सत्यमेव जयते शीर्षक पर 24/10/2020 को आयोजित प्रगतिशील पाठक मंच के कवि सम्मेलन में पढ़ी गयी रचनाएँ (छः)

अहंकार का रावण



अहंकार के रावण को हम, अमन प्यार से मार गिराए.


अहंकार के कारण ही तो, एक प्रभु का ज्ञान ना होता.


अहंकार के कारण ही तो, एक दूजे से प्यार ना होता.


 


अहंकार एक बाधा है, जो रब से मिलने नहीं है देती.


अहंकार एक अग्नि ऐसी, जो बुद्धि को है हर लेती.


अहंकार के रूप कई है, जो जीवन में आते जाते.


सुक्ष्म रूप में जब भी आते, नाश ज्ञान का कर वो जाते


 


अहंकार को किसी रूप में हम ना जीवन में अपनाये.


अहंकार के रावण को हम, अमन प्यार से मार गिराए.


 


कही ना कही तो अहंकार था, पांचाली के भी मन में,


जिसके सुन कर बोल, क्रोध था दुर्योधन के मन में.


उन वचनों के पृष्ट भूमि में, थी विश्व युद्ध की अकथ कहानी.


कहने को तो चार शब्द थे, सोचो कितनी थी नादानी.


 


मांग रखी थी पांच गांव की, श्री कृष्ण भगवान ने,


अहंकार के कारण ही तो, ना स्वीकार किया नादान ने.


कुरु वंश का नाश, नाश सब पर- परिजन का,


सब पुर- परिजन का नाश, नाश किया जन जीवन का.


 


सोच समझ कर बोलें हर पल, सरल सहज जीवन अपनाएँ.


अहंकार के रावण को हम, अमन प्यार से मार गिराए.


 


रावण को राम ने मारा, या रावण की "मैं" ने मारा?


अहंकार में कई डूब गए, सहज भाव सब जग को प्यारा.


भक्ति और ज्ञान मार्ग में, जब ये हावी हो जाता है,


भगत की भगती खो जाती है, ज्ञानी का ज्ञान फिसल जाता है.


 


रावण बनते देर ना लगती, अहंकार जब बढ़ जाता है.


मिल वर्तन और प्यार बढ़ा कर, आओ जीवन को महकाए.


अहंकार के रावण को हम, अमन प्यार से मार गिराए.


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नारी



भारत भूमि, पुण्य भूमि. जहां नारी की पूजा होती है.


पूजा तो होती है, पर कुछ ही दिनों की होती है.


हम इतने दयालु है कि, नारी की पूजा इस कारण करते हैं,


क्यूंकि, 'यत्र नारी पूज्यन्ते, तत्र देवता रमन्ते'


ये ग्रंथो ने कहा है.


 


इसीलिए हम अपनी नहीं, पर नारी की पूजा करते हैं.


अपनी तो अपनी है, पर दूसरी पर नज़र रखते हैं.


अपनी की तो हम, दूसरे के कहने पर, अग्नि परीक्षा लेते है.


दूसरे के कहने पर ही, गर्भावस्था में जंगल भेज देते है.


इसीलिए उसे धरती माँ की गोद में समाहित होना पड़ता है.


 


अब तो इस नारी को, रावण की उस वाटिका की तलाश है,


अपनी लाज बचाने को, अपनों से नहीं, गैरों से आस है.


 


अब नारी पल पल डरती, भय से होती निराश है.


डरती सोती, आस है खोती, अब अपनों पे भी नहीं विश्वास है.


ऋषि पुत्र परशुराम को पिता के कहने पर, रेणुका को मरना पड़ता है.


कदम कदम पर अपने अधिकारों के हित, इस जहां से लड़ना पड़ता है.


 


जब तक इस देश का गौतम, यशोधरा को सोते हुए त्यागता रहेगा,


उसको उसका अधिकार नहीं मिल सकता, ये हर पल सालता रहेगा.


"ऐ गौतम, तुम महानता को पा गए. यशोधरा को बिलखता छोड़ दिया.


किस के सहारे?"


 


कभी विचार किया, उर्मिला ने कैसे निर्वाह किया?


"ऐ जागरूक पुरुषों, नारी के सम्मान हेतु, तुम्हे आगे बढ़ना पड़ेगा.


नहीं तो मन की बात कहने को यहाँ यहाँ भटकना पड़ेगा.