भूख और रोटी का सम्बन्ध क्या सबसे बड़ा सच नहीं है ?

हम सब अच्छी तरह इस तथ्य से परिचित हैं कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था कष्टप्रद दौर से गुजर रही है  |चहुँ ओर अनिश्चय का वातावरण है |इसका प्रत्यक्ष कारण तो कोरोना वैश्विक महामारी है लेकिन कुछ और भी कारण हैं जिनकी चर्चा अर्थशास्त्र की समझ रखने वाले लोग करते रहते हैं |
पूरी चर्चा पर ध्यान देने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मंदी के इस दौर से उबरना बहुत जरूरी है |
इस सम्बन्ध में एक उत्साहवर्धक खबर पढ़ने को मिली तो मुझमें भी उत्साह का अंकुर फूटा लेकिन धूप-छाँव या अँधेरे- उजाले के खेल की तरह यह अंकुर शीघ्र ही मुरझा भी गया |
खबर सोसाइटी ऑफ़ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैचरर्स (Society of indian automobile manufacturers ) के हवाले से आयी कि  अगस्त 2020 में वाहनों की खरीद की मात्रा बढ़ी है |इसका अर्थ यह है कि लोग अब पहले जितने बदहाल नहीं हैं |उनकी तरक्की हुई है ,जीवन में कुछ सुखद बदलाव हुए हैं |इस प्रकार यह बढ़ोतरी एक शुभ संकेत है|
साथ ही यह ख्याल भी आया की समस्याएँ तो ऊँट के आकार की हैं और तरक्की की यह खबर जीरे के आकार की |ख्याल में भाव उमड़ा कि दिये की टिमटिमाती लो घर को सिर्फ रोशन कर सकती है ,ठन्डे चूल्हे को गर्म नहीं कर सकती |



एकदम मुझे ख्याल आया कि बेरोजगारों की मात्रा निरंतर बढ़ रही है |बेरोजगारी की स्थिति में कोई बड़ा सुधार आने वाला है,ऐसी कोई संभावना भी नज़र नहीं आ रही लेकिन अख़बार की दृष्टि में बेरोजगारी कोई खबर नहीं है|इसका अर्थ यह है कि अख़बारों की प्राथमिकताएं अब बदल चुकी हैं |अख़बार के संपादक की दृष्टि में असम या बिहार की बाढ़ की बजाय SIAM की यह खबर बड़ी खबर है,जबकि इसकी पुष्टि किसी सरकारी संगठन या संस्थान ने नहीं की है लेकिन खबर अच्छी है इसलिए यकीन करने को मन करता है ,भले ही बाद में इसका खंडन आ जाए |
मुझे 1970 -71 के दौर का वह गाना याद आ रहा है-
पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले-झूठा ही सही ---
बेरोजगारी का यह आलम है कि रोज काम करके खाने वाले सुबह से ही आवाज़ लगाना शुरू कर देते हैं शाम का अँधेरा ढलने के बाद भी उनके working hours जारी रहते हैं |स्थिति ऐसी हो गयी है कि    
बच्चे और स्त्रियां तक मोहल्ले में सब्जी बेचने के लिए मजबूर हैं |
जो बेरोजगार हैं ,लेकिन गृहस्थी हैं,जिन्हें हाल ही में बंद हुई कंपनियों से निकाला गया है और निकाला जा रहा है,किस तरह अपनी ज़रूरतों का पेट भर रहे होंगें ,अनुसन्धान का विषय है | मुझे सत्तर के दशक की हिंदी फिल्म रोटी का एक पद्यांश याद आ रहा है,जिसमें राजेश खन्ना कहते हैं-
कसूर मेरा नहीं है,रोटी की कसम 
भूख की दुनिया में ईमान बदल जाता है |
वाहनों की चोरी महानगरों की बड़ी समस्या है |इस तरह के अपराध बढ़ रहे हैं |इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भूखों की समस्या को अनावश्यक मान रहा लगता है चूंकि वहां तो एक अभिनेता की आत्महत्या और एक अभिनेत्री के अनावश्यक टिप्पणियों पर ही चर्चा होती रहती है |
भूख और रोटी दोनों का सम्बन्ध बहुत बड़ा सच है -यह लिखना न्यायोचित नहीं लग रहा बल्कि लिखना पड़ेगा कि-भूख और रोटी का सम्बन्ध सबसे बड़ा सच है |और-वाहनों की बिक्री में आया थोड़ा सा उछाल उसे बदल नहीं सकता |