सम्पादकीय (मई 2014 - प्रगतिशील साहित्य)
- राम कुमार 'सेवक'
बच्चों के बहुत दोस्त होते हैं। बचपन में मेरे भी बहुत थे। 18–19 साल तक भी दोस्तों संख्या काफी थी, फिर धीरे-धीरे पढ़ाई-लिखाई और रोजगार के सिलसिले में सब इधर-उधर हो गये। विवाह के बाद तो यह संख्या और भे छंट गयी। अब तो स्थिति यह है कि साथी हैं, परिचित हैं, पड़ोसी हैं,सच्चा दोस्त, जिसे कहते हैं, वह कोई नहीं है।
मैं इसे कंगाली की स्थिति मानता हूं क्यों कि जीवन यात्रा यदि कभी दुर्दिनों का सामना करना पड़े तो परमात्मा के सिवा में दूर-दूर तक कोई नहीं है।
लेकिन यह स्थिति उससे बहुत बेहतर है, जब आपके पास हर समय कोई न कोई होता है लेकिन दुर्दिनों की आमद होते ही वे सब ऐसे भागते हैं, जैसे बिल्ली को देखकर चूहे। सिर टिकाने के लिए किसी का कन्धा तक नहीं मिलता। शायद इसीलिए गोस्वानी तुलसीदास जी को कहना पड़ा
धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी,
आपत काल परखिये चारी।
ऐसी हालत में परखने की बात तो खत्म ही हो जाती है क्यों कि कोई पास है ही नहीं- परखें किसे?
ऊपर जो दोस्ती के मामले में कंगाली की स्थिति बतायी गयी है, वह उस स्थिति से भी बहुत बेहतर है, जिसमें दोस्त ही दोहरी भूमिकाए निभाता रहता है। हम उम्मीद करें कि उसके हाथ में जो डिब्बी है, वह महिम की होगी और ज़ख्म के दर्द में उससे कुछ राहत मिलेगी लेकिन वैसा नहीं होती। उस डिब्बी में नमक होता है, और वह दर्द को और भी बढ़ा देता है। उस स्थिति में बेशक हम अकेले हैं लेकिन कम से कम कोई नमक छिड़कने वाला तो नहीं है, यह तो शुकर है।
ऐसे दोस्तों के लिए किसी ने लिखा- हे प्रभु! मुझे मेरे दोस्तों से बचाना दुश्मनों से मैं खुद निबट लूंगा।
ऐसे मैं मुझे एक फिल्म की याद आती है। साठ के दशक में बनी इस फिल्म में दो दोस्त थे। दोनों ही लाचार-एक अन्धा, दूसरा लंगड़ा लेकिन दोनों ही एक-दूसरे के सच्चे मित्र । दोनों एक-दूसरे के साथ-हमेशा। वह फिल्म जीवन ममें कभी भूलेंगी नहीं। ऐसी दोस्ती जीवन में भी जरूर होती होगी।
इस फिल्म से पहली बार मैंने दोस्ती और सहयोग का मर्म जाना था।
दोस्ती पर फिल्में और देखीं लेकिन किसी ने भी उतनी गहराई से प्रभावित नहीं किया, जितना कि उस पहली फिल्म ने किया था, बहरहाल मूल समस्या ज्यूं की त्यूंह कि - आखिर उम्र बढ़ने पर दोस्ती क्यूं खत्म हो जाती है अथवा ऐसा क्या किया जाये कि बड़ी उम्र में भी दोस्ती बनी रहे?
इसका समाधान यही सूझ रहा है कि उम्र बढ़ने पर जब कि व्यस्तताओं के बहुत सारे कारण निकल आते हैं, निश्चय ही दोस्त भी उलझ जाते हैं।इतना समय ही नहीं बचता कि सब दोस्तों के साथ न्याय किया जा सके।
यदि किसी के सास समय भी है और प्रचुरमात्राा में धन भी तो उसके पास दोस्तों की कभी-कभी नहीं रहेगी।
यह तेरा वक्त ही बतायेगा किवे सच्चेमित्र साबित होंगे या केवल चापलूस?
बहरहाल दोस्ती की जरूरत हमेशा रही है और रहेगी। कवि के शब्दों में -
हे प्रभु मुझे इतनी ऊँचाई मत देना,
गैरों को गले लगा न सकू, इतनी रुखाई मत देना।
जो जमीन से जुड़े रहते हैं, वे दोस्त पा ही लेते हैं अन्यथा आदमी DOSTI ऊँचाई के चक्कर में जमीन से कटता जाता है और अन्ततः अकेलेपन की दुनिया में घुट-घुटकर हम तोड़ देता है।
यह और भी दर्दनाक स्थिति है इसलिए यदि आपके जीवन में कोई सच्चा मित्र है तो उसे संभालकर रखिए क्यों कि -
अकेलेपन में उपहार नहीं मिलते
और-सच्चे मित्र बार-बार नहीं मिलते।