वैलेंटाइन डे पर एक अधूरी कहानी


पुरानी बात है |मैं तब दूध की एक दुकान पर बैठता थाऋषि ने मुझसे कहा |

ऋषि मेरा बचपन का दोस्त है |उसने आगे कहा-वो दुकान पर दूध लेने के लिए आती थी |वह जब मुस्कुराती थी तो मुझे सुलक्षणा पंडित की याद आती थी |उसमें मुझे हू--हू सुलक्षणा पंडित की झलक दिखाई देती थी |

वह सत्तर का दशक था ,उस समय सुलक्षणा पंडित काफी बड़ी अभिनेत्री थी |उसकी फिल्म अपनापन देखी और उससे अपनापन हो गया |

सुलक्षणा पंडित से तो कुछ लिंक बन नहीं सकता था -समझ लीजिये वो मेरे लिए आकाशकुसुम थी |

आकाश के तारे के समान लेकिन मेरी दुकान पर जो दूध लेने आती थी,वह तो मेरे लिए सुलक्षणा पंडित हो सकती थी इसलिए उसके सपने देखने में कोई कठिनाई नहीं थी, लेकिन मैं दूध की दुकान पर काम करने वाला साधारण ग्रामीण लड़का और वह बिजनेसमैन पिता की सुन्दर पुत्री |यह सम्बन्ध भी जुड़ना  भी आसान था |

अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित यदि आकाशकुसुम थी तो दूकान से रोज सुबह दूध ले जाने वाली सुलक्षणा पंडित स्वप्नकुसुम थी |उसके मैं सपने तो ले सकता था लेकिन आमने- सामने बात कर सकता था और स्पर्श |

राई और पहाड़ जैसा फासला था इसलिए सपने  लेने की भी हिम्मत नहीं होती थी | किसी प्रकार यदि सपने में यदि मुलाक़ात हो भी जाती तो भी ,स्वप्न टूटते ही वह बिजनेसमैन की पुत्री बन जाती थी और मैं वही साधारण दूधिया |

दूध की दुकान से मेरी विदाई हुई और उस अज्ञात प्रेमिका से भी |

फिर मैं दिल्ली गया और सरकारी नौकरी के जुगाड़ में लग गया |मैंने घनघोर परिश्रम किया और दिल्ली में एक ठीक-ठाक सरकारी नौकरी पाने में कामयाब हो गया ,ऋषि ने कहा |

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दरअसल दिन वैलेंटाइन डे के चल रहे हैं |इस महत्वपूर्ण दिन के आने में थोड़ा ही समय बाकी है | संपादक जी का आदेश है कि अगले सप्ताह तक वैलेंटाइन डे एक प्रेमकथा दो, जो फ़रवरी अंक में छप सके |

  प्रेम के मामले में मैं कभी भी सौभाग्यशाली नहीं रहा |ऋषि मेरा पुराना दोस्त है और शक्ल -सूरत भी ठीक-ठाक है इसलिए उससे मुझे कुछ मसाला मिल सकता था |

मैंने उसे कुरेदा तो वह भी शुरू हो गया |ऐसा खुश जैसे भयंकर ठण्ड में आग तापने को मिल जाए |

हम चाय की एक दुकान पर बैठ गए |मैंने कहा-रोहतक से आकर तू भारत सरकार में अफसर बन गया यह बात तो ठीक है,मुझे मालूम है लेकिन तेरी उस सुलक्षणा पंडित का क्या हुआ ? 

सुलक्षणा पंडित का नाम लेकर मेरे बेबुनियाद सपनो  की राख में भी थोड़ी आंच महसूस हुई |

ऋषि भी मुस्कुराया और बोला-सिर्फ चालीस साल ही तो गुजरे हैं जब वह फ्रॉक पहनकर दूध लेने आती थी |उसका शरीर तो बच्चों की आयु सीमा से ऊपर था लेकिन उसके घरवाले शायद उसे बच्ची ही समझते थे |मेरी नज़र में वह शानदार भविष्य का सुनहरा आगाज़ थी  |कहकर ऋषि चुप हो गया |

मैंने पूछा-फिर कभी उससे मुलाक़ात हुई या नहीं ?

यार ,शादी होने के बाद सब बदल गया |पत्नी इस मामले में हिटलर की अवतार थी |उसके डर से औरतों के सपने भी आने बंद हो गये |ऋषि मायूसी से बोला |

 लेकिन सपनो को भाभी तो क्या असली हिटलर भी नहीं रोक सकता |मैं बोला

हाँ,एक दिन मिली थी ,एक रेस्तरां में |ऋषि लम्बी सांस लेकर बोला |

फिर क्या हुआ ?उसके पति का रिएक्शन कैसा था ?मैं चहककर बोला |

रिएक्शन क्या हो सकता था ,वह तो साथ था ही नहीं,ऋषि ठन्डे स्वर में बोला |

फिर तो सिर्फ खिचड़ी ही खिचड़ी थी,कंकड़ तो था नहीं |यह तो गोल्डन ओकेजन था ,फिर क्या हुआ -महामिलन हुआ या नहीं ?

