक्रिय थे,उनमें से कुछ ने उन्हें
करीब से भी देखा था |
उनमें से एक साहित्यकार
थे विभूतिनारायण राय ,जो उस समय अमेठी (जिला -सुल्तानपुर,उत्तर प्रदेश )के पुलिस अधीक्षक थे और अमेठी राजीव गाँधी का चुनाव
क्षेत्र था |श्री राय बता रहे थे कि राजीव गाँधी बहुत मेहनत करते थे |वे अपनी गाड़ी
खुद चलाते थे तथा सुबह 6 बजे उनका काफिला निकलता था तथा रात्रि को एक बजे के बाद अस्थायी
निवास पर लौटते थे |
उनका कहना था कि रात एक
बजे खाने पर हम चार लोग प्रायः होते थे-प्रधानमंत्री राजीव गाँधी,उनकी पत्नी सोनिया
गाँधी,सुल्तानपुर के कलेक्टर तथा पुलिस अधीक्षक (श्री राय )उनका कहना था कि राजीव गाँधी
अल्पाहारी थे |आधी रोटी दाल आदि में मिक्स कर लेते थे और उसे खाने के बाद एक सेब खाते
थे जबकि हम सब इतने भूखे होते थे कि खाने को भकोसते थे |
खाने के बाद हमें आदेश होता
था कि सुबह 6 बजे पहुँच जाएँ |मैं हैरान होता हूँ यह सोचकर कि वे कितना कम सोते थे
|
एक पत्रकार जॉर्ज फर्नांडीस
(गाँधी परिवार के घोर विरोधी) के करीबी थे
|उनका कहना था कि राजीव गाँधी का स्वभाव बहुत ही अच्छा था |एक बार भूल से मैं उनके
कमरे में चला गया लेकिन उन्होंने मुझे चाय पिलाई और ऐसा सद्भावनापूर्ण व्यवहार
किया कि मैं इस गलती को बार- बार करने लगा लेकिन राजीव जी की सद्भावना हमेशा बनी रही
|
एक अन्य पत्रकार ने आज की
परिस्थितियों से उनके कार्यकाल की तुलना करते हुए कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी जी भाजपा
के प्रमुख नेता थे और दूसरे शब्दों में कहूँ तो राजीव गाँधी के घोर विरोधी थे |उनका
ऑपरेशन अमेरिका में होता तो बेहतर रहता |राजीव गाँधी ने उन्हें भारत सरकार के प्रतिनिधिमंडल
का नेता बनाकर संयुक्त राष्ट्र संघ में भेजा और इस प्रकार उनका ऑपरेशन सफलतापूर्वक
हो गया |अटल जी भी सिद्धांतवादी नेता थे |आज की भाजपा को यदि कीचड कहें तो वे इसमें
खिले हुए कमल के समान थे |वे भी सद्भावना का उत्तर वैर से नहीं देते थे |उनका अनुभव
बहुत सघन था और वे कट्टरता से कोसों दूर थे |वे भारत की विविधता को स्वीकार करते थे
और राष्ट्रीय मुद्दों पर सहमति बनाने में माहिर थे |हर दल में उनके मित्र थे और हर
दल के लोग उनका सम्मान करते थे |
इस प्रकार राजीव गाँधी ,निजी तौर पर बेहद सज्जन व्यक्ति थे जो अपनी शुद्ध
मंशा के साथ देश को आगे बढ़ाना चाहते थे लेकिन वे जिन पर यकीन करते थे उन लोगों की मंशा
साफ़ नहीं थी और राजीव गाँधी ऐसे लोगों पर नियंत्रण नहीं कर पाते थे चूंकि वे स्वयं
राजनीतिज्ञ नहीं थे |
मदद करके उसका ढिंढोरा पीटना
राहुल गाँधी के भी स्वभाव में नहीं है चूंकि मैंने सुना है कि निर्भया के नाम से जिसे
जाना जाता है ,उस पीड़िता के परिवार की राहुल और प्रियंका ने काफी मदद की जबकि यह उल्लेख
हमने सिर्फ पीड़िता की माँ से सुना |
इस प्रकार राजीव गाँधी के
सद्भावनापूर्ण संस्कार उनकी सन्तानो में भी नज़र आते हैं |