यदि गणतंत्र बचाना है तो मानवता अपनानी होगी







एक दिन अनायास

आया मुझे ख्याल
मैंने पूछ लिया सवाल 
अपने हृदय में बैठे मित्र से
मैं बोला मित्र 
करो जरा मनन
क्यों और कैसा होता है 
हनन 
जनतंत्र का, गणतंत्र का ,?
मेरे सम्मुख खींचो जरा 
शब्दों का चित्र ;
समझाओ मुझे सचित्र।
तब मेरे मित्र ने मुझे बताया 
मुझे सचित्र समझाया,
सुनिए आप भी 
उसने मुझे क्या बताया ।
उसने कहा
जब लोग समता, न्याय , मानवता 
आदि शाश्वत मूल्यों के स्थान पर 
जाति ,वर्ण ,भाषा ,क्षेत्र ,धर्म ,मजहब और
दल आदि को  देते हो प्राथमिकता 
खत्म हो आचरण की सात्विकता 
तो समझो जनतंत्र का हनन 
हो रहा है
क्योंकि गलत भ्रमित लोगों द्वारा 
गलत का चयन हो रहा  है ।
जब जब लोगों द्वारा चुना व्यक्ति
सिंहासन पाकर
स्वयं को  को समझने लगे सर्वोच्च  ज्ञानी 
और शेष सब को महामूर्ख अज्ञानी ।
करने लगें
सिंहासन पाकर अराजक  राजा महाराजा सा
व्यवहार ।
करने लगे स्वार्थ वश हर एक से तकरार
और
अदालत  भी हां में हां लगे मिलाने राजा और उसके दरबारियों की मंशा अनुसार फैसले लगे सुनाने 
दरबारी मीडिया कवि और तथाकथित साहित्यकार तक खड़े हो जाएं
 " कालनेमी " बन
सटीक सवालों के उत्तर की राह में 
स्वार्थ पूर्ति की चाह में
और
खामखां और  तरह-तरह के उत्सवों में 
जनता का खजाना किया जा रहा हो
खाली
और जनता अंधभक्ति में बजाए 
ताली और थाली 
तो समझो जनचेतना का हरण है 
गणतंत्र का मरण है ।
खैर 
यह सब छोड़ोऔर आगे बढ़कर जरा देखो
जब हृदय  की विशालता
की जगह संकीर्णता ले ले ं
जब धार्मिकता की जगह
सांप्रदायिकता ले ले ं
जब अहिंसा की जगह हिंसा ले ले 
जब आचरण और तथ्यों की जगह
बड़ बोलापन और वाचलता ले लें
जब देखो जनता में सदभाव की जगह
वैमनस्य में तरावट है 
तो समझो गणतंत्र में गिरावट ही गिरावट है ।

तब मैंने व्यथित मन से मित्र से कहा
बस बस अब और नहीं जायेगा सहा
मंहगाई की तरह बरसाओ मत चाबुक
कुछ तो दिखाओ साबुत ।
तुम यह सब बताना छोड़ो
और
चिन्तन का रथ समाधान की और मोड़ो
जब चिन्तन का रथ समाधान की दिशा में  मुड़ा
तब मैनै यह सुना
जो मित्र ने कहा
सुनो गणतंत्र बचाने का प्रावधान
रहना हर पल हर दिन सावधान
तन को सुंदर सब करते हैं
मन को सुंदर करना होगा
भीड़, कठपुतली बनने से

अब मना ही करना होगा
अध्ययन,चिन्तन, मनन कर के
राह सही चुनते जायें
संतों , महापुरुषों के वचनों को
जीवन में गुनते जाए ।
गुरु पीरों की बात समझ कर
दानवता बिसरानी होगी
यदि गणतंत्र बचाना है तो
मानवता अपनानी होगी ।

- जगन्नाथ पटौदी