ऐ भाई ज़रा देखकर चलो..



आज सुबह सैर करते समय, सामने से भी वाहन आ रहे थे और पीछे से भी |पीछे से आती आवाज़ बता देती थी कि-गाड़ी से मेरा फासला कितना है ?उस फासले को महसूस करके कदम दाएं -बाएं हो जाते थे |


उस समय अनायास ही यह गीत याद आ गया-हे  भाई जरा देख कर चलो ,आगे ही नहीं ,पीछे भी |दाएं ही नहीं ,बाएं भी -ऊपर ही नहीं ,हीचे भी |  महाकवि गोपालदास नीरज जी की कलम से निकला यह गीत अमर है |


सड़क पर चलते समय आगे से आ रहा वाहन देखना तो सहज है चूंकि आँखें सामने देख सकती हैं |लेकिन पीछे आँखें नहीं हैं-लेकिन इंजन की आवाज़ बता रही है कि पीछे से कार आ रही है और उससे मेरा फासला ज्यादा नहीं है |


मालिक की कृपा है कि गर्दन ठोस नहीं है अन्यथा पत्थर की तरह हम न दाएं देख सकते,न बाएं | आगे कवि ने लिखा -ऊपर ही नहीं ,नीचे भी |कुल छह दिशाएं हो गयीं |


अब कोनो को भी लें ,जिन्हें उत्तर -पश्चिम ,दक्षिण-पूर्व,उत्तर-पूर्व तथा दक्षिण -पश्चिम कहते हैं |अब दिशाएं दस हो गयीं |


सुमिरन के सन्दर्भ में मन की कमजोरी का जिक्र करते हुए सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी प्रायः सन्त कबीर के इस दोहे का जिक्र किया करते थे-


माला तो कर में फिर,जीभ  फिरे मुख माहि 
मनुवा तो दह दिसि फिरे,यह तो सुमिरन नाहि |



इस दोहे में कबीर दास जी ने दस दिशाओं की चर्चा की है |वे कहते हैं कि हाथ में तो माला घूम रही है और जीभ मुँह में लेकिन मन तो दस दिशाओं में घूम रहा है-इसे सुमिरन कैसे कहें ?


मन लगातार गति में है तो कबीर दास जी इसे सुमिरन स्वीकार नहीं करते |वे कहते हैं-यह सुमिरन नहीं है |


गीत में नीरज जी शुरू में ही लिखते हैं-हे  भाई ज़रा देखकर चलो |मुझे ख्याल आता है,जैसे वे कह रहे हों-चल तो रहे हो लेकिन अंतिम प्रस्थान से पहले देख लो |


फिल्म में एक संवाद है जो किसी किताब में पढ़ा था ,मुझे शुरू से ही ब्रह्मज्ञान से जोड़ता है |संवाद में कहा गया है-
बाबू,यह सर्कस है तीन घंटे का


पहला घंटा -बचपन है ,दूसरा जवानी है और तीसरा -बुढ़ापा है |


और उसके बाद -माँ नहीं,बाप नहीं,बेटा नहीं,बेटी नहीं ,तू नहीं ,मैं नहीं -कुछ भी नहीं रहता है |


फिर 30 सेकंड की ख़ामोशी कुछ कहती है- गीत में आगे कहा गया है-रहता है जो कुछ -


वो खाली-खाली कुर्सियां हैं ,खाली-खाली तम्बू है,खाली-खाली डेरा है


जीना चिड़िया का बसेरा है,न तेरा ,न मेरा है |


मैं सामने आती हुई गाड़ी को देखता हूँ और साइड होकर बच जाता हूँ |सतगुरु कहते हैं -सड़क पर आ रही गाड़ी से पहले भी तुम्हारे सामने यह परमपिता परमात्मा है ,क्या इसे देखा ?यही तुम्हारे सामने ,पीछे और सब दिशाओं में है |इसे देखो और अनुभव करो |


एक बार यह हो गया तो फिर और कुछ होना बाकी नहीं रहेगा |यही आधार है-पूर्णत्व है और मुक्ति भी है |