हमें अपना यह जीवन प्रेम से तय करना है, नफरत से नहीं - निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी

निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी को हम इसलिये याद करते हैं क्यूंकि उनके प्रवचन सुनकर ,पढ़कर हमारी दृष्टि फैलती है |संकीर्णता के इस युग में हम विशालता की उपयोगिता की तरफ आकर्षित होते हैं |बाबा जी मानवीय मूल्यों को बचाने के पक्षधर थे |निरंकारी मिशन के 67 वे संत समागम के तीसरे दिन जो उन्होंने श्रद्धालुओं की मानवता के प्रति लगन को महत्व देते हुए उन्होंने उनकी तुलना पक्षियों के पंखों से की |उन्होंने एक कवि की पंक्ति का उद्धरण देते हुए कहा-

पंछी उड़ते पंख से,मैं उड़ती बेपंख

जब मैं पी के संग में ,मेरे पंख असंख्य | 

बाबा जी ने लाखों के समूह को असंख्य पंखों के समान बताया ,जो मानवता के महान अभियान को आगे से आगे बढ़ा रहे हैं |

बाबा जी ने सभ्यता के आधुनिक रूप पर व्यंग्य करते हुए किसी शायर की निम्न पंक्तियों को माध्यम बनाया-

ये जो अविष्कार हैं,

सब सभ्य आदमी के अविष्कार हैं |

प्रस्तुत है इस प्रवचन का संक्षिप्त रूप- प्रवचन के शरूआती छह-सात मिनट तक बाबा जी अब तक दिल्ली में  हुए 66 वार्षिक निरंकारी सन्त समागमों को याद करते रहे |1948 से लेकर 2014तक हुए सन्त समागमों का इतिहास और पृष्ठभूमि बताते हुए बाबा जी ने कहा -आप जो देश -विदेश से चलकर आये हैं,श्रद्धापूर्वक ,इससे एक महक स्थापित हुई है |यह महक भक्ति और विशालता के कारण है |बाबा जी ने कहा कि समागम आयोजित करने का लक्ष्य ही यही है कि प्रेम ,सहशीलता और विशालता की खुशबू पूरे विश्व में स्थापित हो | यही प्रार्थना है कि ऐसा महकदार वातावरण सिर्फ हिंदुस्तान में नहीं बल्कि विश्व भर में स्थापित हो जाये क्यूंकि दुर्गन्ध से तो दम घुटता है |यह दुर्गन्ध संकीर्णताओं वाली,नफरत वाली ,वहशीपन वाली |यह ऐसी दुर्गन्ध है,जो घुटन देती है |सुगन्धि भक्ति और प्यार से ही सम्भव है |ऐसा सुगन्धित वातावरण बनाने के लिए भक्तजनो ने निरंतर यत्न किये हैं |वे हमेशा सूखे को हरियाली में तब्दील करते आये हैं |अग्नि को शांत करके शीतलता प्रदान करते आये हैं |अंगारों के समान तपते हुए ह्रदय ,वैर ,ईर्ष्या की आग में जलना और जलाना ही जिनका काम था,संतजन सदैव से उन्हें राहत पहुंचाते आये हैं |प्रभु नाम की बौछार करके इस निर्मल परमसत्ता के साथ नाता जोड़कर ,इसी का दीदार करवाकर इन्होने जीवन जीने का तरीका प्रदान कर दिया |यह तरीका था प्यार वाला,मिलवर्तन वाला ,चाहे राम जी ने,भगवान कृष्ण ने ,ईसा मसीह जी , हज़रत मुहम्मद साहब या श्रीगुरुनानक देव जी ने इसी प्रकार इंसान को जीवन जीने का सलीका सिखाया |

प्यार की कमी को पूरा करना आवश्यक

सन्तों-महात्माओं ने महसूस किया कि दुनिया में प्यार की कमी है |इस कमी को पूरा करने के लिए आप सब प्रेम मानवता का नाता मजबूती से थामे हुए हैं |मानवता का दामन मजबूती से थामने का तात्पर्य है कि धर्म को मजबूती से अपनाये हुए हैं |सच्चे धर्म की पहचान मानवता ही है,इंसानियत ही है |इनसे हटकर कोई परिभाषा नहीं है,धर्म की |

