हिंदी दिवस की पूर्वसंध्या पर प्रगतिशील साहित्य मंच (दिल्ली) द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में पढ़ी गयी कवितायेँ (दो)
भारतवर्ष के मस्तक की बिंदी है हिंदी 

 


 

मैं बोली अपनी एक सखी से- बिंदी जब लगाती हो

 

हो सुहागिन, लगती भी हो, मुझ को बहुत सुहाती हो

 

माथा भी चमका रहता है, चेहरा खिला-खिला लगता 

 

विश्वास झलकता है आँखो से, वाणी से भी रस झरता

 

What an old thinking है 

 

तुम्हारी, एक friendये बोल उठी

 

बिन्दी old fashion है, नए fashion की गाँठे खोल उठी

 

Talk walk with नया ज़माना, पीछे अगर नही रहना 

 

उसकी इंग्लिश हिंग्लिश सुन कर, मैं बोली- सुन ओ बहना

 

बिंदी हिंदी, हिंदी बिंदी मेरे देश का गौरव है,

 

ये संस्कार है पूरब के, और हिंदुस्तान का सौरभ है|

 

विभिन्न भाषायें हैं सब गहने, पर बिंदी सजती माथे पर

 

कोई गहना जा नही सकता, हिंदी बिंदी से ऊपर  

 

भारतमाता सजती- सँवरती और निखरती हिंदी से 

 

खुलकर ख़ुद को प्रकट करती, ज्यों सुहागिन बिंदी से

 

देश की किसी बोली भाषा से ,कोई वैर नही ,तकरार नही

 

एकत्व स्थापित कैसे होगा, गर हिंदी का सत्कार नही |

 

हिंदुस्तान है राष्ट्र हमारा, हिंदी राष्ट्र भाषा है |

 

अंग्रेज़ी के चलते हिंदी के हाथ लगी क्यों निराशा है|

 

फ़र-२ बोलें जो अंग्रेज़ी, बच्चे पढ़े  लिखे कहलाते हैं|

 

हिंदी भाषी सुघड़ स्याने, फूहड़/पिछड़े समझे जाते हैं|

 

हाए बाय/ but और Cut में फँसी हुई, उस बहन  के बात समझ आयी

 

हिंदी की बिंदी को लगा के सामने मेरे जब आयी-

 

बोली, अब कैसी लगती हूँ, हिंदी बसी मेरे अन्दर

 

मैंने छेड़ा so beautiful लग रही हो मेरी sister

 

मत मज़ाक़ उड़ाओ मेरा, अब बहन जी अच्छा लगता है,

 

हिंदी बोल  के हर एक बन्दा, अपना-अपना लगता है-

 

मैं सुन्दर ,मेरे बच्चे सुन्दर,हिंदी  उन्हें पड़ाऊँगी,

 

English, French, बांगला, मलयालम आदि  से ख़ार ना खाऊँगी

 

भारत माता के मस्तक का गौरव हमें बढ़ाना है.

 

*वेद* हिंदी बिंदी की लाली का सम्मान बचाना है|