क्या अजीब बात कर रहा है तू,वह भी चालीस के पार थी और मैं भी चालीस पार ,फिर वह सब तो सोच में भी नहीं था,जो लड़कपन के दिनों में रोज होता था |

शादी होने के बाद सोच बदल जाती है|चालीस के बाद तो सोच बिलकुल बदल जाती है ,शरीर इतना ज्यादा इम्पोर्टेन्ट नहीं रहता |

हुआ सिर्फ इतना कि मैं कुछ लोगों के साथ बैठकर चाय पी रहा था |अचानक मैंने उसे आते देखा -मेरे पूरे शरीर में झनझनाहट हो गयी |

मैं जैसे चालीस साल पीछे चला गया |आँखों में चमक गयी |वह चहक रही थी ,पैसे से महक रही थी | एक और औरत उसके साथ थी |शायद उसकी सहेली रही होगी ,मैंने सोचा |

वह पीछे बैठ गयी और दोनों कुछ खाने लगीं |वैसे तो मैं ऑफिस के साथियों के साथ चाय पी रहा था लेकिन मेरा पूरा दिल--दिमाग उसी पर लगा था |

दरअसल मैं जानना चाहता था कि मैं ही उसे ब्यूटी क्वीन समझता था या वह भी मुझे कुछ समझती थी ?बीस साल बाद आज मिली थी ,आज के बाद कभी उससे मुलाक़ात  होगी भी कि नहीं ,कौन कह सकता था इसलिए बातचीत करनी जरूरी थी  लेकिन दफ्तर के लोग साथ थे और मेरे बारे में जिस प्रकार के ख्याल उनके मन में थे,उस इमेज की रक्षा करनी जरूरी थी |

लिहाजा मैं धीरे-धीरे चाय पीता रहा |अरे यार  ,चाय पी रहे हो या कविता लिख रहे हो,प्रसाद ने व्यंग्य करते हुए कहा|इस व्यंग्य का जवाब देने की बजाय मैंने चुप रहना ही उचित समझा |

तुम चलो,मैं एक कप चाय और पिऊंगा ,मैंने भाईलोगों से जान छुड़ाते हुए कहा |

यह सुनकर वे तीनो निकल लिये |अब मैंने हिम्मत बांधनी शुरू की |देहाती के लिए किसी को आई लव यू कहना हिमालय की चढ़ाई जितना कठिन है और चालीस पार करके आई लव यू कहना तो अति कठिन है |

यह कठिन काम ही आज मुझे करना था इसलिए हिम्मत बांधने की ज़रुरत लग रही थी |

आप पहले रोहतक में रहते थे ?खुद उसी ने पूछा तो मेरी जैसे लाटरी लग गयी |

आपने मुझसे कुछ पूछा ?मैंने (थोड़ा एडिशनल समय लेने के ख्याल से) पूछा |

असल में बीस साल इंतज़ार के बाद आज का दिन आया था |इस दुर्लभ समय को व्यर्थ की बातों में गंवाने का जोखिम मैं नहीं ले सकता था |

मैं यदि कहता कि मुझे आपसे बहुत प्यार था तो वह बुरा भी मान सकती थी,उस स्थिति में जवाब मिलने की कोई संभावना नहीं बचती |यह भी हो सकता था कि वह बहुत खुश हो जाती और मुझसे कुछ उम्मीद करने लगती और मैं जो हिटलर बीवी का कायर पति था अपनी औक़ात जानता था इसलिए सीधी बात करने में जोखिम ज्यादा था लेकिन पहल वो कर चुकी थी ,मेरा रिस्क उसने पहले ही कम कर दिया था |इससे ज्यादा साहस की उम्मीद ,उससे करना व्यर्थ था इसलिए बात तो आगे बढ़ानी ही थी |

यहाँ कोई और तो बैठा नहीं है,इसलिए समझ लो,मैंने तुमसे ही पूछा है |वह मज़ाकिया लहज़े में बोली |

उसका मज़ाक मुझे भीतर तक गुदगुदा गया |जो कोयले वर्षों पहले राख़ हो गये थे,वो दोबारा गर्म होने लगे |

बीस साल बाद भी आप लगभग वैसी ही हो,कहकर मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा |

उसके चेहरे का दाहिना हिस्सा ,दाहिना गाल लाल हो गया था |

वैसी ही हो,से तुम्हारा क्या मतलब है,वह अधिकार से बोली |

बुरा मत मानना,अब भी तुम्हारा जलवा कम नहीं हुआ ,मैं हिम्मत करके बोला |

उन दोनों ने जो खाया -पिया था ,उसके पैसे मैंने दिये |

अरे,आज तो वैलेंटाइन डे है,उसकी सहेली ने चलते-चलते फ़िक़रा कसा ?

