अवधी, ब्रज, बुंदेली, कन्नौजी, भोजपुरी और सिंधी
इन सभी का प्रतिनिधित्व करती राष्ट्र भाषा हिंदी
बहुत कुर्बानियों के बाद हमने जिसे आज़ाद किया था
जब साम्राजयवाद की मनमानी को बर्बाद किया था
अत्याचारो के तले दबती अबला सी नारी है
हिन्दुस्तान के बाद अब हिंदी की बारी है
हिंदी पर अब अंग्रेजी ने हमला बोल दिया है
अपने आयुध भण्डार का मुंह खोल दिया है
स्वदेशी भाषा अपना मूल्य खो रही है
और देश की तरक्की भी अंग्रेजी में हो रही है
कलमधारी नवयुवक भी इस तरफ आते नहीं दीखते हैं
वो भी देश की स्थिति और नेताओ पर ही लिखते हैं
जिसके सहारे नायिका के भेदों का वर्णन कर जाते हैं
उस मातृभाषा की पीड़ा को समझ नहीं पा ते हैं ?
हिंदी को हमने इस कदर बेबस बना रखा है
इसके आयुध पर अपनी कलम का पहरा बिठा रख्खा है
अपने आप इस घुसपैठ को रोकने में है असफल
अंग्रेजी हो गयी मुशर्रफ और हिंदी है अटल
आओ मिलकर सभी साथ आएं
हिंदी को फिर से बलवान बनाएं
हिंदी ही बोलें, हिंदी में ही लिखें
हिंदी में खरीदें और हिंदी में ही बिकें
हिंदी में सोएं, हिंदी में जागें, हिंदी ही बरतें
हिंदी में कमाएं और हिंदी में ही खर्चें
क्यूंकि जो प्रेम प्रिये में झलकता है डियर में नहीं
जो मादकता मदिरा में है बियर में नहीं
जो अनुभव कोमल स्पर्श में है वो सॉफ्ट टच में कहाँ
भावाभिव्यक्ति की पराकाष्ठा जो हिंदी में है और कहाँ
विश्व की सबसे समृद्ध भाषा का अनुसरण क्यों नहीं करते
अर्थ व्यवस्था का विकास अपनी मातृ भाषा में क्यों नहीं करते
नहीं तो मैं फिर दूसरा रास्ता अपनाऊंगा
मदद मांगने दुश्मन क पास जाऊंगा
या तो मैं और मेरी कलम हिंदी पर बलि जायेंगे
मूड बदल गया तो अंग्रेजी के रंग में रंग जायेंगे
किसी रूष्ट नेता की तरह पार्टी बदल जायेगा
जब ये हिंदी प्रेमी भी अंग्रेजी में ढल जायेगा
फिर बदल जाएगी आस्था और शीर्षक बदल जायेगा
हिंदी का अर्थ केवल इतना रह जायेगा
अवधी ब्रज बुंदेली कन्नौजी भोजपुरी और सिंधी
कभी इन सब का प्रतिनिधित्व थी राष्ट्र भाषा हिंदी
अब न ब्रज बुंदेली, न भोजपुरी, न सिंधी
बिलकुल अकेली रह गयी मातृ भाषा हिंदी
आओ मिल कर इसका इलाज कराएं मित्रों
मातृ भाषा को पतन से बचाएँ मित्रों
भाषा बने ये प्यार की
विश्व की, संसार की,
प्रेम के इज़हार की,
बुराई से इंकार की,
धरती की, आकाश की,
उम्मीद की, विश्वास की,
रिश्तों के एहसास की,
भविष्य की, इतिहास की,
"उदय" जीवन के प्रकाश की,
आओ बेचारी हिंदी को बलवान बनाएं मित्रों
इसको भाषाओँ की रानी का ताज पहनाएं मित्रों
- दीनदयाल 'उदय'