धर्म का वर्तमान स्वरुप

आज धर्म के स्वरुप जैसे बदल गए हैं |अनेकों क्रियाओं ,रीति रिवाज़ों को धर्म मान लिया गया है |हो चुके संतों-महात्माओं ,गुरु-पीर-पैगम्बरों ने माना है कि True religion is service of  mankind .कहने का भाव प्राणी मात्र की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है |यदि हम मानव से नफरत करते हैं सवशक्तिमान प्रभु के सच्चे उपासक नहीं हो सकते | हमें विश्व के हर मनुष्य को अपने  प्रेम का पात्र महसूस करना है |मानवता अर्थात इंसानियत के धर्म का पालन करना यदि हर कोई शुरू कर दे तो धरती का यह स्वरुप सुन्दर हो जाए |क्रूरता की कुरूपता ,प्रेम-दया-मानवता के रूप में तब्दील होती चली जाए |इसी बदलाव   की आज ज़रुरत है |यही क्रांति सबके जीवन में घटित होती चली जाए |जैसे कहते हैं-Change for the betterment -संसार के रूप को निखारने के लिए बदलाव |

बेहतरी के बदलाव में विलम्ब हानिकारक

बेहतरी के लिए बदलावों में जो देरी हो रही है ,उतना ही समय घुटन में भय में बीत रहा है |उतना ही पीड़ा में बीत रहा है |उतना ही चारों तरफ मारधाड़ की आवाज़ें हमें सुनाई दे रही हैं |प्रभु कृपा करे,सबको सुमति दे ,जो विपरीत रास्ते पर बढ़ निकले हैं,वे अपने कदमो को मोड़ लें |इस प्रकार वे सही दिशा में बढ़ जायेंगे |दिशा बदलेगी तो दशा भी बदलेगी |अभी जो दशा बनी हुई है,कंगालता वाली ,वह भी बदल जाएगी |

कंगाली जीवन मूल्यों की

बाबा जी ने कहा कि कंगाली पदार्थों की नहीं है बल्कि मानवीय मूल्यों की है |प्यार और मिलवर्तन की कमी है |इसी कमी के कारण कंगालता है | सब इस कंगालता से उबरें और अमीरी में स्थित हो जाएँ |अमीरी उस दौलत की,जो हरिनाम की दौलत है ,प्रेम की दौलत है,दया की दौलत है |इस दौलत से युक्त होकर अमीर हो जाएँ |अंधकार उजाले में तब्दील हो जाये,नफरत,प्यार में तब्दील हो जाए |अहंकार विनम्रता में बदल जाये |संकीर्णता ,विशालता में बदल जाये | हमें अपना यह जीवन प्रेम से तय करना है,नफरत से नहीं |

सन्तों-महात्माओं का निरंतर योगदान

सन्त-महात्मा इंसानो को निरंतर यह एहसास करवाते आये हैं कि ये जो साँसें मिली हैं बहुत कीमती हैं |इन्हें क्या वैर-नफरत करते हुए ही बिता दोगे ?अंधकार में रहते हुए ही क्या यह अनमोल जीवन बिता देना है ?पूरा जीवन बिता दिया जाता है लेकिन प्यार से जीना नहीं आता |शायर के शब्दों में-

जीने को जिए तेरी दुनिया में,

उल्फत मुहब्बत समझे नहीं |

ये पाठ हमने जाने ही नहीं,समझे ही नहीं |वो शेअर भी दास अक्सर दोहराता है-

एक उम्र भी कम है,मुहब्बत के लिए,

लोग वक़्त कहाँ से निकाल लेते हैं-  नफरत के लिए ?

मार्टिन लूथर किंग जूनियर का यह कथन भी ध्यान देने योग्य है-We are living in a  time when we have guided misissiles and misguided man .(हम ऐसे वक़्त में जी रहे हैं जबकि मिसाइलें तो निर्देशित हैं लेकिन आदमी भटके हुए हैं |)

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