
चिड़िये चहचहा रही हैं,कोए बोल रहे हैं |लॉकडाउन के दिनों का यह उजला पक्ष है कि हम पक्षियों की आवाज़ें सुन पा रहे हैं |इस समय स्कूल जाते बच्चों ,उनकी माताओं और उन्हें स्कूल तक ले जाने वाले ड्राइवर्स का शोर हुआ करता था --एक वर्ष पहले तक लेकिन पिछले एक वर्ष से बच्चे छुट्टियां मना रहे हैं |दूसरे शब्दों में कहें तो मौज ले रहे हैं ,अगर अभी बोर न हुए हों तो |
उनके शिक्षक,सहायक स्टाफ,ड्राइवर्स आदि क्या कर रहे होंगे,उनकी गृहस्थी कैसे चल रही होगी,यह शोध का विषय है लेकिन हममें से ज्यादातर इस बात की चिंता नहीं करते क्यूंकि और बहुत सारी चिंताएं हैं ,(आटे के दामों से लेकर डीजल -पेट्रोल के दामों तक ) जो हमें ज्यादा व्यस्त रखती हैं |
हम करें भी तो क्या जब कि सरकार को ही चिंता नहीं है|मैं यह बात पूरी गारंटी से नहीं कह सकता -हो सकता है चिंता हो ,क्यूंकि किसी शायर ने कहा है-
कौम के ग़म में .डिनर खाते हैं,हुक्काम के साथ
ग़म लीडर को बहुत हैं पर आराम के साथ |
एक हफ्ते पहले तक सरकार बदले हुए चेहरे,यानि पार्टी के मुखोटे या चेहरे के साथ रैलियां कर रही थी ,विपक्षी दल भी यही कर रहे थे |
जिनको याद आया,उन्होंने मास्क लगाया और जिन्हें याद नहीं लगाया उन्होंने मास्क नहीं लगाया | जनता ने भी सोचा कि जब नेताजी ही मास्क नहीं लगा रहे तो हम क्यों लगाएं |
हम आस्तिक लोग हैं अच्छी तरह जानते हैं कि जितनी सांसें हमें मिली हैं उनमें से एक भी (मास्क लगाने से) बढ़ने वाली नहीं है और न ही घटनी है इसलिए मास्क या सेनेटाइजर आदि की क्या परवाह करनी है लेकिन हम गलती पर थे |नेता,नेता हैं और जनता,जनता |नेताजी तो इलाज करवाने के लिए विदेश तक जा सकते हैं |और आम जनता के लिए जनरल अस्पताल में भी बेड नहीं हैं|इस खुली सच्चाई के बावजूद हम मज़े लेते हैं चूंकि उस पर अभी जी.एस.टी. नहीं देना पड़ता |
वैसे भी सच्चाई की हम ज्यादा परवाह नहीं किया करते |सच्चाई को पूछता कौन है,भगवान के अलावा और भगवान आज तक किसी को टहलते हुए नहीं मिले |हेड कांस्टेबल अनोखेलाल जी वहां अक्सर ही टहलते मिल जाते हैं |
इसलिए जब चुनावी पर्व हुए,रैलियां हुईं,वोटिंग हुई,कुछ लोग मरे,राजनीति हुई तो तो हम समझे कि राजनीति की ही ज्यादा महिमा है |राजनीति का कोरोना भी कुछ नहीं बिगाड़ सका |
किसान दिल्ली में आये और अब तक बैठे हैं |रोटी वही पैदा करते हैं लेकिन किसानो के बैठने से सरकार को फर्क नहीं पड़ता |वे बैठे रहें और अनंतकाल तक बैठे रहें ,क्या फर्क पड़ता है |
शायद उन्हें लगता है कि जिन राज्यों में हमारी पार्टी की सरकार नहीं है ,वहां भी हमारे ही दल की सरकार होनी चाहिए ,यही सच्ची देशभक्ति है |लोगों का क्या है,लोग तो मरते ही रहते हैं ,दो सौ पचास किसान मर गए तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा |
इसी प्रकार कोरोना की सुरसा लोगों की ओर मुँह बाए घूम रही है |श्मशान घाट में जगह कम पड़ रही है,इतने मुर्दे जल रहे हैं |
सरकार को उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायत के चुनाव करवाने हैं |चुनाव की सरकारी और गैरसरकारी प्रक्रिया को ताजे-ताजे मरे लोगों के शव डिस्टर्ब न करें इसलिए श्मशान घाट को नीली चादर से ढक दिया गया है |
पत्रकार बिरादरी के वो लोग ,जो अभी तक नहीं बिके,इस स्थिति पर चिंता प्रकट कर रहे हैं |तरह-तरह के प्रश्न उठ रहे हैं चूंकि ऑक्सीजन का भी संकट है |कल एक केंद्रीय मंत्री फरमा रहे थे कि ऑक्सीजन को बनाने की इतनी यूनिट्स लखनऊं में लगायी जाएँगी |
काश उन्हें कोई बताये कि आज जो सांस नहीं ले पा रहे हैं और शमशान घाट की यात्रा की तरफ बढ़ रहे हैं ,ऑक्सीजन का यह केंद्र उनकी कोई मदद नहीं कर सकता |मरने वालों की गिनती तो सुपरफास्ट ट्रैन की रफ़्तार से बढ़ रही है |अगर छह महीने पहले यह सोचा होता तो कुछ हो सकता था (हालांकि यह भी मेरी खुशफहमी ही है |छह महीने में कोई प्रोजेक्ट पूरा नहीं होता) (युद्ध को छोड़कर )
लोग डरे हुए हैं |मृत्यु से हर कोई डरता है और किसी को भी यह भरोसा नहीं कि वो कल तक सुरक्षित रहेगा |
मुझे चचा ग़ालिब याद आ रहे हैं जो फटेहाल होकर भी बहुत मज़ाकिया स्वभाव के थे |क़र्ज़ लेकर शराब पीते थे और कहते थे-रंग लाएगी हमारी फ़ाक़ामस्ती एक दिन |
उन्होंने ही एक ग़ज़ल में कहा है-
लाई हयात आये,क़ज़ा ले चली चले,
न अपनी ख़ुशी से आये,न अपनी ख़ुशी चले |
डर के माहौल में पक्षियों की यह आवाज़ कान में जैसे शहद की दो बूँदें टपका रही है | पर खाली पेट को तो रोटी चाहिए |सरकार की प्राथमिकता चुनाव है,मंदिर हैं,रोटी नहीं है,यह उन्होंने पहले ही स्पष्ट कर दिया था |ख़ुशी की बात है मंदिर बन रहा है,इसका मतलब है कि सरकार अपना काम कर रही है |क्या आप कह रहे हैं कि धर्म से पहले भोजन चाहिए-धीरे बोलिये नये लॉकडाउन का यह पहला दिन है |