एक शहर हुआ करता था ,
तितलियों के पीछे भागता था ,
हुस्न पर मरता था |
जो जोश से भरपूर था
मदमस्त और पुरनूर था |
जहाँ खिले -खिले बच्चे थे ,जो सुबह स्कूल जाते थे,
मस्ती करते थे,शोर मचाते थे|
उनकी खूबसूरत माताए,
उन्हें स्कूल की गाड़ियों तक छोड़ने आती थीं.
सब्जियों-फलों,के दाम पूछकर
ज़रुरत का सामान खरीदकर
वापस जाती थीं |
वहीं से उनका वार्तालाप शुरू हो जाता था
और दूसरी माताओं के साथ ,मेल-जोल बढाकर
ठुमकते हुए घर वापस जाता था -
दुनिया -जहान की खबरें,
गांव से लेकर पगडण्डी तक,
फैशन से लेकर सब्जी मंडी तक |
शादी-सगाई से लेकर ,पार्टी,सरकार और महंगाई तक
की सनसनीखेज खबरें ,हवाओं में तैरती थीं ,
प्रमोशन से लेकर डिमोशन तक -
और न मिल पाने वाले राशन तक की खबरें ,लिपस्टिक लगे होटों से निकलती थीं,
और कसैले मनो का स्वाद बदलती थीं |
तब यहाँ जीवन था -स्पर्धा की भाषा थी ,
दुकानदार की भी आशा थी और भिखारी की भी |
अब भी मकान वही हैं,जो पिछले वर्ष से पहले थे
लेकिन अब वे लाचार और बीमार लगते हैं |
लॉकडाउन हट गया था-
तो शहर बस गया था लेकिन -रोग नहीं गया
लोग जाने लगे -बहुत निराशा-दर्द और घुटन के साथ,मृत्यु पाने लगे |
फिर लॉकडाउन लगा ,
हंसी और लिपस्टिक को मास्क ने ढका -
बीमार पछताने लगे,
लाचार मजदूर , अपने -अपने गांव जाने लगे ,
हालांकि वहां भी कोई लंगर नहीं लगा था
लेकिन उम्मीद का एक क़तरा अब भी बचा था |
हमारी गली का उदास मकान -अब भी करता है रोज उम्मीद ,
अब भी वह रोज-करता है इंतज़ार -
खुशियों के आने का,
बैंड बजने का,गीत गाने का लेकिन -
मकान का मालिक अब नहीं रहा-
उसकी चमकदार गाड़ियां
अब भी अपने हुस्न का जलवा
लावारिस सड़क पर बिखेर रही हैं,
खामोश लाइटों के साथ,
आँखें तरेर रहीं हैं लेकिन किसी पर उनका असर नहीं पड़ता
मालिक को श्मशान में भी जगह नहीं मिली -
उसकी सत्ता न जाने कहाँ खो गयी थी ,
ऑक्सीजन तक थककर सो गयी थी |
टेक्निकली शहर अब भी जीवित है,चूंकि
धरती है,आसमान है,
फूल हैं,खुशबू है सारा जहान है लेकिन
एक सन्नाटा है,सडकों पर पसरा -
लेकिन इस सन्नाटे से ही एक किरण उभरेगी,तरक्की की,
चमकेगी आशा ज़िन्दगी की,
फिर हम आगे बढ़ेंगे,और देशभाइयों को भी आगे बढ़ाएंगे ,
बच्चे फिर दौड़ेंगे अपने स्कूलों की तरफ
और कलियाँ मुस्काएंगी जो,फूल जयमाला में सजने थे.श्रद्धांजलि में लग गए,
फूल आजकल शर्मिंदा हैं लेकिन
बेहतरी की उम्मीद में ,
मालिक का मकान अभी तक ज़िंदा है|
बेशक भय है,सन्नाटा है,
लेकिन वैक्सीन के आने से
टिमटिमाती सी आशा है,
आस कर रहा है शहर ,शुभ की,मंगल की,
सिनेमाहॉल की रौनक के बीच मनोरंजन की,
कुश्ती करती फिल्म दंगल की ,
आज भी आशा है-शुभ की,मंगल की |
- रामकुमार सेवक