भारत माता की जय हो ये नारे सभी लगाते हैं
पर माँ भारत की शान को कोई विरले ही अपनाते हैं
गणतंत्र शान है भारत की
गणतंत्र आन है भारत की
इस आन और शान पे देखा
ख़तरे कई मँडराते हैं
हर मानव माँ भारती की
जो जो भी गोद में रहता है
भारत माँ का लाल हूँ मैं
गर वो ख़ुद को कहता है
ख़ुद में से मानवता को घटा के
कुछ भी ऐसा नही करता
लगे कलंक आन बान को
वो व्यवहार नही करता
हर हाल में माँ के मुख पर
मुस्कान बनाए रखता है
माँ की शान गणतंत्र दिवस को
त्योहार बनाए रखता है
माँ की मर्यादा है देश की सीमा
बन जवान बचाता है
दुश्मन की गर नज़र उठे तो
जान की बाज़ी लगाता है
तिरंगा माँ का आँचल है
नीचे ना गिरने देता है
बुरी नीयत के बादल इस पर
कभी ना घिरने देता है
बन किसान उदर है भरता
अपने बहन व भाइयों का
लेशमात्र भी असर ना लेता
स्वार्थ की परछाइयों का
धूप छांव में रात दिवस वो
मेहनत करता जाता है
उसकी जय-२ होती है
वो जय किसान कहलाता है
नफ़रत की जगह प्रेम हो हर सूँ
मानवता का तक़ाज़ा है
अमन शांति आ पाए जिससे
प्यार ही वो दरवाज़ा है
खुला रखें इस दरवाज़े को
आने दें शीतल म्यार
मेरे राष्ट्र के गणतंत्र पर
छायी रहे सदा बहार
यूँ परचम लहराता रहे
ना इसको दाग़ लगे कोई
मेरी वजह से माँ भारती के
ना सुख में आग लगे कोई
बहुत ग़ुलामी सही है माँ ने
ख़ून के आँसू रोए हैं
सवार्थवाद और जातिवाद ने
कंटक बहुत चुभोयें हैं
कभी मुग़लों कभी अंग्रेज़ों ने
माँ की आन को लीला है
और कभी ख़ुद के बच्चों ने
इसकी ममता से खेला है
इनकी आपस की फूट ने भी
ज़ख़्मी माँ के दिल को किया
रानी लक्ष्मी, वीर भगतसिंह,
सुखदेव और राजगुरु
इधर महात्मा गांधी देश में
करते ना सही कर्म शुरू
मिलती ना गर माँ को आज़ादी
चैन की साँस ना लेते हम
ना मालूम कि भर भी पाते
माँ भारती के वो ज़ख़्म
गर सुन्दर सविंधान ना देते
भीमराव अम्बेडकर जी
और भी कई टुकड़े होनी थी
भारत माँ की ये छाती
हुआ सो हुआ जो हो गया
वो इतिहास दोहरायें ना
लाल बने हम देश के सच्चे
मानवता को गँवायें ना
तभी गणतंत्र बच सकता है
खण्ड-२ फिर होने से
उत्सव को उत्सव रहने दें
बचा लें ख़ुशियाँ खोने से
देश की शान गणतंत्र है
इसकी शान बचा के रखनी है
जब तक दम में दम है ‘वेद’
मानवता अपना के रखनी है
- श्रीमती वेद रहेजा (गुड़गांव)