फिर कब मुलाक़ात होगी ,मैंने हँसते -हँसते पूछा

जब मन हो,फोन कर लेना,उसने अख़बार के एक टुकड़े पर मोबाइल .लिखा और मुझे दे दिया |

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मैंने अपना विजिटिंग कार्ड उसे दिया और चला गया |

तुमने उस . पर कभी फोन किया ?मैंने पूछा

असल में उसकी शादी जहाँ हुई ,वह भी बिजनेसमैन थे |जमा -जमाया बढ़िया बिजनेस था लेकिन जीवन में उतार -चढ़ाव आते रहते हैं |हर वैलेंटाइन डे को मैं उसे फोन करता था और वह खूब मजाक करती थी ,इस उम्र के वैलेंटाइन पर |

फोन हमेशा मुझे ही करना पड़ता था |उसका मैसेज आता था ,आज ----बजे फोन करना और मैं फोन करता था |कभी -कभी मुझे लगता था कि उस दिन उसकी और सहेली की पेमेंट करने के बाद  भी मैं उसकी हैसियत का नहीं हो पाया था |

वह आर्डर देती थी कि इतने बजे फोन करना और मैं उसके आर्डर की तामील करता था इसीलिए उसे खुद फोन करने की ज़रुरत ही नहीं थी |

उसका मैसेज मिलने के बाद उसे फोन करना मैं कभी नहीं  भूला लेकिन एक दिन मैं उस समय मॉल में था और बीवी साथ थी | वह खरीदारी में लगी थी ,फोन करने का समय हो गया था ,इसलिए मैं टॉयलेट में घुस गया |

उसने बताया,कम्पनी में रेड पड़ी थी और कारोबार बिखर गया था |

फिर बात करूंगा ,कहकर मैं बाहर गया |

टॉयलेट में बहुत देर लगी,पेट ख़राब है क्या,पत्नी ने पूछा |

हाँ,हालात कुछ ठीक नहीं लग रहे,कहकर मैंने उसके बाकी सवालों से पीछा छुड़ाया |

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ऋषि मौन हो गया था |

सुलक्षणा पंडित का किस्सा यहीं खत्म होने लगा था लेकिन रेड पड़ने के बाद रोमांस का क्या हुआ ,मैंने सोचा |

आगे क्या हुआ ,मैंने बात आगे बढ़ाते हुए ऋषि से पूछा --

शुक्र है हमारी सरकारी नौकरी है ,नहीं तो हमें भी कोई छोटा -मोटा धंधा करना पड़ता,ऋषि ने राहत के स्वर में कहा |

ऋषि आगे बोला-बिजनेस के अपने मसले हैं ,हज़ार किस्म के क़ानून हैं ,उतने ही टैक्स हैं |परिवार भी पालना है,चंदा भी देना है,हफ्ता भी देना है |हमें भी ऐसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता,अगर सरकारी नौकरी मिली होती|

लेकिन सुलक्षणा पंडित का क्या हुआ ?मैंने पूछा

कुछ नहीं -वो अपने पति की पत्नी थी और मैं अपनी पत्नी का पति,ऋषि बोला |

कहानी को बीच में तो नहीं छोड़ सकता था इसलिए मुझे आक्रामक होना पड़ा -अरे,फिर उस रेस्टोरेंट में कभी उससे या उसकी सहेली से मुलाक़ात हुई या नहीं ?

रेड पड़ने के करीब छह महीने के बाद की बात है,उसका मैसेज मिला कि मिलना चाहती हूँ |

मैसेज पढ़कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई |सही समय पर मैं रेस्टॉरेंट में पहुँच गया |तय समय पर उसकी बजाय उसकी सहेली आयी |वही सहेली जो उस दिन साथ थी |

उसने उसका खत दिया -खत से पता चला कि कारोबार ठप हो गया था |वह बीमार थी और डेढ़ लाख रूपये चाहती थी |

मैं रुपयों का इंतज़ाम तुरन्त करने में नाकाम रहा |

पत्नी के भतीजे की मेरठ में शादी थी |मैं दिल्ली में नहीं था |पांच दिन बाद दिल्ली आया |उसे फोन मिलाकर मैं कहना चाहता था कि डेढ़ लाख का इंतज़ाम मैं कर दूंगा लेकिन उधर घंटी बजती रही और लगातार बजती रही |

फिर उससे मुलाक़ात नहीं हो सकी,बातचीत भी नहीं हो सकी |बीमारी उसे ही ले गयी थी ,डेढ़ लाख देने की नौबत ही नहीं आयी | 

मेरी प्रेमकहानी अधूरी ही रह गयी,हमेशा के लिए |

-रामकुमार सेवक