पिछले दिनों एक सन्देश किसी मित्र ने भेजा -लिखा था- चिंता करना मतलब ईश्वर की व्यवस्था पर शक करना |
शक शब्द ने फ़ौरन मुझे कटघरे में खड़ा कर दिया कि क्या मैं ईश्वर की व्यवस्था पर शक करता हूँ जबकि चिंता तो मैं करता हूँ |बल्कि छोटे बच्चे तक चिंता करते हैं |उनकी चिंता का दायरा छोटा होता है इसलिए थोड़ी देर रोते हैं |मांएं उन्हें झुनझुने थमा देती हैं और वे फिर हंसने लगते हैं |
थोड़े बड़े होते हैं तो होमवर्क की चिंता घेर लेती है |चिंताओं के इस घेरे को जितना चाहे आगे बढ़ा सकते हैं |
अब इसे फ़ैलाने से समस्या और बढ़ेगी इसलिए खुद पर आता हूँ-पचपन पार का व्यक्ति ,उसे लॉकडाउन के कारण आ रही आर्थिक दिक्कतों की चिंता है |बेटों के रोजगार की चिंता है,बेटियों के विवाहों की चिंता है |बीवी की कमजोर सेहत की चिंता है |
घर से बाहर निकलता है तो इधर -उधर ,बेतरतीब खड़ी गाड़ियों की अराजकता की चिंता है |सड़क पर चलता है तो कुछ ड्राइवर्स की लापरवाह ड्राइविंग के कारण मर जाने की बल्कि उससे भी ज्यादा ज़ख़्मी होकर अस्पताल में लेटने और कंगाली बढ़ने की चिंता |
खुद से बाहर निकलें तो शहर में बढ़ती गुंडागर्दी और पुलिस के गुंडों से गठजोड़ की चिंता |
अख़बार पढता हूँ तो कुछ और चिंताएं जुड़ जाती हैं |देश में बढ़ रही आर्थिक मंदी की चिंता ,बढ़ती जा रही नौजवानो की बेकरी-बेरोजगारी और आगे -लद्दाख में चीनी घुसपैठ भी मेरी चिंता का दायरा बढाती है |
अनेकानेक चिंताओं का डाटा मेरे मोबाइल के स्पेस की तरह शरीर की ज्यादातर ऊर्जा सोख लेता है इसलिए अनावश्यक चिंताओं को वहां से हटाता हूँ -ऐसे-
चीनी घुसपैठ -उस पर मेरा कोई जोर नहीं है-सेना और सरकार अपना काम करेगी |
आर्थिक मंदी और बेरोजगारी -उसमें भी मैं कुछ नहीं कर सकता -वित्त मंत्रालय अर्थात केंद्र सरकार का काम है |
शहर में बढ़ रही गुंडागर्दी में ताक़तवर लोगों की भूमिका होती है |ये लोग तो प्रजातंत्र के रक्षक हैं |पुलिस को नौकरी करनी है इनका लिहाज़ करना ही होगा |
खुद बचकर रहो ,सावधानी से रहो इसलिए गुंडागर्दी की चिंता करना भी व्यर्थ है |
लापरवाह ड्राइविंग के लिए क्या चिंता करनी है-मृत्यु तो शाश्वत सत्य है |वर्षों गीतकार ने लिख दिया था- जितनी चाभी भरी राम ने उतना चले खिलौना |
यह चिंता भी बाहर कर दी -अब रह गया बीवी -बच्चों की विभिन्न समस्याएं -इनसे कैसे बचें ?इनका सामना तो करना ही होगा |
ऊपर मैंने जिन चिंताओं की चर्चा की है,ज़रा सोचकर देखिये ,वे सारी वास्तविक हैं | उनमें से एक भी खामख्याली नहीं है |
ये चिंताएं मैं नित्य करता हूँ तो क्या परमेश्वर की व्यवस्था पर शक करता हूँ ?मेरा उत्तर है-नहीं |फिर समाधान क्या है?
