हिंदी दिवस की पूर्वसंध्या पर प्रगतिशील साहित्य मंच (दिल्ली) द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में पढ़ी गयी कवितायेँ (एक)
हिंदी की व्यथा 

 


 

हिंदी की हालत देखकर मेरे मन में एक क्रियात्मक विचार आया,

और मैंने मूछों पर हाथ फेरते हुए आगे कदम बढ़ाया ।

सहसा एक महाशय ने पूछा, किधर चले जनाब,

मैंने फ़ौरन दिया जवाब।

मै राज भाषा हिंदी को जगाने जा रहा हूं।

यदि रूठ गयी होगी तो मनाने जा रहा हूं।

महाशय जी बोले जगाकर देख लो

परिणाम मालूम हो जाएगा।

यह काम इतना आसान नहीं अंत में खाली हाथ ही तूं आएगा।

 

मैंने अपने मनोबल को कम नहीं किया,और पहुंच गया उस क्षेत्र में,

 

जहां आलीशान इमारतों में रहते हैं देश के शुभचिंतक लोग।

जो नारा तो लगाते हैं हिंदी का,

पर प्रेम अंग्रेजी से करते हैं लोग।

 

वहां पर मैंने देखा कि बेचारी हिंदी एक कोने में सो रही थी।

शायद अंग्रेजी के वातावरण में अपने अस्तित्व को खो रही थी।

 

मैंने धीरे से बोला,

ऐ प्यारी हिंदी ,उठो मै आज तुम्हे जगाने के लिए आया हूं।

देश की अखंडता के लिए आवश्यकता है तुम्हारी,

ऐसा संदेश लेकर आया हूं।

 

हिंदी ने आंखे तो खोली, लेकिन

उदास में बोली।

क्या बताऊं ,

ये विशिष्ट लोग हिंदी बोलने वालों की हंसी उड़ाते हैं।

पाश्चात्य संगीत की धुन पर खुशियां मानते हैं।

बच्चों को प्रारंभ से बाय बाय व टाटा सिखाते है।

जब मै जागने का प्रयास करती हूं, तो मुझे अंग्रेजी की ताकत दिखाते हैं।

मैं विवश होकर फिर सो जाती हूं,

फिर सो जाती हूं,फिर सो जाती हूं।

 

वहां से मैं आगे बढ़ा तो पहुंच गया सरकारी कार्यालय में।

जहां हिंदी पखवाड़ा मनाया जा रहा था विभाग के मुख्यालय में।

 

वहां से भी हिंदी की वही आवाज आयी कि,

मेरे प्रचार व प्रसार में पखवाड़ा तो मनाते हैं।

दो शब्द हिन्दी में लिखकर,अपना कर्तव्य तो जताते हैं।

विभिन्न प्रकार के हिंदी कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

तथा प्रतियोगी विजेताओं को पुरस्कार भी दिए जाते  हैं।

 

लेकिन अफसोस इस बात का है कि जैसे ही पखवाड़ा खत्म होता है,

अंग्रेजी को गले लगाते हैं l

और मुझे भूल जाते हैं l

मुझे भूल जाते हैं l

मुझे भूल जाते हैं।

 

जय हिन्द...