रक्षा बंधन-कल और आज

आज  रक्षाबंधन का त्यौहार है |भाई-बहन के रिश्ते इन दिनों संकट में हैं |भारत में वह समय भी था जब शिक्षक को मास्टरजी और शिक्षिका को बहन जी कहा जाता था |मेरा ख्याल है कि स्त्री -पुरुष के सम्बन्ध तब अब से ज्यादा मर्यादित थे |पति अपनी पत्नी में ही सब सुंदरियों का सौंदर्य महसूस करते थे |जो सन्यासी थे (स्वामी विवेकानंद )उन्होंने शिकागो की विश्व धर्म सभा में उद्घोष किया-मेरे प्यारे अमेरिकावासी बहनो और भाइयों |




उस समय किसी भी स्त्री को बहन कहने में कोई खतरा नहीं था |हमारे मोहल्ले की सारी लड़कियां हमारी बहन हुआ करती थीं |बचपन में मेरी कलाई पर दस-बारह राखियां हुआ करती थीं |उन सबको देने के लिए दस-बीस रूपये ही काफी होते थे |
हम जिन चाचा अथवा मामा आदि की बहनो से राखी बंधवाते थे , उनके बच्चे हमारी बहनो से राखी बंधवाते थे |यह विशुद्ध आदान -प्रदान था लेकिन सामाजिक मर्यादा का संरक्षण करता था |
किसी लड़के की शादी अपने गली-मोहल्ले में तो होगी नहीं ,किसी अन्य गांव-शहर में ही होगी,यह तय था इसलिए मोहल्ले में एक प्रकार की मर्यादा स्थापित थी |उन दिनों के गाने भी कुछ अलग ही प्रकार के होते थे-भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना तथा -बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है,प्यार के दो तार से संसार बांधा है-रेशम की डोरी से संसार बांधा है|
ऐसे सैकड़ों गाने हैं जो अब भी दिल में उन भोले दिनों की याद दिलाकर दिलों में हलचल मचा देते हैं |ये सब गाने फ़िल्मी लोगों ने लिखे ,गाये और अभिनीत किये लेकिन समय अपनी रफ़्तार से दौड़ता रहा ,त्यौहार तो रहा लेकिन प्यार बीच से गायब हो गया |
पैसे की भूमिका बड़ी हो गयी तो भाइयों और बहनो वाला स्वामी विवेकानद का वो प्यारा सम्बोधन लुप्त हो गया|यद्यपि रेडियो पर अमीन सयानी हर प्रोग्राम के सम्बोधन में कहते थे -बहनो -भाइयो लेकिन उनके कार्यकाल के बाद यह प्यारा सा सम्बोधन बिलकुल लुप्त हो गया |
जब तक यह सम्बोधन स्वीकार्य था तब भी रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाता था |
उन दिनों के नायक-नायिकाओं के किस्से सिद्ध करते हैं मर्यादा के त्यौहार के प्रचलन के बावजूद  परस्त्री और परपुरुष सम्बन्ध भी होते थे लेकिन गली-मोहल्ले -गांव अब से ज्यादा मर्यादित और सुरक्षित थे  क्यूंकि जिसे बहन या भाई कहते थे उसके प्रति मर्यादा की रक्षा भी करनी होती थी |
परस्त्रीगामी और परपुरुषगामी पर भी दबाव रहता था क्यूंकि हर फिल्म किसी सन्देश पर आकर ही  ख़त्म होती थी इसलिए अभिनेता-अभिनेत्रियों को मर्यादित होने की छवि बनानी -बचानी पड़ती थी |
वह छवि बनाना बेशक एक प्रकार का ढोंग या आडम्बर ही था लेकिन समाज में एक पर्दा था,जिसके कारण आदर्श अथवा मर्यादा बची हुई थी |रक्षा बंधन जैसे त्यौहार तब ज्यादा स्वाभाविक लगते थे |
फिर ज़माना आया-
खुल्लमखुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों,
इस दुनिया से नहीं डरेंगे हम दोनों |
यह चोरी और सीनाजोरी का ज़माना था -धीरे -धीरे इसके अनुयाई ज्यादा हो गए |
दिल्ली में आकर हम भी दो शब्द सीख गए-सर और मैडम क्योंकि यदि किसी को बहन जी कह दिया तो वो नाराज़ हो सकती थी |
छवि अथवा मर्यादा का खूबसूरत पर्दा कूड़ेदान में फेंककर लोग लेडीज एंड जेंटलमैन कहने लगे |रक्षाबंधन के गीत कभी -कभी अब भी लिखे जाते है लेकिन न उनके शब्दों में वह पकड़ है ,न गायकों में वह संवेदनशीलता है तथा अभिनेता-अभिनेत्रियां भी पवित्रता की उस ऊंचाई की कल्पना नहीं कर पाते हैं |
यह नया युग है जिसमें आदर्शों का स्थान वास्तविकता ने ले लिया है |वास्तविकता दिखाने के इस चक्कर में कलात्मक गिरावट तो आयी ही है ,साथ ही आदर्शों का लोप हो जाने के कारण अपराधी को अपराध करने में कोई भय नहीं लगता |भद्दी गालियाँ भी फिल्म के संवादों की अंग बन गयी हैं |
इस दृष्टि से परिवारों ने थियेटर में आना बंद कर दिया |फिल्मवालों ने यथार्थ के नाम पर कला की उस ऊंचाई से पीछा छुड़ा लिया अथवा लोग कुछ ज्यादा ही प्रैक्टिकल हो गए |
इस वास्तविकता दिखाने के जूनून और धन के बढ़ते प्रभाव ने भाई और बहन की उस मर्यादा की मजबूती के परदे को चूहे की तरह कुतर दिया है|
इस त्यौहार के बहाने ,शुक्र है कि समाज में अभी बहन-भाई के प्रेम की यह परंपरा बची हुई है|
हो सकता है रिश्तों की मर्यादा की वह ऊंचाई कभी न कभी लौट आये |मानव सभ्यता को उस दिन का इंतज़ार रहेगा |