वास्तविकता यह है कि मानव जन्म कर्मयोनी है |विधाता ने हम सबको,सोचने-समझने ,लिखने -पढ़ने और अपनी सोच के अनुसार कर्म करने की स्वतंत्रता दी है |
इस कर्मक्षेत्र अथवा देश व घर में सरकार की अपनी भूमिका है और नागरिकों की अपनी |परमेश्वर की अपनी अलग भूमिका है |परमेश्वर दरअसल है क्या इस पर विचार करना होगा |
मुझे लगता है कि परमेश्वर सात आसमानो के ऊपर बैठा कोई व्यक्ति नहीं है |परमेश्वर तो इस सृष्टि की जीवन शक्ति है ,जो हमारे जीवन की भी ऊर्जा है |
जिस प्रकार गाडी में बहुत सारे पुर्जे दिखाई देते हैं लेकिन पेट्रोल जो ऊर्जा देता है ,वह (ऊर्जा)दिखाई नहीं देती लेकिन होती है |
परमेश्वर का अस्तित्व हमसे अलग नहीं है |यह हमारे रोम-रोम में है |लेकिन यह हमारे अस्तित्व में सीमित नहीं है | हमारे अलावा भी जितने अस्तित्व विभिन्न शरीरों में दिखाई दे रहे हैं उन सबमें भी वही ऊर्जा सब काम कर रही है |.
यह एक शाश्वत सत्य है ,जिसका विरोध कोई नहीं करेगा लेकिन इसे मानता भी कोई नहीं है |
हममें से कितने ही लोग भगवान,खुदा ,वाहेगुरु और गॉड के नामो पर लड़ते रहते हैं |इस प्रकार हम इस परम सत्ता को एक नहीं मानते |किसी शायर ने चिंता करते हुए इन शब्दों में उलाहना दिया-
खुदा तो खैर मुसलमां था ,उससे क्या शिकवा
मेरे लिए ,मेरे परमात्मा पे कुछ न हुआ |
शायर को यह तथ्य समझना होगा कि उसका परमात्मा कोई अलग नहीं है |उसकी समस्या का हल करने के लिए वह ऊपर से नहीं उतरेगा बल्कि यदि वह परमेश्वर की मदद चाहेगा तो मदद उसे उसके भीतर से ही मिलेगी |उसका अपना विवेक उसे रास्ता दिखायेगा |समस्या हल हो जाएगी बशर्ते हम उस रास्ते पर चलना स्वीकार कर लें |परमात्मा को यदि अपना रक्षक मानते हैं तो हमें भक्त होना होगा |भक्ति की मेरी परिभाषा बहुत आसान है |निरंकारी दर्शन कहता है कि -भक्ति भागने का नाम नहीं बल्कि अपने फ़र्ज़ों को निभाते हुए जीने का नाम है |
इस प्रकार भक्त होना कोई जटिल प्रक्रिया नहीं है |जब इंसान किसी ऐसी समस्या में फंसता है,जिसका समाधान उसके पास नहीं होता है तब वह किसी अज्ञात सत्ता की तरफ देखता है |यह है-भक्ति की उत्पत्ति | किसी भक्त कवि ने लिखा है -
चिंता तो हरिनाम की और न चितवै दास
और जो चितवै भगतजन सोई काल की फाँस |
आमतौर से चिंता का आधार है-हमारा अनिश्चित भविष्य |यह बात निश्चित है कि हमारा भविष्य हमारे वर्तमान कर्मो पर निर्भर है |मुझे चिंता है तो सिर्फ इस कारण से कि वर्तमान में जो मेरी भूमिका है वो सही तरह से निभ सके,ताकि भविष्य सुनहरा रहे और यह चिंता करना परमात्मा की व्यवस्था पर शक करना बिलकुल नहीं है चूंकि अपने दायित्वों को निभाने की चिंता बिलकुल स्वाभाविक है तो यह तो मेरा दायित्व बोध है |इसे परमात्मा की व्यवस्था पर शक कहना तो अवास्तविक है |धन्यवाद
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